सुक्खू सरकार के जल उपकर में पेच दर पेच
इसके लिए बजट सत्र में कानून बनाकर उसे विधानसभा में पास करवाया गया। व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर काम कर रही प्रदेश की नई नवेली कांग्रेस सरकार ने संसाधनों को बढ़ाने, कर्ज कम करने तथा प्रदेश को आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनाने के लिए यह दांव चला था।
प्रदेश में कई जल विद्युत परियोजनाएं भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड, केंद्र सरकार के उपक्रम एनटीपीसी, एनएचपीसी व सतलुज जल विद्युत निगम की चल रही हैं। सरकार की मंशा थी कि इन परियोजनाओं पर पहले से लगाए गए जल उपकर के जरिए पैसा जुटाया जाए। विधानसभा में कानून बनाकर सरकार यह मान कर चल रही थी कि अब उसके खाते में पैसा आना शुरू हो जाएगा। आर्थिक बदहाली सुधरेगी मगर ऐसा नहीं हो पाया।
पहले तो हरियाणा व पंजाब सरकार ने आंखें तरेरी और दोनों ही सरकारों के मुख्यमंत्रियों ने दो टूक कह दिया कि हिमाचल सरकार का यह प्रस्ताव और कर थोपना पूरी तरह से गैरकानूनी है। हम इसे नहीं मानते। साथ ही यह जल संधि के विपरीत और असंवैधानिक है। इस तरह का कोई कर नहीं लगाया जा सकता है।
सरकार की मंशा को सपष्ट करने व इससे हरियाणा पंजाब को कोई नुकसान नहीं होगा यह बात बताने के लिए मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान से मिले और हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से भी चंडीगढ़ जाकर लंबी मुलाकात की। मगर दोनों ही मुख्यमंत्रियों इस कर को गैरकानूनी व असंवैधानिक बताकर इस पर अपनी असहमति जता दी।
प्रदेश सरकार के इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार ने भी सिरे से खारिज कर दिया और प्रदेश सरकार से दो टूक कह दिया कि इस तरह का कोई कर लगाया ही नहीं जा सकता है। यह पूरी तरह से संविधान के खिलाफ है। हालांकि प्रदेश सरकार ने उतराखंड व कुछ अन्य राज्यों द्वारा लगाए गए इस तरह के उपकर का हवाला दिया था, मगर केंद्र सरकार ने साफ कह दिया कि यदि किसी सरकार ने ऐसा किया भी है तो वह भी गलत है।
केंद्र सरकार ने सभी सरकारों को इस आशय का पत्र लिख कर जल संधियों का हवाला दिया और कह दिया कि जिसने लगाया भी है, उसे भी इसे हटाना होगा।अपने फैसले को लेकर गदगद हो रही प्रदेश के सुक्खू सरकार जो पांच महीने के कार्यकाल में इसे बड़ी उपलब्धि मान कर चल रही थी, को बड़ा झटका लगा है। हालांकि मुख्यमंत्री ने इस मामले को केंद्र के साथ उठाने की बात कही है।
केंद्रीय उर्जा मंत्री से मिल कर स्थिति को स्पष्ट करने की बात भी उन्होंने कही है, मगर सच्चाई तो यही है कि इसे लेकर पेच कम नहीं हैं। पेच भी ऐसे हैं कि शायद ही यह उपकर लागू हो पाए। मंडी बिलासपुर जिलों की सीमा पर सतलुज नदी पर बने 800 मेगावाट की कोल डैम परियोजना जो एनटीपीसी द्वारा बनाई जा रही है।
इसके मुख्य महाप्रबंधक कुलविंदर सिंह ने सपष्ट किया कि प्रदेश सरकार ने जो जल उपकर लगाया है, उसकी अधिसूचना मिल चुकी है मगर इसके बावजूद भी एनटीपीसी कोई निर्णय तब तक नहीं ले सकती जब तक इस मामले में केंद्र सरकार का दिशानिर्देश नहीं मिल जाता। प्रदेश सरकार के जल उपकर लागू करने को लेकर एनटीपीसी असमंजम के स्थिति में है।
केंद्र सरकार ने अब अड़ंगा लगा दिया है तो प्रदेश में चल रही एनटीपीसी, एनएचपीसी व बीबीएमबी व सतलुज जल विद्युत निगम की परियोजनाएं जो केंद्र के उपक्रम हैं, इसे तब तक लागू नहीं कर पाएंगे, जब तक केंद्र सरकार की हरी झंडी नहीं मिल जाती। ऐसे में प्रदेश की सुक्खू सरकार के निर्णय के बावजूद जल उपकर लागू करना व सालाना 1200 करोड़ जुटाने में पेच दर पेच हैं जो शायद ही जल्द सुलझ पाए।