संपादकीय: कैंसर के दायरे में युवा, जीवन शैली को लेकर लापरवाही बड़ी वजह
यह गंभीर चिंता की बात है कि देश के युवाओं की एक बड़ी संख्या कैंसर जैसे रोग की चपेट में आ रही है। यह स्थिति तब है जब पिछले कुछ दशक के दौरान आय के स्तर से लेकर खानपान और रहन-सहन आदि के मामले में ज्यादातर लोगों के बीच गुणात्मक सुधार देखा गया है। मगर इसके समांतर यह भी सच है कि इसी बीच सुविधाओं के विस्तार के साथ-साथ एक बड़ी आबादी खाने-पीने की चीजों और जीवनशैली को लेकर लापरवाह भी हुई है।
इसका नतीजा यह है कि सामान्य से लेकर कुछ जटिल बीमारियां भी चुपके से लोगों के बीच अपने पांव फैला रही हैं। कैंसर भी उन्हीं घातक रोगों में से एक है। हाल में आई एक रपट में बताया गया है कि कैंसर रोगियों में से बीस फीसद की उम्र चालीस वर्ष से कम थी। इससे पता चलता है कि देश की युवा आबादी के बीच कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं।
कहा जा सकता है कि इस तरह के अध्ययन से कैंसर के प्रति लोगों को जागरूक करने और देश को कैंसर मुक्त बनाने में सहायता मिल सकती है। मगर इससे यह भी साफ है कि कई वजहों से युवा इस रोग की जद में आ रहे हैं। फिलहाल इसकी चपेट में आए युवाओं में सिर और गर्दन के कैंसर के लक्षण पाए जा रहे हैं, मगर इस रोग की जैसी प्रकृति रही है, उसे देखते हुए इसके विस्तार से उपजे खतरे का अंदाजा लगाया जा सकता है।
इस बीमारी के इलाज के मामले में अब तक जो सीमित उपाय हैं, उसमें इसे जीवनशैली में सुधार, टीकाकरण और समय पर जांच से रोका जा सकता है, मगर अफसोस की बात है कि ज्यादातर मामलों में चूंकि लोगों को पता नहीं चल पाता और इसी वजह से जांच में देरी होती है, इसलिए इसके शरीर में जानलेवा स्तर तक फैलने का खतरा पैदा हो जाता है। विडंबना है कि कुछ दशक पहले तक कैंसर के मामले इक्का-दुक्का सुनने में आते थे, आज अक्सर लोगों को अपने संपर्क के ही किसी व्यक्ति के कैंसर से पीड़ित होने या उसकी मौत की खबर सुननी पड़ती है।