scorecardresearch
For the best experience, open
https://m.jansatta.com
on your mobile browser.

बेरोकटोक तीर्थयात्राओं व अंधाधुंध निर्माण से हिमालय क्षेत्र को गंभीर खतरा

उत्तराखंड में दरकते पहाड़, जमीन में धंसते कस्बे, अंधाधुंध निर्माण से हिमालयी क्षेत्र को गंभीर खतरा है।
Written by: Bishwa Jha
May 18, 2023 08:58 IST
बेरोकटोक तीर्थयात्राओं व अंधाधुंध निर्माण से हिमालय क्षेत्र को गंभीर खतरा
जोशीमठ में हालात अब बहुत ज्यादा गंभीर होते जा रहे हैं। (फोटो सोर्स:PTI)।
Advertisement

विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि उत्तराखंड में दरकते पहाड़, जमीन में धंसते कस्बे, रोजाना हजारों की संख्या में बेरोकटोक तीर्थयात्रियों की आमद और अंधाधुंध निर्माण कुछ ऐसे कारक हैं जिनसे संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र को गंभीर खतरा है। उत्तराखंड में भूस्खलन की घटनाएं बढ़ रही हैं। पर्यावरणविदों की नजर में सड़क विस्तार परियोजनाएं एक और महत्त्वपूर्ण कारक हैं जिन्होंने क्षेत्र की स्थिरता के लिए गंभीर खतरा पैदा कर दिया है क्योंकि यह क्षेत्र पहले ही जलवायु जनित आपदाओं के प्रति अत्याधिक संवेदनशील है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने हिमालयी धामों में दर्शनार्थियों की अधिकतम दैनिक संख्या तय करने संबंधी अपने निर्णय को वापस ले लिया था। राज्य सरकार ने पहले चारों हिमालयी धामों-बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री में श्रद्धालुओं की अधिकतम दैनिक संख्या निर्धारित करने का फैसला लिया था।

Advertisement

पर्यावरण कार्यकर्ता अतुल सती के अनुसार कि चार धाम यात्रा के लिए राज्य में आने वाले तीर्थयात्रियों की अधिकतम दैनिक संख्या को सीमित करने का फैसला वापस लेना गंभीर चिंता का विषय है। इससे पहले, दैनिक सीमा यमुनोत्री के लिए 5,500 तीर्थयात्री, गंगोत्री में 9,000, बद्रीनाथ में15,000 और केदारनाथ के वास्ते 18,000 थी। सती ने कहा कि बद्रीनाथ और अन्य तीर्थ स्थलों पर प्रतिदिन तीर्थयात्रियों की बढ़ती संख्या के साथ-साथ वाहनों की संख्या में वृद्धि और आसपास के क्षेत्र में बेरोकटोक निर्माण परियोजनाएं, इस क्षेत्र की पारिस्थितिक और जैविक विविधता के लिए खतरा पैदा कर रही हैं।

जोशीमठ के रास्ते में हेलंग में चार मई को एक पहाड़ दरक गया था। जोशीमठ के बाद उत्तराखंड में और भी कई स्थानों पर जमीन धंस रही है। सती ने कहा कि उत्तराखंड के पहाड़ों में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पहले से ही महसूस किया जा रहा है, बेमौसम बारिश और बर्फबारी से यात्रा के दौरान मुश्किलें पैदा हो रही हैं।

भूवैज्ञानिक सीपी राजेंद्रन ने कहा कि लोगों के अधिक संख्या में आने से यातायात जाम हो जाता है और कचरा भी अधिक निकलता है। ग्लेशियर पिघल रहे हैं और जैव विविधता पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। राजेंद्रन ने कहा कि कचरा फेंके जाने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन के कारण ये भी विलुप्त होने के गंभीर खतरे का सामना कर रहे हैं। पर्यावरणविद् रवि चोपड़ा की अध्यक्षता वाली समिति की 2019 की रपट में चार धाम परियोजना के बारे में बताया गया है। समिति ने चार धाम परियोजना पर सड़क की चौड़ाई 5.5 मीटर तक सीमित करने की सिफारिश की थी।

Advertisement

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2021 में अपने आदेश में सड़क की चौड़ाई 10 मीटर करने की अनुमति दी थी। पर्यावरण शोधकर्ता अभिजीत मुखर्जी ने कहा कि हिमालय में भूस्खलन का प्राथमिक कारण यह है कि सड़कों को चौड़ा करने के लिए ढलानों को काटा जाता है जो पर्वतीय क्षेत्र के लिए गंभीर खतरा है।

Advertisement

Advertisement
Tags :
Advertisement
Jansatta.com पर पढ़े ताज़ा एजुकेशन समाचार (Education News), लेटेस्ट हिंदी समाचार (Hindi News), बॉलीवुड, खेल, क्रिकेट, राजनीति, धर्म और शिक्षा से जुड़ी हर ख़बर। समय पर अपडेट और हिंदी ब्रेकिंग न्यूज़ के लिए जनसत्ता की हिंदी समाचार ऐप डाउनलोड करके अपने समाचार अनुभव को बेहतर बनाएं ।
tlbr_img1 राष्ट्रीय tlbr_img2 ऑडियो tlbr_img3 गैलरी tlbr_img4 वीडियो