scorecardresearch
For the best experience, open
https://m.jansatta.com
on your mobile browser.

सुधीश पचौरी का कॉलम बाखबर: जनतंत्र का प्रसाद, चुनाव और चैनल में फंसा दर्शक और वोटर

एक चैनल बांड के लाभार्थी दलों के बारे में बताता रहा कि सबसे अधिक भाजपा को मिला। नंबर दो पर तृणमूल कांग्रेस रही। तीसरे पर कांग्रेस रही। चौथे पर एक दक्षिणी दल रहा। सूची में एक भी असली मछली नहीं दिखी।
Written by: सुधीश पचौरी
नई दिल्ली | Updated: March 17, 2024 10:01 IST
सुधीश पचौरी का कॉलम बाखबर  जनतंत्र का प्रसाद  चुनाव और चैनल में फंसा दर्शक और वोटर
‘सीएए’ का मामला इस बार कुछ हट के दिखा। पहले ‘सीएए’ के खिलाफ ‘शाहीनबाग’ की दादियां बोली थीं, इस बार ‘सीएए’ के पक्ष में भुक्तभोगी शरणार्थी बोले हैं।
Advertisement

एक अंग्रेजी चैनल एक बड़ा-सा ‘पोल’ देता और तमिलनाडु तक में भाजपा को दो से छह सीट देता दिखता है! यही राजग को 543 में से 358-398 सीट मिलती दिखाता है, जबकि विपक्षी गठबंधन को सिर्फ 120 सीट देता दिखता है। एक दिन एक हिंदी चैनल ‘बिना एंकर वाला शो’ देता है। शो किसी ‘मछली बाजार’ से कम नहीं दिखता। जितने प्रवक्ता दिखते, सब एक-दूसरे के ऊपर जोर-जोर से बोलते दिखते। जैसा कि रोज के ‘चर्चा कार्यक्रमों’ में दिखता है, वैसा ही यहां भी दिखता रहा। सब अपनी-अपनी हांकते रहे, मानो चैनल से ही चुनाव जीत लेंगे। जो भी हो, ‘कृत्रिम मेधा वाला’ एंकर ‘सना’ को एंकर की तरह पेश करके चैनल ने ‘भावी एंकरी’ के बारे में भी संकेत दे दिया!

Advertisement

अगले रोज अगला झटका यानी चुनाव आयुक्त अरुण गोयल का इस्तीफा। चुनाव सिर पर और चुनाव आयोग अधूरा! नतीजतन, सरकार सक्रिय! तुरंत नियुक्ति समिति की बैठक। बैठक में विपक्ष के नेता शामिल। फिर वही प्रेस से बोलते हुए कि वे असहमत, फिर भी दो आयुक्त सुखबीर संधू और ज्ञानेश कुमार नियुक्त।

Advertisement

फिर एक नेता ने कहा- ‘हिटलर’! एक दाक्षिणात्य ने धमकाया कि जो डीएमके को खत्म करने की बात करेगा उसके टुकड़े-टुकड़े कर देंगे। गनीमत, एकाध को छोड़, इस ‘भड़ास’ को किसी ने तरजीह न दी। एक शाम एक हिंदी चैनल देर तक हिलता रहा और दर्शकों को भी हिलाता रहा। रिपोर्टर कहते रहे कि कुछ ही देर में प्रधानमंत्री का संबोधन होने वाला है। जब-जब ऐसा संबोधन होता है, प्रधानमंत्री कुछ न कुछ ‘सरप्राइज’ देते हैं। पता नहीं आज क्या होगा। कुछ अच्छा ही होने वाला है, लेकिन कुछ देर बाद वही रिपोर्टर कहने लगे कि प्रधानमंत्री ने ट्वीट कर ‘डीआरडीओ’ को ‘मल्टीपल वार हेड’ दागने वाली मिसाइल के लिए बधाई दी है। अब संबोधन नहीं होगा! भइए! ऐसे हड़बड़ाया न करो। पहले खबर पक्की कर लिया करो, फिर बताया करो। खबर तोड़ने के चक्कर खबर की टांग तो न तोड़ो!

