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Haryana Lok Sabha Chunav: किधर जाएंगे बिश्नोई वोटर्स? अलग-अलग पार्टियों में भजनलाल के दोनों बेटे, इस बार सियासी रण से दूर

Lok Sabha Elections: लगभग तीन दशक पहले भजन लाल बिश्नोई के तीन बार मुख्यमंत्री रहने का दौर जब खत्म हुआ तब से राजनीति में बिश्नोई परिवार का प्रभाव कम होने लगा।
Written by: Mohammad Qasim
नई दिल्ली | Updated: May 08, 2024 18:54 IST
हरियाणा में पूर्व सीएम भजनलाल परिवार का काफी राजनीतिक महत्व माना जाता है। (PhotoPTI)
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हरियाणा की राजनीति से जुड़ा सवाल यह है कि 2024 के आम चुनाव में बिश्नोई मतदाताओं और नेताओं का क्या रुख है? वह किस राह जाएंगे और किसे वोट करेंगे?

चर्चा यह है कि हरियाणा की 10 लोकसभा सीटों पर दोनों पार्टियों के प्रत्याशी घोषित होने के बाद सबसे ज़्यादा नुकसान में पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल बिश्नोई का परिवार है, जिनका अभी भी बिश्नोई मतदाताओं पर काफी प्रभाव माना जाता है।

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पूर्व सीएम के दोनों बेटे अब अलग-अलग सियासी दल में हैं। एक कांग्रेस के लिए प्रचार कर रहा है और दूसरा बीजेपी से नाराज़ बताया जाता है, और खामोश है। इसलिए इस बार स्थिति बहुत स्पष्ट नहीं दिखाई दे रही है। हम इस आर्टिकल में आगे सिरसा लोकसभा के आकलन से इसे आसानी से समझ सकेंगे।

क्यों नाराज़ हैं कुलदीप बिश्नोई?

पूर्व मुख्यमंत्री भजन लाल के बेटे कुलदीप बिश्नोई की नज़रें हिसार लोकसभा सीट पर थी। लेकिन बीजेपी ने उन्हें टिकट ना देते हुए राज्य के बिजली मंत्री रणजीत सिंह चौटाला को मैदान में उतार दिया।

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ऐसा भी कहा जा रहा था कि कुलदीप बिश्नोई को राजस्थान में भाजपा के उम्मीदवारों की लिस्ट में जगह मिलने की उम्मीद थी, जहां उनके समुदाय का काफी प्रभाव माना जाता है। लेकिन यह भी नहीं हो सका।

जब राजस्थान, हरियाणा दोनों जगह से सभी टिकट फाइनल हो गए तो कुलदीप बिश्नोई का दु:ख एक वीडियो संदेश के जरिए उमड़ कर सामने आ गया।

जिसमें उन्होंने कहा कि बहुत निराशा है, लेकिन आगे एक लंबा जीवन है। वह 2022 में कांग्रेस के आदमपुर विधायक पद से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल हो गए थे।

कम हो गया है बिश्नोई समाज का प्रभाव?

लगभग तीन दशक पहले भजन लाल बिश्नोई के तीन बार मुख्यमंत्री रहने का दौर जब खत्म हुआ तब से राजनीति में बिश्नोई परिवार का प्रभाव कम होने लगा। 2005 में उन्हें फिरसे सीएम नहीं बनाया गया लेकिन उनके बेटे को डिप्टी सीएम का पद दे दिया गया।

साल 2007 में भजन लाल और कुलदीप बिश्नोई ने कांग्रेस छोड़ हरियाणा जनहित कांग्रेस (HJC) बना ली। पार्टी ने 2009 के विधानसभा चुनावों में छह सीटें जीतीं और बाद में पांच विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए।

भजन लाल की मृत्यु के बाद उनके बेटे कुलदीप बिश्नोई ने 2011 में भाजपा के समर्थन से उपचुनाव में हिसार लोकसभा सीट जीती। 2014 में उनकी पार्टी ने भाजपा के साथ गठबंधन में हिसार और सिरसा से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन दोनों हार गई। बिश्नोई खुद हिसार से दुष्यंत चौटाला से हार गए, जो उस समय इंडियन नेशनल लोकदल (आईएनएलडी) के उम्मीदवार थे।

2014 के विधानसभा चुनावों से पहले कुलदीप बिश्नोई की पार्टी ने भाजपा से नाता तोड़ लिया। जहां बीजेपी 90 में से 47 सीटें जीतकर सत्ता में आई वहीं रियाणा जनहित कांग्रेस (HJC) सिर्फ 2 सीटों पर सिमट गई। 2016 में कुलदीप बिश्नोई ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया।

सिरसा में बंटा बिश्नोई वोट : हरियाणा पर प्रभाव

हम फिर उस सवाल पर आते हैं कि इस बार बिश्नोई वोट किस ओर रुख करेगा? इसका जवाब भजनलाल परिवार की चर्चा के बिना नहीं समझा जा सकता। ऐसा माना जाता है कि अब भी बिश्नोई समाज में भजनलाल परिवार की अच्छी पैठ है। अब सिरसा से हम इस तरह समझ सकते हैं कि सिरसा लोकसभा के 70 हज़ार बिश्नोई मतदाता भजनलाल परिवार के विभाजित होने से काफी प्रभावित हो सकते हैं। जहां पूर्व सीएम भजनलाल के दोनों बेटे अलग-अलग पार्टियों में हैं।

उनके बड़े बेटे पूर्व डिप्टी सीएम चंद्रमोहन सिरसा लोकसभा में कांग्रेस उम्मीदवार कुमारी शैलजा के लिए प्रचार कर रहे हैं वहीं कुलदीप बिश्नोई अभी भी बीजेपी में हैं। ऐसे में बिश्नोई वोट किसी एक तरफ जाएगा ऐसा कह पाना आसान नहीं है। कुलदीप बिश्नोई अभी तक बीजेपी के लिए चुनावी प्रचार के तहत मैदान में दिखाई नहीं दिए हैं।

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Tags :
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