MLA की हत्या से पहले शख्स ने खरीदी 8 हजार की दवा तो NIA ने लगा दिया UAPA, सुप्रीम कोर्ट ने फटकार लगा कराया रिहा
तेलगू देशम पार्टी के विधायक और पूर्व विधायक की हत्या के मामले में गिरफ्तार किए गए दो आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट ने UAPA के केस में जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया। एजेंसी की दलील थी कि आरोपी ने हत्याकांड से पहले 8 हजार की दवाएं खरीदी थीं। ये उस माओवादी ग्रुप को दी गईं जिसके ऊपर हत्या का आरोप है। सुप्रीम कोर्ट ने एजेंसी के वकील को फटकार लगाते हुए कहा कि कोई दवा खरीदता है तो क्या आप UAPA लगा दोगे। इससे क्या बात साबित होती है। क्या दवा खरीदना कोई जुर्म है। इससे ये कहां साबित हुए कि आरोपी हत्याकांड में शामिल था।
2018 में हुई थी तेलगू देशम पार्टी के विधायक और पूर्व विधायक की हत्या
दरअसल तेलगू देशम पार्टी के विधायक किदारी सरवेश्वर राव और पूर्व विधायक सिवेरी सोमा की 23 सितंबर 2018 को विशाखापत्तनम में हत्या कर दी गई थी। सरवेश्वर राव तेलगू देशम पार्टी के व्हिप भी थे। वारदात वाले दिन ही उनके पीए ने पुलिस में 45 लोगों के खिलाफ केस दर्ज कराया था। ये सभी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (Maoist) के सदस्य थे। UAPA के पहले शेड्यूल में इस संगठन को आतंकी माना गया है। ये केस NIA ने तुरंत अपने हाथ में ले लिया। आरोपी नंबर 46 और 47 को एजेंसी ने 13 अक्टूबर 2018 को गिरफ्तार किया था। 10 अप्रैल 2019 में चार्जशीट पेश की गई।
मामले में 79 आरोपी, कुल 144 गवाह
एजेंसी ने अपनी चार्जशीट में दोनों नेताओं की हत्या के मामले में 79 लोगों को आरोपी बनाया। पहले ये तादाद 85 थी। मामले में कुल 144 गवाह हैं। NIA की तरफ से पेश सीनियर एडवोकेट केएम नटराज ने जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस राजेश बिंदल की बेंच से कहा कि आरोपी नंबर 46 की निशानदेही पर बहुत सारी ऐसी चीजें बरामद की गईं जो विस्फोट करने में इस्तेमाल होती हैं।
उनका कहना था कि आरोपी ने 16 जनवरी 2019 को पूछताछ के दौरान माना था कि उसने तकरीबन 8 हजार रुपये की दवाएं खरीदकर आतंकी संगठन तक पहुंचाईं। एजेंसी का दावा था कि आरोपी नंबर 46 और आरोपी नंबर 47 हत्या के 18 दिनों पहले तक एक दूसरे के संपर्क में थे। बाद में आरोपी नंबर 47 का फोन स्विच ऑफ हो गया।
सुप्रीम कोर्ट ने पूछा- दवा खरीदना कबसे जुर्म हो गया, हटा दिया UAPA
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस राजेश बिंदल की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि वारदात से अरसा पहले दवाएं खरीदना कब से जुर्म हो गया। आपने UAPA भी लगा दिया। जबकि जिस माओवादी के कहने पर दवाएं खरीदी गई थीं, उसे अदालत जमानत पर रिहा कर चुकी है। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि दोनों आरोपियों ने गिरफ्तारी के तुरंत बाद बयान दे डाले। जबकि उनकी अरेस्ट को पुलिस ने थाने में दर्ज भी नहीं किया था। ये चीज सबसे बड़ा संदेह पैदा करती है। अदालत का कहना था कि जो भी चीजें आपने दोनों के खिलाफ दिखाई उन्हें देखकर नहीं लगता कि दोनों के खिलाफ UAPA के सेक्शन 43D का सब सेक्शन (5) लागू होता है। सुप्रीम कोर्ट ने NIA की स्पेशल कोर्ट को आदेश दिया दोनों को 1 हफ्ते के भीतर रिहा किया जाए।