Jansatta Editorial: दिल्ली में कचरे के पहाड़ खड़े होने के बावजूद सरकार समस्या को लेकर गंभीर नहीं
देश की राजधानी और व्यवस्था के स्तर पर अन्य जगहों के मुकाबले ज्यादा बेहतर होने के दावे के बावजूद अगर दिल्ली में कई जगह कचरे के पहाड़ खड़े दिखते हैं, तो यह अपने आप में एक अफसोसनाक तस्वीर है। विडंबना है कि लंबे समय से इस समस्या के उत्तरोत्तर गंभीर होते जाने और कई बार बड़ा मुद्दा बनने के बाद भी अब तक इसका हल निकालने की कोई गंभीर पहल नहीं दिखती।
यह बेवजह नहीं है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर हैरानी जताई है कि दिल्ली में हर रोज ग्यारह हजार टन ठोस शहरी अपशिष्ट पैदा होता है, जिसमें से तीन हजार टन कचरे का उचित निपटान नहीं किया जाता। शीर्ष अदालत ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के इलाकों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग की रिपोर्ट पर कहा कि यह स्तब्ध करने वाली बात है कि ठोस कचरा प्रबंधन नियम, 2016 को लागू हुए आठ साल गुजर चुके हैं, मगर अब तक दिल्ली में इस पर ठीक से अमल नहीं हुआ है। दिल्ली में उपराज्यपाल और सरकार के बीच जिस तरह की खींचतान चलती रहती है, उसमें इसके लिए किसे जिम्मेदार माना जाएगा!
सर्वोच्च न्यायालय ने इस मुद्दे पर दिल्ली नगर निगम, नई दिल्ली नगरपालिका परिषद और दिल्ली छावनी बोर्ड को नोटिस जारी किया है। क्या इन इकाइयों को अपने दायित्व का अहसास नहीं है? यह समझना मुश्किल नहीं है कि दिल्ली में अगर रोजाना ग्यारह हजार टन अपशिष्ट निकलता है और उसमें से तीन हजार टन कचरे का उचित निपटान नहीं हो पाता, तो आखिर उसका क्या होता है और आसपास के इलाकों की आबोहवा पर उसका क्या असर पड़ता होगा।
गौरतलब है कि दिल्ली में भलस्वा, गाजीपुर और ओखला स्थित कचरा पट्टियों पर जितने बड़े पैमाने पर अपशिष्ट जमा होता गया है, उससे आसपास के इलाकों में कई तरह की समस्याएं पैदा हो गई हैं। सोमवार को गाजीपुर कचरा पट्टी में आग लग गई थी, जिसे बुझाने में अठारह घंटे लग गए। कचरे के निपटान की जिम्मेदारी सरकार के संबंधित नागरिक निकाय की है। मगर सवाल है कि उसकी निगरानी करने और पूरे कचरे के निपटान या प्रबंधन को सुनिश्चित करने का दायित्व किसका है?