Jansatta Editorial: उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग से भारी नुकसान, सरकार को ठोस कदम उठाने की जरूरत
उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग से हर वर्ष भारी नुकसान होता है। मगर लगातार ऐसी घटना के बावजूद सरकार और संबंधित महकमों को इस बात की सुध लेने की जरूरत नहीं लगती कि इसे रोकने के लिए क्या इंतजाम किए जाएं। जंगल में आग लगने से बचाव की फिक्र में औपचारिक तौर पर जो कदम उठाए जाते हैं, उसकी हकीकत इसी से समझी जा सकती है कि इस वर्ष फिर नैनीताल के आसपास के जंगल में लगी आग की वजह से बड़े क्षेत्र में भारी नुकसान हुआ।
पिछले कई दिनों से वहां आग पर काबू पाने के लिए हेलिकाप्टर के प्रयोग सहित कई अन्य उपाय आजमाए जा रहे हैं। जाहिर है, फिलहाल सबसे पहली प्राथमिकता जंगल क्षेत्रों में लगी आग को फैलने से रोकना और बुझाना है, ताकि नुकसान का दायरा कम किया जा सके। इसलिए यह देखने की जरूरत है कि पहाड़ी इलाकों में स्थानीय जरूरतों के अनुकूल किस तरीके से आग को बुझाया जा सकता है। मगर इतना तय है कि जिन इलाकों में जंगल धधक रहे हैं, उनमें वन संरक्षण के लिए तैनात कर्मचारियों ने शायद अपनी ड्यूटी ठीक से निभाई होती तो समस्या को गंभीर शक्ल लेने से रोका जा सकता था।
सवाल है कि धधकते जंगलों के संकट की जिम्मेदारी तय करना कब संभव हो सकेगा! फिलहाल आग बुझाने के काम में लापरवाही बरतने के आरोप में दस वनकर्मियों के निलंबन के साथ कुल सत्रह लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई है। माना जाता है कि जलवायु में बढ़ते तापमान और पर्यावरण असंतुलन की वजह से दुनिया भर के जंगलों में आग लग जाती है और उसमें व्यापक पैमाने पर जानमाल का नुकसान होता है।
मगर इसके समांतर वनाग्नि की कुछ घटनाएं ऐसी भी हैं, जिनमें वन संरक्षण की ड्यूटी में तैनात कर्मचारी और अधिकारियों ने सही समय पर आग से बचाव के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाया। यह भी खबर आई कि वहां कुछ उत्पाती तत्त्वों को जंगल में आग लगाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। इससे यह पता चलता है कि जंगल में आग लगने की घटनाएं केवल प्राकृतिक ही नहीं है, बल्कि इसमें कुछ अपराधी तत्त्व भी शामिल हैं। जाहिर है, वनाग्नि की घटनाओं से निपटने के लिए सरकार को सभी चिह्नित पहलुओं के मद्देनजर ठोस कदम उठाने की जरूरत है।