scorecardresearch
For the best experience, open
https://m.jansatta.com
on your mobile browser.

दुनिया मेरे आगे: स्वाद बनाम सेहत, जश्न में फास्ट फूड बनाम पुराने समय का हलवा पूरी और पुदीने की चटनी

यह बेवजह नहीं है कि पारंपरिक भोजन और भोजन शैली की जगह अब तेजी से सिकुड़ती जा रही है। लोगों के स्वाद बदल रहे हैं। इसके प्रति ऐसा आकर्षण पैदा हुआ है कि कुछ लोग मानने लगे हैं कि यह दबी हुई भूख को जाग्रत कर देता है। पिज्जा या बर्गर का नाम लेते ही कुछ लोगों के मन में एक जायकेदार छवि बनने लगती है। पढ़ें पावनी की रिपोर्ट।
Written by: जनसत्ता
नई दिल्ली | Updated: May 14, 2024 09:37 IST
दुनिया मेरे आगे  स्वाद बनाम सेहत  जश्न में फास्ट फूड बनाम पुराने समय का हलवा पूरी और पुदीने की चटनी
स्वाद और जायके की दुनिया में गोते लगाएं।
Advertisement

किसी का जन्मदिन हो, विवाह समारोह या फिर कोई भी मौका, आज देखते ही देखते हर तरह के जश्न में ‘फास्ट फूड’ की उपस्थिति अनिवार्य-सी हो गई है। हमारे समय का हलवा पूरी और पुदीने की चटनी अब चलन से बाहर हो चुके और एक ‘पिछड़ी’ हुई रुचि का खाद्य मान लिए गए हैं। अब कोई इनका जिक्र तक नहीं करना चाहता। पिज्जा और बर्गर की पहुंच तो कस्बे ही नहीं, गांव-गांव तक हो गई है। इसलिए अब पेस्ट्री और पास्ता के लिए गांवों में रहने वालों को शहर नहीं भागना पड़ता।

Advertisement

फास्ट फूड पहुंचाने वाली कंपनियों के पास हैं 24 हजार गांवों के नाम

पेशेवर तौर पर तैयार खाना घर पहुंचाने वाली कुछ कंपनियां तकनीक में ऐसी चाक-चौबंद और मुस्तैद हैं कि बहुत कम वक्त में अपनी छाप छोड़ चुकी है। यहां भी बच्चों का स्वाद बदलने के लिए आती ही जा रही है। भारत के चौबीस हजार से अधिक गांवों के नाम आज पांच फास्ट फूड पहुंचाने वाली कंपनियों के पास दर्ज हैं। आगे भी तैयारी चल रही है।

Advertisement

बच्चों के बदले जा रहे हैं स्वाद, हर तरफ छा जाने की है चल रही तैयारी

गांव में कार्यक्रमों का आयोजन करके शायद बाकी गांवों में छा जाने का लक्ष्य है। माता-पिता का नाम, पास्ता और सैंडविच के प्रकार अब स्कूल जाते बहुत सारे पांच साल के बच्चे को भी याद होते हैं। करीब पांच साल के बच्चे तो मंचूरियन को भी दूर से पहचान लेते है। आज भारतीय समाज मे बच्चों की स्वाद ग्रंथि पर इन मीठे और नमकीन फास्ट फूड ने जितना गहरा स्थान बना लिया है, उतना नवरत्न चटनी, घी आटे का हलवा, लड्डू, नारियल की खीर, पकौड़े, चटपटे आलू जैसे देसी व्यंजन नहीं बना सके।

ये पुरानी चीजें अब भुलाई जा रही हैं। तुरंता आहार या फास्ट फूड के कारोबार में हर दिन नए प्रयोग किए जा रहे हैं। इनका आकार प्रकार, इस्तेमाल होने वाले रसायन, स्वाद, खुशबू, रंग, विविधता, खाने में सुविधाजनक होना फास्ट फूड की लोकप्रियता का प्रमुख कारण है। यह बेवजह नहीं है कि पारंपरिक भोजन और भोजन शैली की जगह अब तेजी से सिकुड़ती जा रही है। लोगों के स्वाद बदल रहे हैं।

Advertisement

इसके प्रति ऐसा आकर्षण पैदा हुआ है कि कुछ लोग मानने लगे हैं कि यह दबी हुई भूख को जाग्रत कर देता है। पिज्जा या बर्गर का नाम लेते ही कुछ लोगों के मन में एक जायकेदार छवि बनने लगती है। एक लत की तरह की रुचि का अध्ययन करने की जरूरत है कि अगर ऐसा होता है तो क्यों होता है! इसमें कौन-सी ऐसी चीज का प्रयोग किया जाता है कि लोग ऐसा सोचने लगते हैं!

