पी. चिदंबरम का कॉलम दूसरी नजर: विपक्ष के लिए सदन में जनता की आवाज बनने का अवसर, 'न्यायपत्र' के लिए काम करेगी
अठारहवीं लोकसभा के चुनाव नतीजों से एक मजबूत संसदीय विपक्ष सामने आया है, जो सोलहवीं और सत्रहवीं लोकसभा में गायब था। 2014 और 2019 के पिछले दो चुनावों में, कांग्रेस क्रमश: 44 और 52 सीट के साथ मुख्य विपक्षी दल थी और वह विपक्ष के नेता का पद नहीं हासिल कर सकी थी। अन्य सभी गैर-भाजपा दल भी कम सीटें जीत पाए थे। विपक्ष की आवाज भाजपा, उसके चुनाव-पूर्व सहयोगियों और अघोषित सहयोगियों (वाईएसआरसीपी और बीजद) की संख्या और शोर में गुम हो गई थी।
भाजपा ने इस बात पर विचार करने के लिए समय नहीं निकाला कि संख्या में असंतुलन को देखते हुए, संसद की पवित्र परंपराओं को कैसे बनाए रखा जा सकता है। जैसा कि हुआ- और विपक्षी दलों ने बार-बार इसकी शिकायत की- परंपराओं का निर्वाह नहीं किया गया। कई निष्पक्ष पर्यवेक्षकों के अनुसार, संसद के दोनों सदन निष्क्रिय हो गए।
वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों ने सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को संसद की महान परंपराओं को पुनर्जीवित करने का अवसर दिया है। संसदीय लोकतंत्र का स्वरूप ही नहीं, उसके मूल तत्त्व को भी। विपक्ष 236 सीट के साथ मजबूती से अपनी जगह पर है। विपक्ष को अरुण जेटली की इस धारणा को भूल जाना चाहिए कि सदन में बाधा डालना एक वैध संसदीय कार्य है और यह ‘लोकतंत्र के हित में’ होता है। वह एक कल्पना थी और सच इसके बिल्कुल उलट है।
उल्लेखनीय वादे
विपक्ष, कांग्रेस के घोषणापत्र 2024, ‘न्याय पत्र’ से अपनी शुरुआत कर सकता है, जिसमें निम्नलिखित वादे शामिल हैं: हम वादा करते हैं कि संसद के दोनों सदन वर्ष में सौ दिन बैठेंगे और अतीत में प्रचलित संसद की महान परंपराओं को पुनर्जीवित और उनका ईमानदारी से पालन किया जाएगा। हम वादा करते हैं कि सप्ताह में एक दिन प्रत्येक सदन में विपक्ष द्वारा सुझाए गए एजंडे पर चर्चा के लिए समर्पित होगा। हम वादा करते हैं कि दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारी किसी भी राजनीतिक दल से अपना संबंध नहीं रखेंगे, तटस्थ रहेंगे तथा उस पुरानी परंपरा का पालन करेंगे कि ‘अध्यक्ष बोलते नहीं हैं’। ‘इंडिया’ गठबंधन इन वादों को अपनाने और उन्हें पूरा करने के लिए दृढ़ता से लड़ने पर विचार कर सकता है।
भाजपा को सौ दिन की बैठकों, विपक्ष के एजंडे के लिए सप्ताह में एक दिन और तटस्थ पीठासीन अधिकारियों को लेकर कोई वाजिब आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
दलबदल को रोकें
नरेंद्र मोदी और, उनके कारण भाजपा अब भाजपा के लिए 370 और एनडीए के लिए 400 से ऊपर के लक्ष्य के मुकाबले 240 सीटें हासिल करने के झटके से उबर चुकी है। उन्होंने जश्न मनाने की कोशिश की, लेकिन आम लोग जश्न मनाने के मिजाज में नहीं थे। ‘अल्पमत’ का ठप्पा भाजपा नेतृत्व को परेशान करेगा और वे इससे छुटकारा पाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे। आकर्षक लक्ष्य वाईएसआरसीपी (4 सदस्य), आप (3), रालोद (2), जद(सेकु) (2), एजीपी (1), एजेएसयू (1), एचएएम (1) और एसकेएम (1) हैं। जद (एकी) (12) भी सुरक्षित नहीं है।
