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संपादकीय: खालिस्तानी आतंक को बढ़ावा देता कनाडा, निज्जर की बरसी पर ससंद में मौन सम्मान

अलग खालिस्तान की मांग को लेकर चलाई जा रही हिंसक मुहिम से कनाडा सरकार अनजान नहीं है और न वह इस बात से बेखबर है कि किसी भी देश में चलाई जाने वाली कोई भी अलगाववादी गतिविधि दहशतगर्दी के दायरे में आती है।
Written by: जनसत्ता
नई दिल्ली | Updated: June 20, 2024 00:01 IST
खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की बरसी पर कनाडा के संसद में रखा गया मौन व्रत
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यह समझना मुश्किल है कि कनाडा आखिर भारत के साथ कैसे रिश्ते रखना चाहता है। इटली में आयोजित जी-7 के शिखर सम्मेलन में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भारतीय प्रधानमंत्री से मिले तो कहा कि भारत के साथ कनाडा का कई मामलों में बेहतर तालमेल है और नई सरकार के साथ बातचीत आगे बढ़ाने का अवसर दिखाई दे रहा है। मगर वहां से लौटते ही उनका रुख बदल गया। खालिस्तानी अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या की बरसी पर वहां की संसद में एक मिनट का मौन रखा गया। पिछले वर्ष कनाडा में निज्जर की हत्या कर दी गई थी। तब कनाडा सरकार ने आरोप लगाया था कि उसकी हत्या में भारतीय अधिकारी शामिल थे। हालांकि वह अभी तक इसका कोई सबूत नहीं पेश कर सका है। उसके बाद से कई जगहों पर खालिस्तानी अलगाववादियों ने भारत के खिलाफ उकसाने वाली गतिविधियां चला गईं, भारत की तरफ से उन पर सख्त कदम उठाने की अपील की गई, मगर कनाडा सरकार उन पर चुप्पी साधे रही। अब निज्जर की बरसी पर संसद में मौन रखने का प्रकरण एक तरह से भारत को उकसाने का नया प्रयास है।

यह हैरानी की बात है कि निज्जर आखिर कनाडा सरकार को इतना प्रिय क्यों हो गया। आमतौर पर किसी देश की संसद में राष्ट्र के किसी सम्मानित व्यक्ति, किसी हादसे, जनसंहार या युद्ध में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि दी जाती है। ऐसा नहीं माना जा सकता कि निज्जर की गतिविधियों को लेकर कनाडा सरकार अनजान हो। भारत ने उसे आतंकवादियों की सूची में डाल रखा था। आतंकवाद के खिलाफ भारत की कटिबद्धता भी कनाडा से छिपी नहीं है। फिर भी कनाडा सरकार निज्जर की हत्या को इतना तूल दे रही है, तो इससे यही जाहिर होता है कि न तो वह आतंकवाद पर अंकुश लगाने को लेकर गंभीर है और न भारत के साथ अपने रिश्ते बेहतर बनाने को लेकर। अगर ट्रूडो सरकार भारत के साथ बातचीत आगे बढ़ाने की इच्छुक होती, तो निज्जर को इतना महत्त्व न देती कि संसद में उसे श्रद्धांजलि दी जाती। यह तो स्पष्ट है कि इस तरह निज्जर को महत्त्व देकर ट्रूडो वहां रह रहे सिख समुदाय का जनाधार अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहे हैं, इसका कुछ लाभ शायद इस चुनाव में उनकी पार्टी को मिल भी जाए, मगर इससे भारत के साथ जो रिश्ते खराब हो रहे हैं, उसकी भरपाई आसान नहीं होगी।

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अलग खालिस्तान की मांग को लेकर चलाई जा रही हिंसक मुहिम से कनाडा सरकार अनजान नहीं है और न वह इस बात से बेखबर है कि किसी भी देश में चलाई जाने वाली कोई भी अलगाववादी गतिविधि दहशतगर्दी के दायरे में आती है। पंजाब के लोग खुद अलग राज्य का मुद्दा नहीं उठाते, मगर कनाडा, अमेरिका, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया आदि देशों में जाकर बस गए और वहां की नागरिकता ले चुके कुछ लोग इसे लेकर उपद्रव करते देखे जाते हैं, तो उन पर अंकुश लगाने में मदद करने के बजाय अगर वहां की सरकारें उन्हें प्रश्रय देती हैं, तो इसे किसी भी रूप में स्वस्थ कूटनीति नहीं कहा जा सकता। इससे आतंकवादियों का मनोबल बढ़ता है और आखिरकार इसका खमियाजा किसी एक देश को नहीं, सारी दुनिया को भुगतना पड़ता है। कनाडा सरकार के जवाब में भारत ने कनिष्क विमान हादसे की बरसी मनाने का फैसला किया है। ऐसे तनातनी वाले वातावरण से आखिरकार नुकसान कनाडा को ही अधिक होगा।

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