आज हालत यह है कि बर्गर का एक टुकड़ा मुंह में रखकर आखें बंद कर आनंद से खाने वाला अगर परांठा खाए तो शायद उसे अरुचि हो। जबकि परांठे के गुण पिज्जा से हर हाल में कई-कई गुना अधिक है। मगर इस पर लोग अब शायद सोचते भी नहीं। दो-तीन दशक पहले तक खाद्य पदार्थ की गुणवत्ता पर गौर किया जाता था। वह ताजा बना हुआ है, यह भी देखा जाता था।

अब ताजा और बासी का कोई प्रयोजन नहीं करना होता। ‘ओवन’ में बस कुछ सेकंड में बासी सैंडविच को गरमागरम ताजा बना लिया जाता है। एक आंकड़े के मुताबिक, कम से कम बीस लाख ‘फास्ट फूड’ के डिब्बे या पार्सल की आपूर्ति केवल राजधानी दिल्ली में होती है। इनमें सैंडविच, पिज्जा, बर्गर आदि खासतौर पर होते हैं। यह हैरानी की बात हो सकती है, मगर इसके साथ ही ठंडे पेयों की बिक्री का आंकड़ा शायद और भी चौंकाए।

स्वाद और जायके की दुनिया में गोते लगाएं और सेहत का रंग रूप भूल जाएं, यही मकसद है फास्ट फूड के कारोबार का। पार्सल को खोलकर उसमें से गरमागरम खाद्य पदार्थ निकालना और फिर आराम से बैठकर इसको एक-एक कौर दांतों से काटकर जीभ से रसीला बनाकर इसमें खो जाना एक तरह की खुशी है। कुछ समय पहले एक पाश्चात्य गायक किसी फास्ट फूड का प्रचार करते हुए इसे चटखारे लेकर खाए जा रहे थे। उनका एक संकेत यह भी था कि भोजन की फिक्र में सिर किसलिए खपाया जाए..! उनको इस तरह देखने वाले लोग भी दाल-चावल रोटी, साग, रायता, पापड़, चटनी भूलकर उसी खाने पर रीझ रहे होंगे। मनमोहक इश्तिहार देखकर मजबूत मन भी उसके साथ हिलने-डुलने लगता है।

बच्चे हों या किशोर, युवा हों या वयस्क, हैसियत का पैमाना मान लिए गए फास्ट फूड के इंद्रजाल में ऐसे फंसते हैं जैसे सांप को रस्सी समझ लिया जाए। विडंबना यह है कि इसके नुकसान झेलने के बावजूद ऐसी नासमझी बरकरार रहती है। इसे सुधारा नहीं जाता। भले ही कब्ज हो, दस्त लग जाए, गला खराब हो, रसायन युक्त खाद्य से बदन ही दुखने लगे, बाल गिरने लगे, दांत खराब हो, कान दुखने लगे। मगर हर अगली भूख को तृप्त करने के लिए फिर उसी सम्मोहन में डूबे रहना लोगों को अच्छा लगता है।

आजकल छोटे-छोटे बच्चे इस तरह के खानपान के शौकीन बनकर इसके अर्ध कल्पित, अर्ध परिचित अर्ध सत्य के भ्रम में सेहत का नुकसान कर रहे हैं। उनके भविष्य को लेकर जरूर चिंतित होना चाहिए। इस तरह के खाने का उद्देश्य न तो किसी की सेहत बनाना है, न किसी को भोजन के माध्यम से अच्छी औषधीय गुण वाले व्यंजन परोसना है। हमारे यहां पारंपरिक भोजन में रायता और चावल को खाने से अतिसार एकदम ठीक हो जाता है।

मूंग दाल का स्वादिष्ट चीला अगर पुदीने की चटनी के साथ खाया जाए तो पेट की समस्या, यानी अपच और कब्ज भी ठीक होती है। नारियल की चटनी और चने की रोटी या भरवां करेला ही मजे से खाया जाए तो पेट के कीड़े मर जाते हैं। प्याज का सलाद खाने से लू नहीं लगती। मेथी की चपाती या पकौड़ी से बदन का दर्द दूर होता है। सवाल है कि हर तरफ पसर रहे बाजार के तुरंता खाने से सेहत में कितना सुधार होता है! अगर केवल स्वाद और आकर्षण में डूबा जाए तो धन तो जाएगा ही, सेहत भी दांव पर लगेगी।

Advertisement
Tags :
Advertisement
Jansatta.com पर पढ़े ताज़ा एजुकेशन समाचार (Education News), लेटेस्ट हिंदी समाचार (Hindi News), बॉलीवुड, खेल, क्रिकेट, राजनीति, धर्म और शिक्षा से जुड़ी हर ख़बर। समय पर अपडेट और हिंदी ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए जनसत्ता की हिंदी समाचार ऐप डाउनलोड करके अपने समाचार अनुभव को बेहतर बनाएं ।
×
tlbr_img1 Shorts tlbr_img2 खेल tlbr_img3 LIVE TV tlbr_img4 फ़ोटो tlbr_img5 वीडियो