संपादकीय: विरासत की गरिमा और योग का उपहार, भारत ने दुनिया को दी स्वस्थ और निरोग रहने की दृष्टि
हमारे देश में वैसी उपलब्धियों और धरोहरों की एक लंबी शृंखला है, जिनकी वजह से दुनिया भर में भारतीयता को एक सम्मान की नजर से देखा जाता है। मगर हाल के वर्षों में योग एक ऐसे पहलू के रूप में उभरा है, जिसे न केवल भारत में एक नया आयाम मिला है, बल्कि इसे विश्व भर में लोगों ने बेहद रुचि के साथ देखा, सीखा और अपनाया। सच यह है कि एक ऐतिहासिक धरोहर और नायाब तोहफे के रूप में योग के सहारे स्वास्थ्य का कायाकल्प करने के लिए एक दृष्टि देने के लिहाज से भारत को दुनिया भर में नेतृत्व करने का मौका मिला है।
यह बेवजह नहीं है कि आज भारत सहित दुनिया के कई देशों, बड़े-बड़े संस्थानों और विश्वविद्यालयों तक में व्यापक पैमाने पर लोगों के बीच योगासन बेहद लोकप्रिय हुआ है और इसके प्रत्यक्ष लाभ भी देखे जा रहे हैं। इसलिए योग और इसके दर्शन के महत्त्व को समझा जा सकता है। मगर दूसरे पहलू से देखें तो यह अफसोस की बात है कि ‘योग दिवस’ के रूप में इसे वर्ष में सिर्फ एक दिन के उत्सव की तरह देखा जाने लगा है। जबकि रोजमर्रा के जीवन में नियमित अभ्यास के रूप में ही इसकी अहमियत आंकी जा सकती है।
दरअसल, वैश्विक स्तर पर योग की लोकप्रियता के समांतर यह भी देखा जा रहा है कि एक ओर बहुत सारे देशों में लोग इसके प्रति आकर्षित हो रहे हैं और इसकी उपयोगिता के लिहाज से इसे अपना रहे हैं, तो दूसरी ओर अपने देश में कई बार इसे एक मौके को भुनाने के तौर पर भी इस्तेमाल किया जाने लगा है। इसका एक नकारात्मक पहलू इस रूप में सामने आया है कि दिनचर्या के हिस्से के रूप में उपयोगी माने जाने वाले योग को मुख्यधारा के प्रचार माध्यमों में अब ‘योग-दिवस’ में केंद्रित करके देखा जाने लगा है। इस मौके पर खासतौर पर टीवी चैनलों पर जिस तरह के कार्यक्रम पेश किए जाने लगते हैं, प्रस्तुतियों में जैसी हरकतें दिखती हैं, एक विचित्र चकाचौंध दिखता है, उससे योग जैसे गंभीर और महत्त्वपूर्ण विषय की गरिमा कम होती है।
करीब दस वर्ष पहले भारत ने संयुक्त राष्ट्र में जब अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाने का एक प्रस्ताव रखा था, तब उसे बहुत सारे देशों का समर्थन मिला और उसके बाद संयुक्त राष्ट्र ने इसे मंजूरी दी थी। आज समूची दुनिया भारत के इस मंत्र को मान रही है कि स्वस्थ रहने के लिए योग से बेहतर कुछ नहीं। भारत सहित विश्व भर में जहां भी यह लोकप्रिय हुआ, वहां लोगों ने इसके महत्त्व को समझते हुए स्वत: स्फूर्त तरीके से इसे अपनाया। योग के मूल दर्शन और इसकी उपयोगिता को देखते हुए इसे इसी रूप में प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, ताकि लोग अपने भीतर की प्रेरणा से इसे अपनाएं। मगर विडंबना यह है कि विश्व के अनेक देशों में जहां योग को स्वस्थ रहने के लिए एक तोहफे के तौर पर देखा जा रहा है, वहां हमारे देश में इसे अपने-अपने विज्ञापन और प्रचार का जरिया भी बनाया जा रहा है।
टीवी चैनलों पर योग के नाम पर पेश किए कार्यक्रमों का मकसद टीआरपी हासिल करना रह गया लगता है, जो शर्मनाक और चिंता का विषय है। इतिहासबोध के साथ देखें तो एक नायाब विरासत के रूप में योग की जो गरिमा रही है, उसके मद्देनजर इसे अपने प्रचार का जरिया बनने से बचाना होगा। मानव स्वास्थ्य के लिए योग का महत्त्व इसकी सादगी में रहा है और इसकी उपयोगिता को इसी रूप में स्थापित होना चाहिए।