Akshaya Tritiya 2024: अक्षय तृतीया क्यों मनाते हैं? सतयुग से लेकर परशुराम और श्री कृष्ण से जुड़ी है ये मान्यताएं
Akshaya Tritiya 2024 Date, Time, Puja Muhurat, Katha: हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया का व्रत रखा जा रहा है। पुराणों में अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्तों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन बिना पंचांग देखे ही किसी भी प्रकार के शुभ और मांगलिक कामों को कर सकते हैं काफी शुभ माना जाता है। इस साल की अक्षय तृतीया काफी खास है। इस दिन रवि योग के साथ-साध धन योग, गजकेसरी योग, शुक्रादित्य योग , मालव्य योग के साथ शश राजयोग बन रहा है। ऐसे में इस शुभ योगों में मां लक्ष्मी और भगवान कुबेर की पूजा करने से कई गुना अधिक फलों की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। लेकिन आप क्या ये बात जानते हैं कि आखिरी अक्षय तृतीया क्यों मनाई जाती है। जानें अक्षय तृतीया से जुड़ी सभी मान्यताओं के बारे में...
अक्षय तृतीया 2024 तिथि
हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि की शुरुआत 10 मई को सुबह 4 बजकर 17 मिनट पर होगी और समापन 11 मई को रात 2 बजकर 50 मिनट पर होगा। इसलिए इस बार अक्षय तृतीया 10 मई 2024 को मनाई जाएगी।
क्यों खास होती है अक्षय तृतीया?
हुआ कई युगों का आरंभ
अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्तों में से एक माना जाता है। इसके पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित है। माना जाता है कि इस इस दिन से कई युग जैसे सतयुग, द्वापर और त्रेता युग का आरंभ हुआ था।
अक्षय तृतीया को विष्णु जी के छठवें अवतार का जन्म
इस दिन भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के छठवें अवतार परशुराम जी का जन्म हुआ था। इसी के कारण इस दिन परशुराम जयंती भी मनाते हैं।
महाभारत और अक्षय तृतीया
एक पौराणिक कथा के अनुसार, अक्षय तृतीया से ही सत्य युग यानी स्वर्ण युग की शुरुआत हुआ था। माना जाता है कि इसी दिन से वेद व्यास जी ने गणेश जी के साथ मिलकर महाभारत लिखना आरंभ किया था।
अक्षय तृतीया और श्री कृष्ण-सुदामा मिलन
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन को श्री कृष्ण और सुदामा से भी संबंधित माना जाता है। भगवान श्री कृष्ण का एक मित्र था जिसका नाम सुदामा था। एक बार अक्षय तृतीया के दिन श्री कृष्ण अपने मित्र से काफी समय के बात मिले थे। वह काफी गरीब थे इसलिए अपने परम मित्र से सहायता मांगने के लिए आए थे। जब श्री कृष्ण को सुदामा के बारे में पता चला, तो वह खुद दौड़कर अपने महल के द्वार पर उन्हें लेने गए थे। सुदामा अपने मित्र द्वारा भव्य स्वागत देखकर दंग रह गए थे। ऐसे में श्री कृष्ण ने सुदामा से पूछा कि आखिर भाभी ने मेरे लिए क्या भेजा हैं? लेकिन केवल कच्चे चावल लाने के कारण वह शर्मिंदा हो गए और वह अपने मित्र को न दे सके। लेकिन श्री कृष्ण के जिद करने पर उन्हें वह चावल की पोटली उनके तरफ बढ़ा दी। श्री कृष्ण मे बिना संकोच किए उन चावलों को खा लिया। इसके साथ ही सुदामा से इतने साल बाद आने का कारण पूछा। तो उन्होंने संकोच में अपने मित्र को कुछ नहीं बताया। इसके बाद वह अपने मित्र श्री कृष्ण के पास कुछ जिन रहकर बिना कुछ मांगे अपने घर की ओर निकल गए। लेकिन जैसे ही वह अपने घर के पास पहुंचे, तो वह अचंभित हो गए कि उनकी झोपड़ी की जगह इतना भव्य महल बना हुआ है, जिससे उन्हें लगा कि वह रास्ता भटक गए है। जैसे ही सुदामा की पत्नी को पता चला कि उनके पति आए है, तो वह खुद द्वार में उनके आदर के लिए पहुंची। गहनों से लदी अपनी पत्नी को देख वह उनके कहने लगे कि देवी शायद में गलत जगह आ गया हूं। तब पत्नी ने पूरी घटना बताई। जब सुदामा को इस बात का अहसास हुआ कि यह उन्हीं का महल है, तो वह भाव विभोर हो गए कि अपने परम मित्र से बिना कुछ कहें उन्होंने सबकुछ पा लिया। इसी के कारण इस दिन को अक्षय तृतीया के रूप में मनाते हैं।
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