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Kalki 2898 AD: फिल्म 'कल्कि' में अमिताभ बच्चन निभा रहे हैं अश्वत्थामा का किरदार, जानें कौन है महाभारत का ये शापित योद्धा?

Kalki 2898 AD Ashwathama: फिल्म कल्कि में अमिताभ बच्चन अश्वत्थामा की भूमिका निभाते हुए नजर आ रहे हैं। जानें महाभारत के इस योद्धा के बारे में सबकुछ
Written by: Shivani Singh
नई दिल्ली | Updated: April 23, 2024 13:08 IST
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Amitabh bachchan as Ashwathama: जानें महाभारत के शापित योद्धा अश्वत्थामा की पूरी कहानी (PC-Youtube)
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Kalki 2898 AD Aswatthama: बॉलीवुड के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन और साउथ के सुपरस्टार प्रभास की स्टारर फिल्म 'कल्कि' का टीजर हाल में ही रिलीज हुआ है, जिसमें बिग बी अश्वत्थामा का किरदार निभाते हुए नजर आ रहे हैं। इस टीजर में अमिताभ बच्चन एक पुराने मंदिर में शिवलिंग की पूजा करते नजर जा रहे हैं। जहां पर एक बच्चा पहुंचकर पूछता है कि आखिर वो कौन है? तब बिग बी उसे बताते कि द्वापर युग से अश्वत्थामा है और कैसे सदियों से धरती पर है। आपने अश्वत्थामा के बारे में खूब सुना होगा। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर किसके शाप के कारण वह आज भी धरती लोक में भ्रमण कर रहे हैं। आइए जानते हैं अश्वत्थामा के बारे में रोचक बातें...

कौन थे अश्वत्थामा?

शास्त्रों के अनुसार, अश्वत्थामा द्रोणाचार्य के पुत्र थे। ऋषि द्रोणाचार्य का विवाह कृपाचार्य की बहन कृपि से हुआ था। लेकिन काफी समय होने जाने के बाद भी उन्हें संतान की प्राप्ति नहीं हुई। ऐसे में द्रोणाचार्य और उनकी धर्मपत्नी कृपि से भगवान शिव की कठोर तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया। फिर शिव से प्रसन्न होकर उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया। कुछ समय के बाद कृपि की कोख से अश्वत्थामा का जन्म हुआ।

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भगवान शिव ने दिया था अमरता का वरदान

शास्त्रों के अनुसार कहा जाता है कि जब अश्वत्थामा का जन्म हुआ था, तो उनके माथे में एक मणि थी। इसी मणि के कारण उन्हें कभी भी भूख-प्यास और थकान नहीं लगती थी। वह एक ऐसा शक्तिशाली योद्धा था, जिसे हारना आता ही नहीं था।

कैसे पड़ा अश्वत्थामा नाम?

माना जाता है कि जब अश्वत्थामा का जन्म हुआ, तो वह बिल्कुल एक घोड़े के हिनहिनाने की तरह रोया था। इस कारण उसका नाम अश्वत्थामा रखा गया। इसके साथ ही  अश्वत्थामा भगवान शिव के प्रिय भक्त है।

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भीष्म पितामह ने द्रोणाचार्य को बनाया पांडवों-कौरवों का गुरु

द्रोणाचार्य अपनी पत्नी और पुत्र के साथ हस्तिनापुर के कृपाचार्य के यहां करते थे। कहा जाता है कि एक दिन कौरव और पांडव गेंद खेल रहे थे, तो अचानक उनकी गेंद कुएं में गिर गई। लेकिन काफी मशक्कत करने के बाद भी वह उसे बाहर नहीं निकाल पाएं। संयोगवश वहां से द्रोण निकल रहे थे। उन्होंने राजकुमारों से कहा कि वह उनकी गेंद निकाल देंगे। लेकिन इसके बदले उनके भोजन का इंतजाम करना होगा। इससे बात तो उन्होंने मान ली। इसके बाद द्रोण ने एक-एक तिनका गेंद में मारकर उसे बाहर निकाल दिया। कौरवों और पांडवों ने ये बात भीष्म पितामह को बताया। इसके बाद उन्होंने द्रोण को उनका गुरु बना दिया।

