Jansatta Editorial: प्रकृति के कोप से उपजे हालात से निपटने के लिए सबको साथ मिल कर काम करने की जरूरत
इस वर्ष की गर्मी जिस रूप में आई है, उसकी आशंका पिछले कई महीने से जाहिर की जा रही थी। मगर इस तरह के पूर्वानुमानों की सार्थकता तभी है जब किसी संकट की स्थिति से निपटने के लिए तैयारी भी साथ-साथ की जाए। विडंबना यह है कि विज्ञान की उपलब्धियों के सहारे अब आने वाले दिनों के मौसम को लेकर कई बार सटीक अनुमान तो लगा लिए जाते हैं, लेकिन उसके मुताबिक जरूरी कदम उठाने के लिए न तो सरकारों को कोई ठोस पहल करते देखा गया और न ही आम जनता इसके प्रति सचेत होती है या अपने स्तर पर कोई सावधानी बरतती है।
यह बेवजह नहीं है कि पिछले कुछ दिनों से गर्मी का मौसम एक तरह से कहर ढा रहा है और लोग इसे झेलने पर मजबूर हैं। चिलचिलाती धूप और लू की मार से बचने के लिए लोगों को अब अतिरिक्त इंतजाम करना पड़ रहा है। कई जगहों पर लू की वजह से कुछ लोगों की मौत हो जाने के अलावा बिहार में कई स्कूली बच्चों के बीमार पड़ने की खबरें आईं। पारा किस कदर ऊपर की ओर चढ़ रहा है, उसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि गर्मी से उपजी परेशानी अब हादसों और पेयजल तक के संकट के रूप में बदल रही है।
गौरतलब है कि बुधवार को राजधानी दिल्ली में मुंगेशपुर इलाके में तापमान 52.9 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया और दिल्ली सहित कई राज्यों में इसका असर अब जनजीवन बाधित होने के तौर पर भी सामने आ रहा है। दिल्ली में अब तक दर्ज किया गया यह सबसे ज्यादा तापमान है और इससे अस्सी वर्ष पहले का वह रिकार्ड टूटा है, जब 29 मई को तापमान 47.2 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था।
इसके अलावा, पंजाब और हरियाणा सहित उत्तर-पश्चिम भारत के कई शहर लू की चपेट में हैं और उन इलाकों के लिए मौसम विभाग को लाल चेतावनी जारी करनी पड़ी। यानी कि जिस तरह की गर्म हवाएं चल रही हैं, उससे स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा होने का खतरा है। हालांकि बुधवार को ही शाम में मौसम ने करवट बदली और आंधी के साथ कुछ इलाकों में बारिश भी हुई, जिससे राहत के आसार बने, लेकिन तापमान और गर्मी का जैसा रुख बना हुआ है, उसके मद्देनजर आने वाले कुछ दिन संवेदनशील हो सकते हैं और लोगों को हर स्तर पर सावधानी बरतने की जरूरत है।
मुश्किल यह है कि जिस समय कुदरत की मार से उपजे संकट का सामना करने के लिए आम लोगों को सतर्क होना चाहिए और सरकार की ओर से हर जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए, वैसे में अलग-अलग राज्यों के बीच एक विचित्र खींचतान शुरू हो जाती है। दिल्ली सरकार की ओर से यह आरोप लगाया गया कि भीषण गर्मी से उपजे पेयजल संकट के बीच हरियाणा दिल्ली के हिस्से का पानी नहीं दे रहा है।
इस मसले पर दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट जाने की भी बात कही। सवाल है कि प्रकृति के कोप से उपजे हालात से निपटने के लिए सबको साथ मिल कर कोई रास्ता या फिलहाल मुश्किल का तुरंत कोई हल निकालना चाहिए या आम लोगों के सामने उपजे पीने के पानी तक के संकट के समय टकराव का रास्ता अख्तियार करना चाहिए? यह ध्यान रखने की जरूरत है कि पर्यावरण में बढ़ते तापमान की वजह से जो स्थितियां पैदा हो रही हैं, उससे सामूहिक प्रयासों और मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरिए ही निपटा जा सकता है। ऐसे में मौसम के रुख और बदलते जलवायु की अनदेखी करना और संकट के समय खींचतान करना संकट को और जटिल बनाएगा।