Jansatta Editorial: अस्पताल में महिला डाॅक्टर से छेड़छाड़ के एक आरोपी को गिरफ्तार करने गई पुलिस की कार्रवाई सवालों के घेरे में
उत्तराखंड के ऋषिकेश स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी एम्स में महिला चिकित्सक से छेड़छाड़ के एक आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए वहां की पुलिस की सक्रियता हैरान करने वाली है। गौरतलब है कि मंगलवार की रात आरोपी को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस की टीम अपनी जीप लेकर आपातकालीन मरीजों को ले जाने वाले रास्ते से अस्पताल की चौथी मंजिल पर चढ़ गई।
इस घटना के बहुप्रचारित वीडियो में यह साफ दिखा कि पुलिस की जीप अस्पताल के वार्ड में एक गलियारे से गुजर रही है, वहां मौजूद मरीज और उनके परिजन हैरानी से यह सब देख रहे हैं और इस बीच अस्पताल के सुरक्षाकर्मी दोनों तरफ मरीजों से लदे स्ट्रेचर को जल्दी-जल्दी किनारे कर रहे हैं, ताकि जीप आसानी से आगे निकल सके। इसके बाद आरोपी को पुलिस गिरफ्तार करके ले गई। निश्चय ही इसमें पुलिस की सक्रियता दिखती है, मगर सवाल है कि अस्पताल जैसी जगह में इस तरह जाने की क्या जरूरत थी!
यह समझना मुश्किल है कि अगर आरोपी अस्पताल के भीतर था, तो उसे गिरफ्तार करने या किसी अनहोनी की आशंका से उसे सुरक्षित बाहर निकालने के लिए पुलिस को अपनी गाड़ी लेकर चौथी मंजिल पर ले जाना एकमात्र विकल्प कैसे था! अस्पताल में मरीजों के इलाज और उनकी देखरेख में कोई भी बाधा या अव्यवस्था पैदा होने जैसी किसी गतिविधि की इजाजत नहीं होती।
यहां तक कि मामूली शोर से भी बचने के पूरे इंतजाम किए जाते हैं, ताकि किसी रोगी की परेशानी न हो। ऐसी जगह में क्या आपातकालीन मरीजों को लाने-ले जाने वाले रास्ते से जीप को चौथी मंजिल पर लेकर जाने के बजाय आरोपी को गिरफ्तार करने का कोई और तरीका नहीं निकाला जा सकता था? इस घटना पर सफाई के तौर पर कहा गया कि अस्पताल में आरोपी के खिलाफ गुस्सा था और उसे सुरक्षित निकालना भी जरूरी था।
मगर इसके लिए अतिरिक्त पुलिसकर्मी बुलाए जा सकते थे। गनीमत है, अस्पताल में भर्ती मरीजों के बीच से जिस तरह पुलिस के वाहन को निकाला गया, उससे कोई नया जोखिम पैदा नहीं हुआ। इससे ऐसी स्थितियों से निपटने में पुलिस के प्रशिक्षण की कमी स्पष्ट झलकती है।