मठों के रास्ते तमिलनाडु में पैठ बनाने की भाजपा की कोशिश आसान नहीं, राजनीति में हाशिये पर है अधीनम की पकड़
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथ से नए संसद भवन के उद्घाटन के समय प्रमुख भूमिका में तमिलनाडु के मठों या अधीनम (Adheenams) के पुजारी थे। यह इस बात का संकेत है कि भाजपा राज्य में पैठ बनाने के लिए बहुत कठिन प्रयास कर रही है। उसको उम्मीद है कि ऐसे कार्यों से उसको आगे बढ़ने में मदद मिलेगी। हालांकि, राज्य की संस्कृति के तमाम पक्षों में जहां भाजपा का रवैया विरोधी की तरह होता है, वहां मठों की कहानी उतनी सरल या सीधी नहीं है, जितनी पार्टी चाहती है।
राज्य के इतिहास में उनकी पकड़ धार्मिक से अधिक सांस्कृतिक है
पड़ोसी कर्नाटक में मठ राजनीतिक रूप से प्रभावशाली हैं, लेकिन तमिलनाडु के इतिहास में उनकी पकड़ धार्मिक से अधिक सांस्कृतिक है। तमिलनाडु में क्षेत्र की संस्कृति और भाषा के संरक्षक के रूप में मध्यकालीन युग के आसपास चोल राजवंश के पतन के बाद मठों का जन्म हुआ था। राज्य भर में ये करीब 30 से 40 की संख्या में हैं, लेकिन सक्रिय 20 ही हैं। इन्हें ही अधीनम (Adheenams) कहा जाता है। ये गैर-ब्राह्मण शैव वंशीय हैं।
भक्ति आंदोलन के बाद तमिलनाडु और कुछ हद तक केरल में मठ संस्थाओं में बदल गए। अब वे खुद को व्यक्तिवादी नेतृत्व के बजाए धार्मिक या उसके संप्रदाय के रूप में एक नई पहचान दी। हालांकि भक्ति आंदोलन के उदार, लोकतांत्रिक चरित्र को नहीं छोड़ा।
धीरे-धीरे, विशिष्ट समुदायों के साथ अलग-अलग अधीनम की पहचान की जाने लगी। जैसे शैव पिल्लई और मुदलियार के साथ थिरुवदुथुराई और मदुरै अधीनम, गौंडर के साथ पेरुर और सिरूर, और चेट्टियार के साथ कुंद्राकुडी आदि।
मंदिरों को चलाने के अलावा मठों ने शैव दर्शन और तमिल साहित्य को बढ़ावा दिया, और ताड़ के पत्तों की दुर्लभ पांडुलिपियों का जीर्णोद्धार और प्रकाशन किया। वैष्णव मठों के विपरीत, तमिल साहित्य पर काम करने और उन्हें दस्तावेज करने की एक अच्छी परंपरा के साथ उन्होंने उस भूमिका को बरकरार रखा है। लेकिन, भले ही उन्होंने संसाधनों को अर्जित किया, तमिलनाडु में राजनीति पर अधीनम की पकड़ द्रविड़ विचारधारा के प्रभाव के कारण हाशिए पर रही, जिसमें धार्मिक प्रथाओं का अभिशाप था।
हालांकि, ऐसे मठ हैं जो राजनीति में फंस गए हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध कांची मठ है, जो तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता द्वारा हत्या और उसके मठ प्रमुख की गिरफ्तारी के बाद एक दशक से अधिक समय तक सुर्खियों में रहा। कुंद्राकुडी अधीनम के प्रमुख, कुंद्राकुडी आदिगल, आध्यात्मिक होने के साथ-साथ एक द्रविड़ नेता भी थे, और खुद को पेरियार का अनुयायी कहते थे।