ना चश्मदीद था और ना सबूत, फिर भी एसिड फेंकने के मामले में युवक को सुना दी गई सजा, HC को पता चला तो समझाया कानून
एक लड़की पर घर में घुसकर एसिड फेंकने के मामले में ट्रायल कोर्ट ने भावुक होकर सजा सुना दी। हाईकोर्ट में मसला पहुंचा तो जस्टिस भी हैरत में रह गए। बगैर किसी ठोस गवाह और पुख्ता सबूत के ट्रायल कोर्ट ने ये फैसला दिया था। हाईकोर्ट ने दोषी को बरी करते हुए निचली अदालतों को कानून के नुक्ते समझाए। उनका कहना था कि अदालतों को केवल कानूनी पहलुओं पर गौर करके किसी नतीजे तक पहुंचना चाहिए।
मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस वी शिवाननम ने अपने फैसले में कहा कि कोर्ट ऑफ लॉ को किसी नतीजे तक पहुंचने से पहले उन सभी तथ्यों पर गौर करना चाहिए जो उसके सामने रखे गए हैं। वो चाहे किसी भी पक्ष की तरफ से हो। कोर्ट को अपराध की गंभीरता और मॉरल कन्विक्शन के तहत कोई फैसला नहीं लेना चाहिए। उनका कहना था कि फैसला देते समय काल्पनिक बातों से पूरी तरह से गुरेज किया जाए।
जब तक दोष सिद्ध न हो जाए आरोपी को माना जाए निर्दोष- बोले जस्टिस
जस्टिस वी शिवाननम ने कहा कि भारत में जस्टिस सिस्टम की स्थापना हुई तो सबसे पहला सिद्धांत ये दिया गया कि आरोपी को उस समय तक निर्दोष माना जाए जब तक वो दोषी साबित नहीं हो जाता। उनका कहना था कि एसिड हमले के केस में कोई भी सबूत ऐसा नहीं है जो सही तस्वीर बयां करे। लिहाजा ट्रायल कोर्ट ने जिस शख्स को दोषी मानकर सजा सुनाई है उसे बरी करने में हाईकोर्ट को कोई हिचक नहीं है।
वेदियाप्पन नाम के युवक पर आरोप था कि उसने घर में घुसकर एक लड़की के ऊपर एसिड फेंंका, जिससे उसे काफी चोट पहुंची। दोनों परिवारों के बीच एक दीवार को लेकर पहले भी विवाद था। वेदियाप्पन ने लोअर कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में जो रिव्यू पटीशन दाखिल की उसमें कहा कि उसके खिलाफ कोई भी साक्ष्य या गवाह नहीं है। केवल पीड़िता के परिवार वाले उसके खिलाफ आखिर तक गवाही देते रहे। बाकी सारे सुनवाई के दौरान ही अपने बयानों से पलट गए। पीड़िता और उसकी मां ने भी अपने बयान में कहा है कि एसिड फेंकने वाले को उन्होंने ठीक से नहीं देखा था।