Hathras Stampede: हाथरस सत्संग हादसे में अपनों को खोने वालों की क्या गलती, लाशों के ढेर में 'तुम' ना मिलो तो बेहतर, चित्कार का मंजर देख निकल जाएंगे आंसू
Hathras Stampede News: हाथरस सत्संग हादसा क्यों हुआ इससे अब क्या फर्क पड़ता है। जिन्होंने इस हादसे में अपनी जान गवां दी है वे अब लौट कर नहीं आएंगे। लाशों के बीच अपनों को खोजने वाले लोगों के दिलों पर क्या बीत रही होगी, इसकी हम और आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। वे प्रार्थना कर रहे होंगे कि काश इन लाशों की ढेर में मेरी मां का चेहरा ना हो, मेरे पिता भोले बाबा (सूरजपाल) के सत्संग में गए ही ना हो, मगर उनका फोन क्यों नहीं लग रहा। ऐसा तो नहीं है कि इतना कॉल करने पर वे मेरा फोन नहीं उठाते। हाथरस जिले का सिकंदराराऊ क्षेत्र जो दिन में चहक रहा था इस समय सन्नाटे में समाए हुए है।
बाबा के जहां कदम पडे वहां की धूल माथे पर सबसे पहले लगाने की चाह रखने वाले लोग अब इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं। उनके पीछे जो छूट गए हैं वे उन्हें पागलों की तरह खोज रहे हैं। इस हादसे को बयां कर पाना काश इतना आसान होता।
हाथरस में सन्नाटा क्यों पसरा है?
हादसे वाली जगह थोड़ी देर पहले जयकारे से गूंज रही थी, वहां ये अजीब सा सन्नाटा क्यों पसरा है? जयकारे वाली जगह पर अब मातम पसरा है। लोग तो भोले बाबा के पास उम्मीदें लेकर आए थे। अब चारों तरफ लोगों की चीख-पुकार, चिल्ला-चोट क्यों मची है? ये बच्चा मां-मां चिल्ला रहा और वह शख्स भीड़ में अपनी पत्नी को खोज रहा है। पापा कहां गए और बेटे को कौन आवाज लगा रहा है। किसी अपने को खोने की कल्पना मात्र से शरीर में सिहरन पैदा हो जाती है, यहां तो लोग लाशों के बीच अपनों की तलाश कर रहे हैं।
आज सुबह उन्होंने साथ में खाना खाया था, साथ में निकले थे बाबा के सत्संग सुनने। ये बात की थी कि सत्संग से लौटते वक्त कितने काम निपटाने है। कल क्या-क्या करना है। कोई बेटा मन ही मन सोच रहा है कि कितनी बार मना किया था कि मत पड़ो ऐसे बाबाओं के चक्कर में, मगर मां तो मेरी कोई बात ही नहीं मानती है। अब कहां जाऊं, किससे पूछों, कहां खोजूं उसे।
लाशों का ढेर देख पुलिसकर्मी ने तोड़ा दम
हादसे के बाद लाशों की ऐसी ढेर लगी कि उन्हें देखने वाला पुलिसकर्मी बर्दाश्त नहीं कर पाया, वह कमजोर दिल का नहीं था, होता तो पुलिस में नहीं आता मगर उससे यह दर्दनाक सीन देखा नहीं गया औऱ उसकी जान चली गई। सिपाही की पहचान अलीगढ़ के रहने वाले रवि यादव के रूप में हुई है। सिपाही रवि यादव की ड्यूटी शवों की व्यवस्था में लगाई गई थी। एक महिला ट्रक में चार-पांच लाशों के बीच चिल्ला-चिल्ला कर रो रही है। समझ नहीं आता कि ये सीधे-साधे, भोले-भाले लोग इन बाबाओं के चक्कर में पड़ते क्यों है… पढ़े-लिखे लोगों को इन पर शायद गुस्सा भी आता होगा मगर इन सीधे-साधे लोगों को तो यही लगता है कि बाबा का प्रवचन सुनने से उनके सारे दुख दूर हो जाएंगे।
क्यों हुआ हादसा, अपनों की क्या गलती
रिपोर्ट के अनुसार, इस हादसे में अब तक 116 लोगों ने अपनी जान गंवाई है। लोग अलग-अलग लोगों की गलती बता रहे हैं। सरकार की गलती, मैनेजमेंट की गलती, पुलिस की गलती, बाबा की गलती और प्रवचन सुनने वालों की गलती। गलती तो हुई है मगर जो दुनिया छोड़कर जा चुके हैं वे अब लौटने वाले नहीं है। उनके जो अपने हैं उनकी क्या गलती है। वे अब कहां जाएं औऱ क्या करें, कैसे अपनों को वापस ले आएं।
हादसा भगदड़ मचने के कारण हुआ। सोचकर भी रूह कांप जा रही है कि जब एक के बाद लोगों के पैरों तले दबे लोगों की जान गई होगी तो उनपर क्या बीती होगी। बताया जा रहा है कि वहां लोगों के बैठने की व्यवस्था नहीं थी। लगभग 50 हजार लोग पहुंच गए थे। गर्मी काफी पड़ रही है। लोग उमस से परेशान थे। जैसे ही प्रवचन खत्म हुआ लोग भागने लगे। धक्का-मुक्की मची और लोग एक-दूसरे पर गिरने लगे। लोग भागने लगे और पैरों के नीचे दबे लोग उठने की कोशिश करते-करते दुनिया छोड़ गए। जब लोग नीचे दबे होंगे उनकी आंखों के सामने जिंदगी का हर दृश्य गुजरा होगा, उनको पता होगा कि अब वे नहीं बचेंगे…आखिर दम तक कोशिश की होगी मगर जिंदगी की जंग हार गए होंगे।
हादसे को अपनी आंखों से देखने वाली देवी ने मीडिया को बताया कि सत्संग खत्म होने के बाद लोग जब आयोजन स्थल से निकल रहे थे, तो उसी समय भगदड़ मची। उन्होंने बताया कि लोग एक-दूसरे के ऊपर गिरते चले गए। ऐसे हादसे होते रहते हैं, सुर्खियां बनती है, मुआवजा बांटा जाता है और फिर कुछ दिन मुंह से अफसोस जताने के बाद सब भूल जाते हैं, जबतक कोई नया हादसा ना हो जाए।