इनमें से कुछ दल पहले से एनडीए का हिस्सा हैं, लेकिन इससे भाजपा को कोई फर्क नहीं पड़ेगा (याद रखें कि शिवसेना के साथ क्या हुआ था)। संविधान की दसवीं अनुसूची में बहुत सारे छेद हैं, जिनमें छोटे दलों के सांसद फंस सकते हैं। कांग्रेस के घोषणापत्र 2024 में एक बेहतरीन सूत्र था, जो भाजपा की योजना को विफल कर देगा : हम संविधान की दसवीं अनुसूची में संशोधन करने और दलबदल (जिस मूल पार्टी से विधायक या सांसद चुने गए थे, उसे छोड़ना) को विधानसभा या संसद की सदस्यता के लिए स्वत: अयोग्य घोषित करने का वादा करते हैं।
विपक्ष को दसवीं अनुसूची में संशोधन विधेयक लाना चाहिए। अगर वे संशोधन विधेयक का विरोध करते हैं, तो सत्ता पक्ष मतदाताओं की नजर में बदनाम हो जाएगा।
नौकरी के मुद्दे को आगे बढ़ाएं
अर्थव्यवस्था के प्रबंधन के मामले में भाजपा सबसे कमजोर है। जबकि राजकोषीय विवेक या बुनियादी ढांचे के विकास पर कोई भी विवाद नहीं हो सकता है, सभी आर्थिक नीतियों का लक्ष्य लाखों नौकरियों का सृजन और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के दोहरे लक्ष्य को प्राप्त करना होना चाहिए। भाजपा-एनडीए दोनों मामलों में विफल रही है और लोकसभा चुनावों में इसकी कीमत उसे चुकानी पड़ी। क्या भाजपा नेतृत्व अपना रास्ता बदलेगा, यह राष्ट्रपति के अभिभाषण और बजट से पता चलेगा। इस बीच, कांग्रेस और इंडिया गठबंधन को नौकरियों से संबंधित निम्नलिखित एजंडे (कांग्रेस के घोषणापत्र 2024 से लिया गया) पर जोर देना चाहिए।
हम एकाधिकार और अल्पाधिकार और क्रोनी पूंजीवाद के विरोधी हैं।
हम यह सुनिश्चित करेंगे कि कोई भी कंपनी या व्यक्ति वित्तीय या भौतिक संसाधनों, व्यावसायिक अवसरों या रियायतों को अकेले न हड़प ले, जो हर उद्यमी को उपलब्ध होनी चाहिए। हमारी नीतिगत प्राथमिकता उन व्यावसायिक उद्यमों के पक्ष में होगी, जो बड़ी संख्या में नौकरियां पैदा करते हैं। केंद्र सरकार में विभिन्न स्तरों पर स्वीकृत पदों में लगभग तीस लाख रिक्तियों को भरेंगे।
नियमित गुणवत्ता वाली नौकरियों के मुकाबले अतिरिक्त भर्ती के लिए ‘कर क्रेडिट’ हासिल करने के मकसद से कारपोरेटों के लिए एक नई रोजगार-सन्नध प्रोत्साहन (ईएलआइ) योजना बनाएंगे। हम शहरी बुनियादी ढांचे के पुनर्निर्माण और नवीनीकरण में शहरी गरीबों के लिए काम की गारंटी देने वाला एक शहरी रोजगार कार्यक्रम शुरू करेंगे।
जल निकायों की बहाली और बंजर भूमि पुनरुद्धार कार्यक्रम शुरू करके कम शिक्षित, कम कुशल युवाओं को रोजगार प्रदान करेंगे, जिसे ग्राम पंचायतों और नगर पालिकाओं के माध्यम से लागू किया जाएगा। विपक्षी दलों को ऐसे काम करने चाहिए, जैसे कि वे सरकार हों। उन्हें अवसर का लाभ उठाना चाहिए और सरकार के लिए पटकथा तैयार करना चाहिए। यह देखना दिलचस्प होगा कि बहुमत से कम वाली भाजपा नए और ऊर्जावान विपक्ष का किस तरह जवाब देती है।