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आधी अधूरी विद्या बनीं अश्वत्थामा के शाप का कारण

द्रोणाचार्य कौरवों और पांडवों को विभिन्न तरह की विद्याओं को सिखाने लगे। इसके साथ ही वह अपने पुत्र अश्वत्थामा को भी विद्या सीखा रहे थे। लेकिन पिता मोह के कारण उन्होंने ठीक ढंग से विद्या नहीं सीखी। ऐसे ही द्रोणाचार्य ने अश्वत्थामा और अर्जुन को ब्रह्मास्त्र की विधि सिखाई। ऐसे में अर्जुन से पूरी विधि सीख ली। लेकिन अश्वत्थामा ने आवाहन करना तो सीख लिया लेकिन उसने वापस भेजना नहीं सीखा। उनकी इसी लापरवाही के कारण महाभारत के युद्ध में उन्हें श्री कृष्ण के शाप का सामना करना पड़ा।

पिता की मृत्यु का लेना चाह बदला

कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के दौरान द्रोणाचार्य को पांडवों के द्वारा हराना काफी मुश्किल था। ऐसे में पांडवों ने अश्वत्थामा को बलि के बकरे के रूप में इस्तेमाल किया। जब युद्ध आरंभ हुआ, तो युधिष्ठिर खूब तेज कहने लगे कि अश्वत्थामा मारा गया घोड़ा या मनुष्य। लेकिन अधिक शोर होने के कारण सिर्फ अश्वत्थामा मारा गया ही सुनाई दिया। जब द्रोणाचार्य के कानों में ये शब्द पहुंचे, तो वह व्याकुल हो गए और युद्ध के मैदान में अपने रथ से उतरकर विलाप करने लगे। ऐसे में भीम ने मौका का फायदा उठाकर उनके सिर पर अपना गदा मार दिया, जिससे द्रोण की वहीं मृत्यु हो गई। इस बात का पता जब अश्वत्थामा को पता चला, तो उसने पांडवों से बदला लेना की कसम खाई।

इस कारण श्री कृष्ण ने दिया उन्हें शाप

महाभारत अपने अंतिम पड़ाव में था। कौरव के साथ-साथ दुर्योधन का भी वध हो गया। लेकिन मरने से पहले उन्होंने अश्वत्थामा को सेनापति बना दिया। महाभारत एक ऐसा युद्ध था, जो सूर्योदय के साथ शुरू होता था और सूर्यास्त के बाद समाप्त हो जाता है। लेकिन अश्वत्थामा ने एक रणनीति बनाई और एक रात पांडवों के शिविर में घुस गया और द्रौपदी के पांच पुत्रों को पांडवों को समझकर वध कर दिया। ऐसे में अर्जुन और अश्वत्थामा आमने-सामने आ गए। लेकिन श्री कृष्ण ने अर्जुन और अश्वत्थामा को शास्त्रों का ज्ञान दिया, जिससे अर्जुन ने तो अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया। लेकिन अश्वत्थामा के पास वापस लेने की विद्या नहीं थी। ऐसे में उसने अपना  ब्रह्मास्त्र अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के कोख में पल रहे बच्चे में छोड़ दिया। लेकिन श्री कृष्ण ने माया से उसके पुत्र को बचा लें। लेकिन इससे पांडव काफी क्रोधित हुए और उन्होंने अश्वत्थामा का वध करने की कोशिश की। लेकिन द्रौपदी ने गुरु पुत्र होने का वास्ता देते हुआ उसे मारना सही न समझकर उसे छोड़ने का निवेदन किया। इसके बाद पांडवों ने द्रौपदी की बात को मानकर अश्वत्थामा के सिर की मणि निकालकर उसे छोड़ दिया। उसकी इन्हीं गलतियों के कारण श्री कृष्ण ने उन्हें धरती में हमेशा भटकने का शाप दे दिया। कहा जाता है कि इसी शाप के कारण आज भी अश्वत्थामा वन-वन भटक रहा है।

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