संपादकीय: ताइवान में चीन की विस्तारवादी भूख, पड़ोसियों पर नाहक दखलंदाजी से बिगड़ रहा माहौल
चीन को एक ताकतवर देश के तौर पर देखा जाता है, लेकिन आए दिन उसकी जिस तरह की हरकतें सामने आती रहती हैं, उससे यही लगता है कि उसके भीतर विस्तारवाद की एक विचित्र भूख है, जिसकी वजह से वह समय-समय पर अपने आस-पड़ोस के देशों को परेशान करता और धमकाता रहता है। भारत को लेकर उसका रवैया किसी से छिपा नहीं है, जहां अरुणाचल प्रदेश से लेकर भारतीय सीमा क्षेत्र में वह नाहक ही दखलअंदाजी करने की कोशिश करता रहता है। मगर इसके अलावा वह अपने अन्य पड़ोसियों पर भी धौंस जमाता रहता है या फिर उन्हें बिना किसी वजह से उकसाता रहता है।
चीन की सेना ने लगातार दो दिनों तक युद्धाभ्यास किया
ताजा मामला ताइवान का है, जहां एक बार फिर चीन की सेना ने लगातार दो दिनों तक युद्धाभ्यास किया और एक तरह से ताइवान में घुसपैठ की कोशिश की है। ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने शनिवार को कहा कि चीन की नौसेना के सत्ताईस जहाज और बासठ युद्धक विमान ताइवान की सीमा के बिल्कुल करीब आ गए थे। कहने को यह चीन का महज एक युद्धाभ्यास था, मगर ताइवान के चारों तरफ लगातार दो दिनों तक आसमान और समुद्र में इस तरह की आक्रामक और व्यापक स्तर पर की गई सैन्य गतिविधियों के जरिए चीन ने यह संकेत देने की कोशिश की है कि उसकी सेना जहाजों और लड़ाकू विमानों से कैसे ताइवान को घेर सकती है।
यों ताइवान पर दबाव बढ़ाने के लिए चीन की ओर से इस तरह की हरकत कोई पहली बार नहीं है। इससे पहले वह चालीस बार ताइवान में घुसपैठ की कोशिश कर चुका है। इस बार निशाने पर दरअसल ताइवान के नए राष्ट्रपति भी हैं, जिन्हें चीन अलगाववादी विचारधारा का समर्थक मानता है। विचित्र यह है कि ताइवान को चीन अपना अभिन्न इलाका मानता है और इसीलिए उस पर दबदबा कायम रखना चाहता है, जबकि ताइवान और वहां के लोग खुद को संप्रभु राष्ट्र मानते हैं।
सवाल है कि चीन के भीतर वह कौन-सी भूख है जो उसको अपने विस्तृत भूभाग पर फैली एक बड़ी आबादी और शासन-क्षेत्र से भी पूरी नहीं हो पा रही है! माना जाता है कि जो वास्तव में शक्तिशाली होता है, उसे उसका प्रदर्शन करके दूसरों को धमकाने या डराने की जरूरत नहीं पड़ती। मगर ऐसा लगता है कि चीन के मामले में यह सच नहीं है।