क्या खत्म हो जाएगी बदरुद्दीन अजमल की पार्टी? 2026 में विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन से होगा फैसला
लोकसभा चुनावों में खराब प्रदर्शन के बाद राजनीतिक तौर पर बदरुद्दीन अजमल बुरे दौर से गुजर रहे हैं। अब लोकसभा में उनकी पार्टी का प्रतिनिधित्व खत्म हो गया है। ऐसे में उनकी पार्टी AIUDF के सामने सिर्फ यह उम्मीद बचती है कि वह 2026 के असम विधानसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करें।
10 लाख से ज्यादा वोटों से हार गए अजमल
साल 2005 AIUDF के गठन के बाद से पार्टी के मुखिया बदरुद्दीन अजमल लगातार तीन बार धुबरी लोकसभा क्षेत्र से चुनकर लोकसभा जा रहे थे। इस बार वह ना केवल अपनी सीट हार गए बल्कि कांग्रेस के रकीबुल हुसैन से उन्हें 10 लाख वोटों के अंतर से मिली हार ने सभी को चौंका दिया। बदरुद्दीन अजमल और उनकी पार्टी की पहचान राज्य की बड़ी बंगाल-मुस्लिम आबादी के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाली रही है। AIUDF असम, बराक घाटी और मध्य असम में फैली हुई है।
धुबरी लोकसभा सीट पर मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा 80% से ज़्यादा बंगाली-मुसलमान का है। इतनी ज़्यादा संख्या के रहते बीजेपी इस सीट को कभी अपनी जीतने वाली सीटों की फेहरिस्त में नहीं रखती है। खास बात यह है कि इस संख्या के बावजूद अजमल इस सीट पर बड़े अंतर से हार गए। कांग्रेस कुल 59.9% वोट मिले, AIUDF केवल 18.72% के साथ दूसरे स्थान पर रही।
केवल धुबरी लोकसभा में ही नहीं बल्कि करीमगंज और नागांव में भी लोगों AIUDF को नकारा है। इन दोनों सीटों पर भी मुस्लिम मतदाता बहुत बड़ी तादाद में है। ऐसा 2009 के बाद पहली बार है कि संसद में AIUDF का कोई भी सांसद नहीं होगा। चुनाव के दौरान करीमगंज और धुबरी निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाताओं से बातचीत में कई लोगों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया था कि वे इस चुनाव में AIUDF को विकल्प के रूप में नहीं देखते हैं। AIUDF के खिलाफ जनता के बीच काफी नाराजगी थी।
'कांग्रेस ने फैलाया भ्रम'
AIUDF के एक नेता ने कहा--"किसी तरह कांग्रेस ने आम लोगों को यह विश्वास दिला दिया है कि हम भाजपा के साथ हाथ मिला रहे हैं और हम लोगों को यह समझाने में विफल रहे हैं कि यह सच नहीं है। लेकिन यह कांग्रेस के लोग ही हैं जो लगातार भाजपा में शामिल हो रहे हैं, उनके विधायकों ने राज्यसभा सांसदों और राष्ट्रपति के लिए मतदान के दौरान क्रॉस वोटिंग की, इसे कोई नहीं देख रहा।"