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कोर्ट में विचाराधीन मामलों के खिलाफ भी लोग कर सकते हैं विरोध प्रदर्शन, जानिए आंध्र प्रदेश HC ने और क्या कहा

आंद्र प्रदेशः जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और बीएस भानुमति की डबल बेंच ने कहा कि अगर कोई अपनी समस्या के निवारण के लिए कोर्ट का रुख करता है तो भी उसे विरोध करने का हक है। ऐसा करने से सरकार का ध्यान उसकी समस्या पर जाता है।
Written by: जनसत्ता ऑनलाइन | Edited By: शैलेंद्र गौतम
February 28, 2022 14:50 IST
कोर्ट में विचाराधीन मामलों के खिलाफ भी लोग कर सकते हैं विरोध प्रदर्शन  जानिए आंध्र प्रदेश hc ने और क्या कहा
प्रतीकात्मक तस्वीर (Source- Indian Express)
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विरोध प्रदर्शनों से सरकारों की दम अक्सर फूलता दिखता है। लेकिन आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट को लगता है कि लोग अपने मुद्दों के लिए आवाज उठाते हैं तो इसमें कोई गलत बात नहीं है। कोर्ट ने यहां तक कहा कि उनके पास विचाराधीन मामलों को लेकर भी लोग अगर प्रदर्शन करते हैं तो कोई गलत बात नहीं है। उन्हें अपने हक के लिए विरोध का रास्ता अपनाने का पूरा हक है।

जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और बीएस भानुमति की डबल बेंच ने कहा कि अगर कोई अपनी समस्या के निवारण के लिए कोर्ट का रुख करता है तो भी उसे विरोध करने का हक है। ऐसा करने से सरकार का ध्यान उसकी समस्या पर जाता है। अदालत का कहना था कि कोर्ट तय कानूनी नियमों के आधार पर ही किसी मामले को देखता है। ऐसे में विरोध करना गलत नहीं है।

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एक शख्स ने याचिका दाखिल करके सरकार की अधिसूचना खारिज करने की हाईकोर्ट से अपील की थी। रिवाइज्ड पे स्केल को लेकर दाखिल याचिका पर एडवोकेट जनरल ने कहा कि जब इस मामले में कोर्ट में याचिका दाखिल हो चुकी है तो विरोध प्रदर्शन या हड़ताल करना गलत है। ऐसा करने से सरकारी मशीनरी पर बेवजह दबाव पैदा होता है। उनका कहना था कि संविधान की धारा 19(1) सभी नागरिकों को अपने विचारों की अभिव्यक्ति की आजादी देती है लेकिन इससे उन्हें मनमुताबिक कुछ भी करने की आजादी नहीं मिल जाती है।

हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई पर स्वीकृति देते हुए कहा कि नागरिकों को उनके अधिकारों से वंचित न किया जाए। खास बात है कि बीते साल अक्टूबर में किसान आंदोलन से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएम खानविलकर और सीटी रविकुमार की बेंच ने कहा था कि जब मामला कोर्ट में है तो फिर किसान धरने पर क्यों बैठे हुए हैं? हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की ही दूसरी बेंच ने इस मामले में कहा था कि वो किसानों के विरोध के खिलाफ नहीं हैं। लेकिन विरोध रास्तों को ब्लॉक करके नहीं किया जाना चाहिए। ये गलत है।

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