संपादकीय: सड़कों पर हादसे के वाहन, सुरक्षित सफर की राह में बड़ी बाधा है तकनीकी लापरवाही
सड़कों पर वाहनों के परस्पर टकराने से हुए हादसों में किसी न किसी की लापरवाही होती है। अगर किसी हादसे के पीछे वाहन में तकनीकी खराबी सामने आती है, तो आमतौर पर उसे लेकर प्रतिक्रिया का स्तर नरम हो जाता है। हालांकि तकनीकी खराबी की भी एक पृष्ठभूमि होती है। अगर समय-समय पर वाहनों की जांच न की जाए तो वह कभी भी बेहद घातक साबित हो सकती है। हरियाणा के नूंह में शुक्रवार की रात चलती बस में आग लगने की घटना अत्यंत त्रासद है। मानेसर-पलवल एक्सप्रेसवे पर श्रद्धालुओं से भरी एक पर्यटक बस में आग लग गई।
आग लगने की भनक बस ड्राइवर को नहीं हुई
विचित्र है कि आग लगने की भनक चालक को नहीं हुई, बल्कि स्थानीय लोगों की नजर पड़ी और उन्होंने किसी तरह उसे बताया। तब तक आग ज्यादा फैल चुकी थी। नतीजतन, नौ लोगों की जिंदा जल कर मौत हो गई और करीब पच्चीस लोग बुरी तरह झुलस गए। अब पुलिस घटना की जांच करेगी और अन्य औपचारिक कदम उठाए जाएंगे। मगर सवाल है कि जब कोई बड़ा हादसा हो जाता है और उसमें लोग मारे जाते हैं, उसके बाद ही संबंधित महकमों की नींद क्यों खुलती है।
पिछले कुछ वर्षों में लंबी दूरी की बसों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। इन बसों की बनावट, प्रवेश और निकास या आपातकालीन दरवाजे की व्यवस्था इस तरह की होती है कि अगर किसी वजह से ये हादसे की शिकार हो जाएं, तो उनमें से समय पर न निकल पाने के चलते अनेक लोगों की जान चली जाए। जबकि वातानुकूलित वाहन तकनीकी खराबी के लिहाज से पहले ही संवेदनशील होते हैं। फिर, जहां थोड़े-थोड़े अंतराल पर बसों की तकनीकी जांच की जानी चाहिए, विश्राम देना चाहिए, वहीं ज्यादातर बसें कई-कई घंटे लगातार चलाई जाती हैं।
ऐसे में तकनीकी खराबी की वजह से हादसों की आशंका बनी रहती है। सुरक्षित सफर के लिए अन्य जरूरी पहलुओं को सुनिश्चित किए बिना एक्सप्रेसवे जैसी तेज रफ्तार सड़कों पर दौड़ने वाली बसें दरअसल हादसे की आशंका अपने साथ लिए चलती हैं। सरकार और प्रशासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि भाड़े की यात्री बसें यात्रियों की सुरक्षा को लेकर अधिक जवाबदेह और गंभीर हों।