scorecardresearch
For the best experience, open
https://m.jansatta.com
on your mobile browser.

Jansatta Editorial: प्रतिवर्ष दुनियाभर में होने वाली हर आठ मौत में से एक का कारण जीवाणु संक्रमण, चिंता करने की जरूरत

जिस तरह जलवायु परिवर्तन के खतरे बढ़ रहे हैं, उनका सबसे अधिक असर लोगों की सेहत पर पड़ रहा है। नए-नए किस्म के जीवाणु पैदा हो रहे हैं और अगर समय रहते उन पर काबू न पाया जाए, तो वे जानलेवा साबित होते हैं।
Written by: जनसत्ता | Edited By: Bishwa Nath Jha
नई दिल्ली | Updated: May 25, 2024 07:11 IST
jansatta editorial  प्रतिवर्ष दुनियाभर में होने वाली हर आठ मौत में से एक का कारण जीवाणु संक्रमण  चिंता करने की जरूरत
प्रतीकात्मक तस्वीर। फोटो -(इंडियन एक्सप्रेस)।
Advertisement

हमारे जीवन में बहुत सारी बीमारियां स्वच्छता संबंधी आदतें न अपनाने और जीवाणु-रोधी उपायों पर गंभीरता से ध्यान न दे पाने की वजह से पैदा हो रही हैं। लांसेट पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया है कि अगर ठीक से संक्रमण रोकने संबंधी उपाय किए जाएं तो निम्न-मध्यम आय वाले देशों में करीब साढ़े सात लाख जान बचाई जा सकती है।

Advertisement

इन उपायों में हाथों की सफाई, अस्पतालों और स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों में नियमित रूप से साफ-सफाई, उपकरणों का रोगाणुनाशन, पीने के लिए स्वच्छ जल मुहैया कराना, सही तरीके से साफ-सफाई रखना और बच्चों को सही समय पर टीके लगवाना शामिल है। अनुसंधानकर्ताओं के अंतरराष्ट्रीय दल ने अनुमान लगाया कि हर वर्ष दुनियाभर में होने वाली हर आठ मौत में से एक का कारण जीवाणु संक्रमण होता है।

Advertisement

अनुसंधानकर्ताओं ने रोगाणुरोधी प्रतिरोध की स्थिति से प्रभावी तौर पर निपटने के लिए लोगों की एंटीबायोटिक तक आसान पहुंच मुहैया कराने का आह्वान किया है। अगर ऐसा न किया गया तो बच्चों को बचाने और उन्हें लंबे समय तक स्वास्थ्य रखने के संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करने में मुश्किलें बनी रहेंगी। गर्भवती महिलाओं और बच्चों को नियमित टीके लगाकर करीब 1.82 लाख लोगों की जान बचाई जा सकती है। यह कोई कठिन काम नहीं है, मगर अफसोस कि एक बड़ी आबादी इन सुविधाओं से वंचित है।

जिस तरह जलवायु परिवर्तन के खतरे बढ़ रहे हैं, उनका सबसे अधिक असर लोगों की सेहत पर पड़ रहा है। नए-नए किस्म के जीवाणु पैदा हो रहे हैं और अगर समय रहते उन पर काबू न पाया जाए, तो वे जानलेवा साबित होते हैं। हालांकि अनेक संक्रामक रोगों पर काबू पाने के मकसद से गर्भवती महिलाओं और बच्चे के पैदा होने के बाद से ही टीके लगाए जाने शुरू हो जाते हैं। मगर इसमें भी बहुत सारे लोग अनजाने में या स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच न हो पाने के कारण लापरवाही बरतते देखे जाते हैं।

Advertisement

पोलियो इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जिसमें वर्षों से पोलियो की खुराक दी जाने के बावजूद देश अभी तक पूरी तरह पोलियोमुक्त नहीं हो पाया है। मलेरिया, हेपेटाइटिस, जापानी बुखार जैसी बीमारियां जब-तब सिर उठा लेती और जानलेवा साबित होती हैं। इस सच्चाई से मुंह नहीं फेरा जा सकता कि हमारे देश की एक बड़ी आबादी प्रदूषित वातावरण में रहने और काम करने को मजबूर है। एक बड़ी आबादी आज भी पीने के साफ पानी से महरूम है। ऐसे में संक्रामक बीमारियों पर काबू पाना कठिन बना हुआ है।

Advertisement

दूसरी बड़ी समस्या तमाम दावों और वादों के बावजूद सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के बुनियादी ढांचे को संतोषजनक न बनाया जा सकना है। इसलिए एंटीबायोटिक दवाओं की उपलब्धता सभी तक संभव नहीं हो पाती। महानगरों में फिर भी कुछ बेहतर स्थिति देखी जा सकती है, पर ग्रामीण इलाकों के बहुत सारे लोग स्वच्छता उपायों के मामले में वंचित ही देखे जाते हैं।

बड़ी आबादी को पीने का पानी तक उपलब्ध नहीं है, इसलिए नहाने-धोने, साफ-सफाई के मामले में लापरवाह देखे जाते हैं। उन इलाकों में जब संक्रामक रोग फैलते हैं, तो संभालना मुश्किल हो जाता है। यह अकारण नहीं है कि संक्रामक रोगों से ज्यादातर शिशु मृत्यु ऐसे ही इलाकों में होती है, जहां स्वच्छता की कमी है। लांसेट के ताजा अध्ययन पर सरकारें कितनी गंभीरता से ध्यान देंगी, देखने की बात है।

Advertisement
Tags :
Advertisement
Jansatta.com पर पढ़े ताज़ा एजुकेशन समाचार (Education News), लेटेस्ट हिंदी समाचार (Hindi News), बॉलीवुड, खेल, क्रिकेट, राजनीति, धर्म और शिक्षा से जुड़ी हर ख़बर। समय पर अपडेट और हिंदी ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए जनसत्ता की हिंदी समाचार ऐप डाउनलोड करके अपने समाचार अनुभव को बेहतर बनाएं ।
×
tlbr_img1 Shorts tlbr_img2 खेल tlbr_img3 LIVE TV tlbr_img4 फ़ोटो tlbr_img5 वीडियो