Shivaji’s Great Escape: जानिए औरंगजेब के शासनकाल के दौरान आगरा में क्या हुआ था?
महाराष्ट्र सरकार में बीजेपी कोटे से मंत्री मंगल प्रभात लोढ़ा ने सीएम एकनाथ शिंदे की तुलना शिवाजी महाराज से की तो बेवजह बवाल खड़ा हो गया। दरअसल उनका कहना था कि जैसे शिवाजी ने औरंगजेब की कैद से निकलकर स्वतंत्र मराठा साम्राज्य कायम किया, कुछ उसी तर्ज पर शिंदे ने भी उद्धव ठाकरे को धता बताकर महाराष्ट्र में सरकार बनाई। उनके मुताबिक दोनों ने ही ताकत को धता बताकर अपना रास्ता बनाया।
जानते हैं कौन थे शिवाजी
शिवाजी के पिता दक्षिण की सल्तनत में सेनानायक थे। शिवाजी ने अपनी मां जीजाबाई से जो कुछ सीखा उससे उन्हें लगा कि किसी के नियंत्रण में काम करने की बजाए स्वतंत्र मराठा साम्राज्य कायम किया जाए। इसके लिए शिवाजी ने 16 साल की उम्र से ही अपने हाथ दिखाने शुरू कर दिए। कुछ लड़कों को टोला बनाया और फिर शुरुआत हुई किलो पर कब्जा करने की। शिवाजी हल्की घुड़सवार सेना को लेकर शत्रु पर धावा बोलते थे।
इधर शिवाजी खुद को बड़ा बनाने की जुगत भिड़ा रहे थे, उधर औरंगजेब दिल्ली के तख्त पर कब्जे की कोशिश कर रहा था। उस समय तक दक्षिण में कई ताकते सक्रिय थीं। लेकिन शिवाजी उन सभी को नीचा दिखाकर अपने रूतबे और इलाकों में इजाफा करते रहे। औरंगजेब दिल्ली के तख्त पर बैठा तो उसे शिवाजी की बढ़ती ताकत का एहसास हुआ। उसने उन्हें काबू में करने के लिए 1 लाख की भारी भरकम सेना को भेजा। औरंगजेब सूरत पर हुए हमले के बाद बौखला गया था। ये शहर मुगलों के लिए सोने का अंडा देने वाली मुर्गी की तरह से था। 1664 में उन्होंने सूरत पर हमला बोला तो वहां का गवर्नर कहीं जाकर छिप गया। औरंगजेब के लिए ये हार कभी न हजम होने वाली थी। उसने राजा जयसिंह को 1 लाख सैनिकों की कमान सौंपी।
शिवाजी ने राजा जयसिंह से जमकर लोहा लिया। लेकिन आखिर में उन्हें पुरंदर के किले में जाकर छिपना पड़ा। 1666 में उन्हें औरंगजेब के दरबार में ले जाया गया। शिवाजी ने मुगल बादशाह को बेशकीमती तोहफे दिए। अलबत्ता औरंगजेब ने उनके साथ सम्मानजनक सलूक नहीं किया। शिवाजी को ये बात नागवार गुजरी और उन्होंने मुगल दरबार में ही अपने तेवरों का एहसास औरंगजेब को करा दिया। मुगल बादशाह ने उन्हें कैद कर लिया।
शिवाजी को आगरा में हाउस अरेस्ट में रखा गया। लेकिन उनको पता था कि ज्यादा दिनों तक मुगलों की निगरानी में रहना उनके अपने साम्राज्य के लिए ठीक नहीं होगा। उन्हें कैसे भी करके वहां से भागना होगा। शिवाजी ने जुगत भिड़ाई और बीमारी का बहाना बनाया। कुछ दिनों बाद उन्होंने इच्छा जाहिर की कि वो ब्राह्मणों को कुछ दान करना चाहते हैं। मुगलों ने उनकी बात मान ली। जहां शिवाजी को नजरबंद किया गया था वहां से रोजाना बड़े बड़े टोकरों में मिठाई और फल बाहर जाने लगे। कुछ दिनों तक ये लगातार चला तो मुगल सैनिक बेपरवाह हो गए। शिवाजी ने इसका फायदा उठाया और एक दिन वो एक बड़े से टोकरे में बैठकर खुद और दूसरे टोकरे में अपने बेटे शंभाजी को बिठाकर भाग निकले।
शिवाजी के लापता होने की खबर से औरंगजेब का गुस्सा फूट पड़ा। लेकिन वो हाथ मलकर रह गया। शिवाजी फिर से पुणे में दिखे। हालांकि ये बात कई जगहों पर है कि शिवाजी किस रास्ते से आगरा से पुणे पहुंचे पर इसका कोई पुख्ता प्रमाण कहीं नहीं मिलता कि उन्होंने मुगलों की कैद से निकलने के बाद कौन सा रास्ता पुणे तक पहुंचने के लिए अपनाया। 1669 तक शिवाजी ने अपनी फौज को ताकतवर बनाकर फिर से मुगलों की सांस उखाड़ दी। एक के बाद एक करके कई रियासतों और किलों पर उनका कब्जा होता चला गया।
1674 में उन्होंने अपना राज्याभिषेक कराया और छत्रपति की उपाधि ली। 1680 में जब उनका निधन हुआ तो मराठा साम्राज्य की ताकत से मुगल भी भय खाते थे। उनके जीते जी औरंगजेब कुछ नहीं कर सका। उनके मरने के बाद मुगल बादशाह एक भारी भरकम फौज लेकर खुद दक्षिण को फतह करने निकला और वहीं जाकर जन्नतनशीं हो गया।