राम मंदिर बनाने के बाद भी अयोध्या क्यों हारी BJP? 24 से दो साल पहले ही दरक गई थी जमीन, जानिए इनसाइड स्टोरी
BJP Lost Ram Mandir Constituency Faizabad: फैजाबाद लोकसभा सीट के नतीजे से हर कोई हैरान है। हैरान इसलिए कि आखिर भगवा पार्टी उस लोकसभा सीट से कैसे हार सकती, जहां उसकी सरकार के दौरान अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण कराया था। राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा ऐसे वक्त हुई जब इसी साल देश में लोकसभा चुनाव होने थे। हालांकि, यह भी बीजेपी की एक रणनीति के तहत हुए था, लेकिन इन सबके बावजूद भगवा पार्टी को यहां से करारी हार का सामना करना पड़ा, जो भगवा पार्टी के गले नहीं उतर रहा है।
मगर बीजेपी की सियासी जमीन यहां साल 2022 के विधानसभा चुनाव में ही दरक चुकी थी। वह 2024 के लोकसभा चुनाव आते आते पूरी तरह खिसक गई। इस सीट पर आए नतीजे ने हिंदुत्व के समर्थकों को चिंता में जरूर डाल दिया है, लेकिन बीजेपी ने वक्त रहते उन नतीजों से सबक लिया होता तो शायद पार्टी को इस बार जोर का झटका न लगता।
2022 के चुनाव में भाजपा ने जिले के पांच विधानसभा सीटों में से दो गवां दी थीं। बावजूद इसके भाजपा सजग नहीं हुई, जिसका खामियाजा उसे 2024 के लोकसभा चुनाव में भुगतना पड़ा।
इस पूरी कहानी को समझने के लिए हमें थोड़ा पीछे चलना पड़ेगा। योगी आदित्यनाथ की पहली सरकार 2017 में आई तो उन्होंने अयोध्या को नगर निगम का दर्जा दिया। उस समय अयोध्या की सभी पांच विधानसभा सीटों पर भाजपा ने कब्जा जमाया। इसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को शानदार जीत मिली। इसके बाद 2019 में राममंदिर के हक में निर्णय आया। पांच अगस्त 2020 को अयोध्या में राममंदिर का भूमिपूजन भी हुआ।
अयोध्या के विकास का खाका खींचा गया और यहां ताबड़तोड़ निर्माण कार्य शुरू हो गए। इसके दो साल बाद विधानसभा चुनाव हुए तो भाजपा को अच्छे परिणाम की उम्मीद थी, लेकिन तब भी नतीजे चौंकाने वाले रहे।
2022 के चुनाव में अयोध्या जिले की पांच में से दो विधानसभा सीटें क्रमशः गोसाईगंज और मिल्कीपुर सीट भाजपा जीत नहीं सकी। इन्हें समाजवादी पार्टी ने छीन ली। जिस विधानसभा में राममंदिर का निर्माण हो रहा है, वहां भी भाजपा कड़े संघर्ष में जीती थी। अब 2024 के चौंकाने वाले परिणाम की हर कोई समीक्षा कर रहा है।
भाजपा की इस हार के कई कारण गिनाए जा रहे हैं। इस बात की वजह भी तलाशी जा रही है कि 2017 और 2019 में शानदार जीत के बाद ऐसा क्या हुआ कि 2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को दो सीटें गंवानी पड़ीं।
बताया जाता है कि अति उत्साह के भंवर में फंसी भाजपा ने उस दौर की हार की उचित समीक्षा नहीं की। पार्टी के नीति नियंता दो साल पहले के परिणामों से भाजपा की सियासी जमीन दरकने के संकित समझ नहीं सके। राजनीति के जानकारों का कहना है कि दरकती जमीन के संकत भाजपा को लगातार मिल रहे थे, लेकिन हिंदुत्व के रथ पर सवार भाजपा ने स्थानीय मुद्दों और मसलों को दरकिनार किया। इसी का परिणाम अबकी सामने आया।
