Jansatta Editorial: इजराइल- हमास युद्ध के बीच फिलिस्तीन को एक देश के रूप में मान्यता देने की घोषणा नए समीकरण के संकेत
जिस दौर में इजराइल और हमास के बीच का संघर्ष अपने सबसे तीखे चरण में चल रहा है, उसमें तीन यूरोपीय देशों की ओर से फिलिस्तीन को एक देश के रूप में मान्यता देने की घोषणा अंतरराष्ट्रीय राजनीति के लिहाज से एक बेहद अहम घटनाक्रम है। माना जाता है कि चूंकि अमेरिका इजराइल के साथ आमतौर पर खड़ा दिखता है, इसलिए इसका असर यूरोप पर भी होता रहा है।
यही वजह है कि ज्यादातर यूरोपीय देश फिलिस्तीन के खिलाफ इजराइल के आक्रामक रवैये के बावजूद या तो चुप रहने या फिर नरम रुख अख्तियार करने का रास्ता अपनाते हैं। ऐसे में स्पेन, नार्वे और आयरलैंड की ओर से फिलिस्तीन को एक देश के रूप में मान्यता देने की घोषणा निश्चित रूप से नए समीकरण खड़े कर सकता है। इस फैसले से इजराइल का परेशान होना स्वाभाविक है, क्योंकि फिलहाल उसे अंतरराष्ट्रीय समर्थन की जरूरत महसूस हो रही है। यही वजह है कि उसने इन तीनों देशों के रुख को आतंकवाद को पुरस्कृत करना बताते हुए वहां से अपने राजदूतों को वापस बुला लिया है।
इस मसले पर नार्वे ने साफ कहा कि अरब शांति योजना के लिए फिलिस्तीन को एक देश के रूप में मान्यता देना जरूरी है। स्पेन और आयरलैंड ने भी इस कदम का उद्देश्य इजराइल-फिलिस्तीन संघर्ष को द्वि-राष्ट्र समाधान के जरिए हल करने में मदद करना बताया है। गौरतलब है कि इजराइल पर हमास के हमले के बाद वैश्विक स्तर पर इजराइल के प्रति सहानुभूति का रुख सामने आया था।
मगर उसके बाद इजराइल के बेलगाम हमले और उसमें पैंतीस हजार से ज्यादा फिलिस्तीनी आम लोगों के मारे जाने के बाद अब उसके प्रति समर्थन में तेजी से कमी आ रही है। ऐसे में इजराइल का पक्ष लेने के बजाय अगर स्पेन, नार्वे और आयरलैंड ने फिलिस्तीन को एक देश के रूप में मान्यता देना तय किया है तो यह एक तरह से इजराइल के रवैये पर सवाल उठाना भी है।
हालांकि इससे वैश्विक स्तर पर स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्वीकार किए जाने के मामले में फिलिस्तीन की राह के रोड़े खत्म नहीं हुए हैं, लेकिन इतना तय है कि स्पेन, नार्वे और आयरलैंड के ताजा रुख से यूरोप के कुछ अन्य देशों पर भी फिलिस्तीनियों के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन करने का दबाव बढ़ेगा।