संपादकीय: छत्तीसगढ़ में नक्सली समस्या से निपटना बनी चुनौती, सुरक्षा बलों पर लगातर हमले ने बढ़ाई चिंता
छत्तीसगढ़ में नक्सली समस्या से निपटने के लिए सरकार ने कई स्तर पर अभियान चला रखा है। सुरक्षा बलों के विशेष दस्ते से लेकर हर पल निगरानी और खुफिया तंत्र की चौकसी के दावे के साथ नक्सली समूहों और उनके हमलों को नाकाम करने और उनका सफाया करने की बातें बहुत लंबे समय से की जाती रही हैं। मगर आज भी हालत यह है कि आए दिन नक्सल प्रभावित इलाकों से जब सुरक्षा बलों का गुजरना होता है, तो उन पर कभी भी हमला होने की आशंका बनी रहती है।
रविवार को राज्य के सुकमा जिले में स्थित एक शिविर से ‘कोबरा वाहिनी’ आगे अपने रास्ते जा रही थी। मगर वहां नक्सलियों ने बारूदी सुरंगों में आइईडी यानी परिष्कृत विस्फोटक यंत्र लगा रखे थे। वहां हुए विस्फोट में ‘कोबरा’ के दो जवान शहीद हो गए और कई बुरी तरह घायल हो गए। इस घटना के दो दिन पहले भी छत्तीसगढ़ के नारायणपुर में नक्सलियों की एक टुकड़ी ने सुरक्षाबलों के शिविर पर हमला किया था, लेकिन तब जवानों ने उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया था।
जाहिर है, नक्सल प्रभावित इलाके में हालात अब भी बेहद संवेदनशील हैं और इस जटिल समस्या पर काबू पाने के लिए किए गए तमाम उपायों के बावजूद नक्सली समूहों की ओर से पेश चुनौती से पार पाना मुश्किल बना हुआ है। यह स्थिति तब है जब अक्सर सुरक्षा बलों की ओर से चलाए गए अभियानों में नक्सली मारे जाते हैं और अन्य स्तर पर कार्रवाई की जाती है। करीब दो महीने पहले छत्तीसगढ़ के कांकेर में सुरक्षा बलों ने एक मुठभेड़ में उनतीस नक्सलियों को मार गिराया था।
सरकार का दावा है कि अब राज्य में नक्सली समूहों पर नकेल कसा जा चुका है और उनका प्रभाव बहुत छोटे इलाके में ही सीमित रह गया है। विडंबना यह है कि व्यापक तलाशी अभियानों और संदिग्ध नक्सलियों के मारे जाने के बावजूद आज भी नक्सली हमलों में सुरक्षा बलों के जवानों की जान जा रही है। यह ध्यान रखने की जरूरत है कि नक्सलियों के कहर से निपटने और एक ठोस और स्थायी हल निकालने के लिए जितनी अहम उनके खिलाफ सुरक्षा बलों की सख्ती और कार्रवाई है, उसके समांतर इस समस्या के सामाजिक-आर्थिक पहलुओं में छिपे मूल स्रोत का हल निकालना भी जरूरी है।