बीजेपी की इस हार के पीछे बीजेपी महानगर अध्यक्ष कमलेश श्रीवास्तव कहते हैं, 'जनता ने जो जनादेश दिया है, वह स्वीकार है। हमें इस तरह के परिणाम की उम्मीद नहीं थी। चुनाव को लेकर कड़ी तैयारी की गई थी। लोकसभा क्षेत्र के सभी बूथों पर कितने वोट पड़े हैं, इसकी सूची बनाई जा रही है। इसके बाद परिणाम की समीक्षा की जाएगी। बूथ मैनेजमेंट में कहां चूक रह गई इसकी समीक्षा की जाएगी।'
व्यापारियों की नाराजगी और उचित मुआवजा न देना बना हार का कारण
यहां यह समझने की जरूरत है कि साल 2017 और 2019 में शानदार जीत के बाद साल 2022 और फिर 2024 में ऐसा क्या हुआ कि एक के बाद एक चुनाव में भाजपा को शिकस्त मिली। इसको लेकर यहां लोगों ने अपनी राय व्यक्त की है।
एक नतीजा ये निकल कर आया कि साल 2020 में जब यहां विकास कार्य शुरू हुए तो सड़कों के चौड़ीकरण के दौरान बड़ी संख्या में मकान और दुकानें टूटीं। बड़ी संख्या में लोगों का रोजगार छिना। व्यापारी वर्ग का आरोप है कि उन्हें मकानों और दुकानों के अधिग्रहण का उचित मुआवजा नहीं मिला। जो लोग अपनी जमीन से संबंधित कागज पेश नहीं कर सके, बड़ी संख्या में ऐसे लोगों को तो मुआवजा मिला ही नहीं।
चौड़ीकरण में व्यापारियों को उजाड़ना और उचित मुआवजा न देना भाजपा की हार का सबसे बड़ा कारण बना। अयोध्या के हाईप्रोफाइल बनने की वजह से यहां के आम लोगों की सुनवाई न तो भाजपा के नेताओं ने की और न ही यहां की अफसरशाही ने। धीरे धीरे करके लोगों का भाजपा से मोहभंग होता गया।
स्थानीय रिपोर्ट के अनुसार, यहां की व्यापारी वर्ग बीजेपी से नाराज है। एक सराफा कारोबारी ने कहा कि व्यापारी बीजेपी की रीढ़ की हड्डी माने जाते हैं, लेकिन भाजपा इन्हें नहीं साथ सकी। उनकी खुद की दुकान रामपथ पर थी। वह दुकान उजड़ गई, उचित मुआवजा भी नहीं मिला। दुकान के बदले दुकान देने की बात की गई थी, वो वादा भी किया गया। अब अधिक रोड पर दुकान ली है। व्यापारी इससे नाराज हैं।
मोबाइल की दुकान लगाने वाले एक दुकानदार ने बताया कि यहा चौड़ीकरण के दौरान उजड़े व्यापारियों को उचित मुआवजा नहीं दिया गया। श्रृंगारहाट बैरियर के सामने उनकी दुकान थी। चौड़ीकरण में 12 फीट की दुकान मात्र चार फीट की बची है। जो मुआवजा मिला, वह ऊंट के मुंह में जीरा के बराबर रहा।
एक अन्य व्यापारी का कहना है कि सड़क चौड़ीकरण के नाम पर व्यापारियों के साथ अन्याय हुआ है। उनकी भी दुकान सड़क चौड़ीकरण में चली गई और मुआवजे के रूप में सिर्फ एक लाख रुपये मिले। यहां रोज-रोज की बंदिशों से भी व्यापारी परेशान है।
3 महीने में दिलाएंगे उचित मुआवजा: अवधेश प्रसाद
फैजाबाद सीट से नवनिर्वाचित सांसद अवधेश प्रसाद ने कहा कि वो राम तो नहीं हो सकते, लेकिन उनकी मर्यादाओं को कायम जरूर करेंगे। उन्होंने जीत हासिल करने के दूसरे ही दिन प्रेस वार्ता करके दावा किया कि तीन माह के भीतर जिले में भूमि अधिग्रहण की जद में आए व्यापारियों और किसानों को बाजार दर पर मुआवजा दिलाएंगे। उन्होंने 48 घंटे के भीतर इंडिया गठबंधन की सरकार बनने का भी दावा किया है। बुधवार को सहादतगंज स्थित आवास पर कहा कि भारतीय जनता पार्टी ने विकास के नाम पर अयोध्या की जनता को ठगने और छलने का काम किया है। 10 किलोमीटर की परिधि में बसे कुशमाहा, परसपुर, किशुनदास, माझा आदि गांवों में तमाम योजनाओं के नाम पर विभिन्न पाबंदियां लगाई हैं।