फिर आया तीसरा झटका कि ‘सीएए’ आने वाला है और अगले रोज घोषणा कि ‘सीएए’ लागू! इसके बाद फिर वही-वही तर्क-कुतर्क शुरू! तीन-तीन मुख्यमंत्री अलग-अलग कहे कि वे अपने राज्यों में ‘सीएए’ को लागू नहीं करेंगे। यह अल्पसंख्यकों के खिलाफ है। यह विभाजनकारी है। चुनाव के ऐन पहले ही क्यों लाया गया। अरे भाई, क्या अब राज्य केंद्र को चलाएंगे?

Advertisement

बहसों में किसी ने न पूछा कि अगर पहले लाते तो क्या आप स्वागत करते? गृहमंत्री ने स्पष्ट किया कि यह कानून किसी की नागरिकता लेने वाला नहीं, देने वाला है, विपक्ष गलत प्रचार कर रहा है, यह कानून जाने वाला नहीं है। जो पड़ोसी देशों में धार्मिक आधार पर उत्पीड़ित हैं, यह कानून उनको नागरिकता देने के लिए है। बहसों में यह बात भी साफ हुई कि ‘सीएए’ अलग है और ‘एनआरसी’ अलग। एक ने साफ किया कि दशाधिक बरसों से शरणार्थी बनकर रह रहे लगभग तैंतीस हजार लोगों नागरिकता दी जानी है।

एक मुख्यमंत्री ने जैसे ही कहा कि इससे करोड़ों आ जाएंगे… दंगे होंगे… वे लूट करेंगे… वैसे ही सैकड़ों शरणार्थियों ने ऐसा कथन करने वाले मुख्यमंत्री के खिलाफ प्रदर्शन कर अपना विरोध जताया। ‘सीएए’ का मामला इस बार कुछ हट के दिखा। पहले ‘सीएए’ के खिलाफ ‘शाहीनबाग’ की दादियां बोली थीं, इस बार ‘सीएए’ के पक्ष में भुक्तभोगी शरणार्थी बोले हैं। एक नेता कहिन कि इसे रमजान के महीने में लाए हैं, ये मुसमलानों को दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने के लिए है। जवाब में ‘सीएए’ पक्षधर बोले कि ऐसी ही भाषा कभी जिन्ना ने बोली थी।

फिर एक शाम एक अंग्रेजी चैनल ने अपने ‘ओपिनियन पोल’ में राजग को 405 सीट मिलने का दावा किया। सर्वे ने तो यह तक कह दिया कि बंगाल में इस बार भाजपा 25 सीट ले रही है। गुरुवार के दिन ‘एक देश एक चुनाव’ वाली रपट ने विपक्ष को फिर एक झटका दिया! एक शाम खबर रही कि एसबीआइ ने कोर्ट को चुनावी बांडों का सारा विवरण लिफाफे में बंद कर दे दिया है। फिर खबर आई कि आदेशानुसार चुनाव आयोग को भी यह विवरण दे दिया गया है।

अगले ही रोज एक चैनल बांड के लाभार्थी दलों के बारे में बताता रहा कि सबसे अधिक भाजपा को मिला। नंबर दो पर तृणमूल कांग्रेस रही। तीसरे पर कांग्रेस रही। चौथे पर एक दक्षिणी दल रहा। सूची में एक भी असली मछली नहीं दिखी। सब नकली और छोटी मछलियां ही दिखीं! एक विपक्षी प्रवक्ता कहे कि किसने किसको कितना दिया और उसे बदले में क्या-क्या मिला!

कुल रकम देख अपना तो दिल ही डोल गया और अपने महान चुनावी जनतंत्र का खेल भी साफ हो गया कि जनता वोट देती है, लेकिन सेठ नोट देते हैं। तब जाकर अपना जनतंत्र बनता है। जनतंत्र में बड़े को बड़ा प्रसाद है तो छोटे को छोटा प्रसाद। पैसा ही जनतंत्र का प्रसाद है।

Advertisement
Tags :
Advertisement
Jansatta.com पर पढ़े ताज़ा एजुकेशन समाचार (Education News), लेटेस्ट हिंदी समाचार (Hindi News), बॉलीवुड, खेल, क्रिकेट, राजनीति, धर्म और शिक्षा से जुड़ी हर ख़बर। समय पर अपडेट और हिंदी ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए जनसत्ता की हिंदी समाचार ऐप डाउनलोड करके अपने समाचार अनुभव को बेहतर बनाएं ।
×
tlbr_img1 Shorts tlbr_img2 खेल tlbr_img3 LIVE TV tlbr_img4 फ़ोटो tlbr_img5 वीडियो