संपादकीय: कुदरत की फिक्र लेकिन इकोलॉजिकल बैलेंस को लेकर जमीनी हकीकत अलग, जीवों के डॉक्यूमेंटेशन से बढ़ीं उम्मीदें
पिछले कुछ दशक से पारिस्थितिकी संतुलन के संदर्भ में समूचे जीव-जगत के संरक्षण पर खूब बातें होती रही हैं। मगर इस तरह की बातों का कोई ठोस हासिल तभी है, जब जमीनी स्तर पर व्यावहारिक कदम उठाए जाएं और उसी के मुताबिक नीतिगत स्तर पर नई पहल किए जाएं। मसलन, धरती की आबोहवा बिगड़ने की चुनौतियों के समांतर जैव-विविधता और उसके संरक्षण के मसले पर अगर ध्यान दिया जाए, तो दुनिया में पारिस्थितिकी से जुड़ी मुश्किलों को भी कुछ कम किया जा सकता है। इस लिहाज से भारत जीव-जंतुओं की विभिन्न प्रजातियों का दस्तावेजीकरण करने वाला पहला देश बन गया है। इसमें एक लाख चार हजार इकसठ प्रजातियों को शामिल किया गया है।
यह सूची जीव प्रजातियों पर सबसे पहला व्यापक दस्तावेज है। इसका सबसे अहम संदेश यही गया है कि दुनिया भर में पर्यावरण में हो रहे बदलावों और नित नई खड़ी हो रही चुनौतियों के बीच भारत प्रकृति संरक्षण को लेकर केवल चिंता नहीं जताता, बल्कि वास्तविक सरोकार भी रखता है। जीव-जंतुओं की इस सूची में स्थानीय और संकटग्रस्त प्रजातियों के साथ ही सूचीबद्ध प्रजातियों को भी शामिल किया गया है।
जलवायु परिवर्तन, मानवीय गतिविधियों और जीवनशैली की वजह से दुनिया भर में कई जीवों का अस्तित्व खत्म हो गया या फिर वे विलुप्त होने के कगार पर हैं। जबकि धरती पर जीवधारियों का होना या जैव-विविधता पारिस्थितिकी संतुलन के लिहाज से अनिवार्य है। किसी भी जीव के विलुप्त होने का सीधा असर पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ता है। इस तरह की सूची बनाने का फायदा यह होगा कि इसके जरिए जीव-जंतुओं का सर्वेक्षण करके उनके लिए भरोसेमंद संरक्षण का इंतजाम और पर्यावरण से सबंधित सूचनाएं तैयार करने में सहायता मिलेगी।
साथ ही, पक्षियों की संख्या में आ रहे बदलाव, उन पर स्थानीय, क्षेत्रीय और महाद्वीपीय स्तर पर मौसम और भूपारिस्थितिकी के असर का आकलन भी किया जा सकता है। इस दस्तावेजीकरण के जरिए वैज्ञानिकों, शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं और पर्यावरणविदों को सभी जीवों की सूची के वर्गीकरण के साथ-साथ इसके आधार पर प्रकृति के संरक्षण के लिए नीतियां बनाने की दिशा में ठोस पहल करने में मदद मिलेगी।