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Jansatta Editorial: दिल्ली के राममनोहर लोहिया अस्पताल में भ्रष्टचार का मामला बेहद चिंताजनक

भ्रष्टचार के आरोप में अस्पताल के दो चिकित्सकों सहित ग्यारह लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जो एक ओर रिश्वत के बदले वहां कुछ खास कंपनियों के उत्पाद के कारोबार को बढ़ावा दे रहे थे, वहीं मरीजों पर भर्ती होने के लिए पैसे भी लिए जाते थे।
Written by: जनसत्ता | Edited By: Bishwa Nath Jha
नई दिल्ली | May 10, 2024 08:04 IST
jansatta editorial  दिल्ली के राममनोहर लोहिया अस्पताल में भ्रष्टचार का मामला बेहद चिंताजनक
प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो -(इंडियन एक्सप्रेस)।
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इससे बड़ी विडंबना और क्या होगी कि अस्पताल जैसी जिस जगह पर लोग अपनी किसी गंभीर बीमारी का इलाज कराने, जान बचाने की भूख में जाते हैं, वहां अन्य कर्मचारियों से लेकर खुद कुछ चिकित्सक तक उनकी सेहत को कई बार दांव पर लगा देते हैं। सीबीआइ ने छानबीन के बाद दिल्ली के राममनोहर लोहिया अस्पताल में चल रहे जिस भ्रष्ट तंत्र का खुलासा किया है, वह बेहद चिंताजनक है।

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गौरतलब है कि इस अस्पताल के दो चिकित्सकों सहित ग्यारह लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जो एक ओर रिश्वत के बदले वहां कुछ खास कंपनियों के उत्पाद के कारोबार को बढ़ावा दे रहे थे, वहीं मरीजों पर भर्ती होने के लिए पैसे भी लिए जाते थे। अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि खबरों के मुताबिक, किसी गर्भवती के परिजन जब तक रिश्वत की रकम नहीं चुकाते थे, तब तक उन्हें वार्ड में जगह नहीं दी जाती थी। मरीजों और उनके परिजनों को धमकाने के भी आरोप हैं।

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हैरानी की बात यह है कि देश की राजधानी में सबसे अहम माने जाने वाले अस्पतालों में से एक में इस तरह का भ्रष्टाचार धड़ल्ले से चल रहा था और उस पर किसी की नजर नहीं जा रही थी या फिर जानबूझ कर उसकी अनदेखी की जा रही थी। माना जाता है कि देश की राजधानी होने के नाते दिल्ली में चिकित्सा व्यवस्था की तस्वीर चाकचौबंद होगी और यहां इस तरह के भ्रष्टाचार की गुंजाइश नहीं बन सकती।

मगर इस जाने-माने अस्पताल में कुछ चिकित्सकों, नर्सों और अन्य कर्मचारियों ने रिश्वत के बदले कुछ खास कंपनियों के उत्पादों और उपकरणों के कारोबार को जिस तरह बढ़ावा दिया, वह हैरान करने वाला है। सवाल है कि इस भ्रष्टाचार को खुद अस्पताल के तंत्र के भीतर या फिर सरकार के संबंधित महकमों की नजर और फिर कार्रवाई के दायरे में आने में इतना वक्त कैसे लग गया?

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चिकित्सा उपकरणों की आपूर्ति और उनके उपयोग पर नजर रखने के लिए क्या वहां कोई व्यवस्था नहीं है? अगर है, तो कुछ खास कंपनियों के सामानों पर लगातार मेहरबान होने पर किसी को शक क्यों नहीं हुआ? अगर मरीजों से गलत तरीके से पैसे वसूले जाते थे या फिर कुछ खास ब्रांड के उत्पाद ही लेने पर मजबूर किया जाता था, तो यह इतनी देर से पकड़ में क्यों आया?

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जाहिर है, भ्रष्टाचार का यह दुश्चक्र अस्पताल के कुछ डाक्टर और अधिकारियों या कर्मचारियों की मिलीभगत के बिना नहीं चल रहा होगा। यह छिपा तथ्य नहीं है कि कई बार मरीजों को कुछ डाक्टर गैरजरूरी दवाइयां लेने की सलाह भी देते हैं। दवा या चिकित्सा उपकरणों के कारोबार को बढ़ावा देने के एवज में दवा कंपनियों की ओर से डाक्टरों को दुनिया के अलग-अलग देशों के दौरे पर ले जाने या महंगा तोहफा देने के प्रस्ताव की खबरें आम रही हैं।

इस तरह के मामले पहले भी सामने आते रहे हैं, जिसमें किसी खास दवा कंपनी से धन या सुविधाओं के बदले डाक्टर मरीजों को वैसी दवाएं लेने या जांच कराने की सलाह दे देते हैं, जो निहायत ही गैरजरूरी होती हैं। इसकी क्या गारंटी है कि मरीजों को इस तरह की जिन दवाओं का इस्तेमाल करने को कहा जाता है, वे उनकी सेहत के लिहाज से खतरनाक या अनुपयोगी नहीं होंगे या उनका दुष्प्रभाव नहीं होगा? मगर यह अफसोसनाक हकीकत है कि पैसा बनाने के खेल में शामिल चिकित्सकों और अन्य कर्मियों को मरीजों के जीवन की कोई फिक्र नहीं होती।

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