उन्होंने कहा कि जमीन अधिग्रहण के नाम पर हो रहे इस गोरखधंधे को तीन माह के भीतर खत्म किया जाएगा। जिन लोगों की जमीनें कौड़ी के दाम ली गई हैं, उन्हें उचित मुआवजा दिलाया जाएगा। सरकार बनाने के लिए इस देश की जनता ने बदलाव की आंधी चलाई है, जिसका नतीजा अयोध्या जैसी सीट है।
सपा सांसद ने कहा कि राष्ट्रपति प्राण प्रतिष्ठा में नहीं आई, लेकिन चुनाव के दौरान दर्शन करने आई। ऐसा कहीं देखने को नहीं मिला। 84 बार मुख्यमंत्री, तीन बार प्रधानमंत्री, कई बार राज्यपाल आए और देश के कोने- कोने से लोगों को यहां लाने का सिर्फ चुनावी मकसद था। जिले की जनता ने जो उम्मीद की है, उस पर खरा उत्तरेंगे। उन्होंने अपनी जीत कहा कि अवधेश प्रसाद राम तो नहीं हो सकते, लेकिन राम की मर्यादाओं को एक सेवक के रूप में कायम करेंगे।
5 साल में पांच फीसदी गिरा भाजपा का जनाधार
2019 के चुनाव की तुलना में इस बार फैजाबाद लोकसभा सीट पर भाजपा का जनाधार पांच फीसदी घट गया है। जबकि 2019 में 2014 के मुकाबले भाजपा के मत प्रतिशत में 20 फीसदी बढ़ोतरी हुई थी। प्रतिष्ठित फैजाबाद सीट पर भाजपा की हार ने कई सवाल खड़े किए गए हैं।
राममंदिर निर्माण के चलते फैजाबाद की सीट पर सबकी निगाहें टिकी थीं। उम्मीद थी कि राममंदिर निर्माण का फायदा भाजपा को जरूर मिलेगा। फिर 30 दिसंबर 2023 से लेकर चुनाव के पहले तक पीएम मोदी अयोध्या तीन वार आए, जबकि मुख्यमंत्री योगी लगभग हर माह अयोध्या का दौरा करते रहते हैं।
जिले में भाजपा के तीन विधायक हैं, लेकिन वे भी कोई करिश्मा नहीं कर सके। राममंदिर का प्रभाव पड़ा न ही मोदी-योगी का जादू चला। अति प्रतिष्ठित सीट पर भाजपा को हार का सामना करना पड़ा।
भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह पहली बार 2014 में चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। मोदी लहर में उन्होंने सपा प्रत्याशी मित्रसेन यादव को हराया था। उन्हें कुल 28 28 प्रतिशत प्राप्त हुए थे। सपा को मात्र 12 फीसदी वोट मिले। 2019 में एक बार फिर लल्लू सिंह ने जीत दर्ज की। उन्होंने सपा के प्रत्याशी आनंद सेन को दोबारा हराया।
इस बार भाजपा के जनाधार में 20 फीसदी की वृद्धि हुई। लल्लू सिंह को 48.65 प्रतिशत प्राप्त हुए थे। 2024 के चुनाव में भी भाजपा को नुकसान हुआ है। भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह को 43.83 प्रतिशत मत प्राप्त हुए हैं, यह मत प्रतिशत 2019 की तुलना में पांच फीसदी कम है।
भितरघात व शहर में कम मतदान ने रोकी भाजपा की राह
भितरघात और शहर में कम मतदान ने बीजेपी को लोकसभा चुनाव में जीत को रोकने में बड़ी भूमिका निभाई। इस बार अयोध्या विधानसभा क्षेत्र उन्हें बड़ी लीड नहीं दे सका। ऐसे में बाकी के चार विधानसभा क्षेत्रों में हुई पराजय की भरपाई नहीं हो सकी और तीसरी बार फैजाबाद सीट पर जीत का सपना टूट गया।
भाजपा के अयोध्या जिले में तीन विधायक हैं। इसमें बीकापुर, रुदौली और अयोध्या विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। मिल्कीपुर सीट पर सपा के अवधेश प्रसाद ने कब्जा जमा लिया था। इस लोकसभा क्षेत्र में शामिल बाराबंकी की दरियावाज सीट पर भी भाजपा का कब्जा है। इसके बावजूद चार विधायक मिलकर चुनाव में कोई खास भूमिका नहीं निभा सके। संगठन में एक खेमा लल्लू सिंह का विरोधी माना जाता है।