दुनिया मेरे आगे: हरियाली और प्रकृति का रास्ता, बारिश की पहली बूंद और मधुर संगीत से जगी आशा की उम्मीद
गर्मी की तपिश के बीच बारिश की पहली बूंद जब सुखी और शुष्क जमीन पर पहली बार छन्न से गिरती है, तो उससे उठने वाला मधुर संगीत मन को खुश कर देता है। मानो पूरी धरती खुशी के मारे नृत्य करने लगती है। सूखी हुई धरती और कुम्हलाए हुए पेड़-पौधे, पत्तियों की मन की मुराद पूरी होने पर उनका नृत्य करना तो बनता ही है। दुनिया के सारे संगीत से सुंदर गिरती हुई बारिश की बूंद का संगीत होता है, क्योंकि इस संगीत में जीवन होता है, जीवन की आशा होती है और जीवन की जिजीविषा की पूर्ति होती है। यों भी, जो वस्तु समस्त चर-अचर को जीवन प्रदान करे, वह तो अमृत तुल्य ही होती है।
पहली बूंद और सूखी धरती के मिलने से उठने वाली दुनिया की सबसे मनभावन सुगंधित सौंधी सुगंध आत्मा के पोर-पोर को तृप्त कर देती है। ऐसा लगता है, उसे अपने रोम-रोम में बसा लिया जाए। बारिश में बरसने वाली बूंदें सभी जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों को जीवन की संभावना देती है। ग्रीष्म और सूर्य के तीव्र ताप से त्रस्त असंख्य पीड़ा का बारिश के बादल उपचार कर देते हैं। उसे अपनी शीतलता से सहला कर पीड़ा रहित कर देते हैं। यह सब प्रकृति का एक चमत्कार ही है।
तीन-चार माह की झुलसाने वाली गर्मी के बाद जब मानसून की आमद होती है तो समस्त चर-अचर नतमस्तक होकर उसका स्वागत करते हैं। दरअसल, मानसून अपने साथ ढेर सारी खुशियां और जीवन के स्रोत लेकर आता है। लोक में मानसून की तुलना घर में नववधू के आने से की जाती है, जो धरती पर खुशहाली लेकर आता है। इससे प्रकृति अपना शृंगार करती है। प्रकृति का स्वाभाविक सौंदर्यीकरण सबको आनंदित और आह्लादित कर देता है। मानसून की ठंडी हवा तन-मन को शीतलता से भर देती है। नदी-नाले पोखर गर्मी और ऊंचे तापमान के बीच सूखने के कगार पर होते हैं या सूख चुके होते हैं, उनमें रहने वाले जीव-जंतु या तो मृत्यु की ओर अग्रसर होते हैं या तो अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा करते हैं, लेकिन मानसून आते ही उन सभी को फिर से नवजीवन की आश्वासन मिल जाता है। फिर सभी पहले की तरह पुनर्जीवित, पुष्पित, पल्लवित होने लगते हैं।
धरती पर रह रहे हर प्राणी और जीव-जंतु का एक अहम लक्ष्य होता है अपनी संतति को बढ़ाना और पालन-पोषण करना। मानसून के साथ आए बादल और उससे बरसता पानी उन नवआगंतुकों का स्वागत भोजन और पानी की व्यवस्था करके करता है। उनको सुख-समृद्धि और जीवन देने का आश्वासन देता है। यह सब मानसून के साथ आए हरियाली का ही आशीर्वाद होता है।
हरियाली हम सभी और समूचे जीव-जगत की खुशहाली का मार्ग है। जीवन वहीं पर सबसे समृद्ध रूप में है, जहां हरियाली है। धरती की हरियाली के साथ उपजे अन्न, धन से ही संतति का पालन-पोषण किया जाता है। धरती पर जब हम हरियाली का उत्सव मनाते हैं, तो एक तरह से हम अपनी वर्तमान और भावी पीढ़ी की खुशहाली का उत्सव मनाते हैं। उनकी संपन्नता का उत्सव मनाते हैं। यह उत्सव कोयल की कूक और पपीहे की पीहू-पीहू में हम सुनकर आनंदित होते हैं। जब धरती पर मोर बारिश में भीग कर नृत्य करने लगते हैं तो दरअसल वे सभी जीव-जंतुओं की खुशहाली पर नृत्य करते आनंद मनाने का प्रतीक होता है। प्रकृति बारिश के आते ही एक नया सौंदर्य धारण कर लेती है, जिसमें सब कुछ नूतन लगता है। ऐसा लगता है जैसे धरा कोई व्यक्ति हो और उसे नहला-धुला कर नए वस्त्र पहनाकर उसका साज-शृंगार कर दिया गया हो। और वह एक नई आभा से चमकने लगा हो।
किसान आसमान में उमड़ते-घुमड़ते मानसून को देखकर अपना कुदाल, फावड़ा और हल-बैलों या अन्य खेती के संसाधनों को लेकर खेतों की ओर मस्ती की धुन में चल पड़ता है। इससे सुंदर दृश्य भला धरती पर और क्या हो सकता है! बैलों के गले में बंधी हुई घंटियां जब खेतों में हल के चलने से बजती हैं, तो उससे उठने वाले संगीत से मन भावविभोर हो जाता है। यह खुशी सिर्फ भावनात्मक नहीं होती है। इसके आर्थिक, सामाजिक, गहरे निहितार्थ हैं, जो जीव के जीवन से जुड़े हुए हैं।
हरियाली से हमारा पर्यावरण जितना हरा-भरा रहेगा, उतना ही जीवन में खुशहाली भी रहेगा। चाहे हम जितने भी आधुनिक बन जाएं और चाहे जितने भी आविष्कार कर लें, लेकिन सांस लेने के लिए अभी भी हम पौधों के ही मोहताज हैं। हमने ऐसी कोई भी मशीन ईजाद नहीं की है जो बिना प्रकृति की मदद लिए आक्सीजन का निर्माण कर सके। भोजन-पानी अपनी सभी जरूरतों के लिए प्रकृति की हरियाली पर ही निर्भर है। हम सभी प्रकृति के एक चक्र में बंधे हुए हैं। हम सभी घटक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से एक दूसरे पर निर्भर हैं। इसलिए हम सभी का यह प्रयास रहना चाहिए की धरती पर ज्यादा से ज्यादा हरियाली रहे, ताकि जीव-जगत के जीवन में खुशहाली रहे।