Old Pension: पुरानी पेंशन बहाली सरकार का बड़ा कदम
वर्ष 2003 में केंद्र सरकार ने देश भर के राज्यों को नई पेंशन योजना के तहत अपने कर्मचारियों को लाने के लिए कहा था। पहली जनवरी 2004 से देश के सभी राज्यों में राष्ट्रीय पेंशन योजना यानी एनपीएस लागू हो गई थी जिसके तहत कर्मचारी व सरकार का एक निश्चित अंश हर महीने केंद्र सरकार के पेंशन निधि प्राधिकरण में जमा होता है।
यह प्राधिकरण इस पैसे को बाजार में लगाता है। सेवानिवृति पर कर्मचारी को उसकी व सरकार की ओर से जमा की गई राशि के ब्याज व बाजार से आए लाभ के आधार पर पेंशन मिलती है। हिमाचल सरकार ने भी इस योजना को लागू किया और पहली जनवरी 2004 से कर्मचारियों से उनके वेतन का 10 फीसद और सरकारी खजाने से इसमें उसका 14 फीसद केंद्र सरकार के इस प्राधिकरण में जमा किया जाने लगा।
रोचक बात यह है कि पहली जनवरी 2004 के बाद प्रदेश में सरकारी नौकरियों पर लगे कर्मचारियों पर तो यह लागू हो गया, मगर उससे पहले के कर्मचारियों पर पुरानी पेंशन (Old Pension) जो सेवानिवृति पर कर्मचारी को मिलने वाले बेसिक वेतनमान का आधा होता है, ही मिलती रही।10 साल तक तो कर्मचारियों को इस राष्ट्रीय पेंशन योजना ( जिसे न्यू पेंशन स्कीम के नाम से भी जाना जाता है) के परिणामों को लेकर ज्यादा आभास नहीं हुआ मगर 2016 के बाद जब कुछ कर्मचारी जो 2003 के बाद नौकरी में आए थे, रिटायर होने लगे तो उन्हें नाममात्र ही पेंशन मिलने लगी। इस पर धीरे-धीरे प्रदेश के नए पुराने सारे कर्मचारी लामबंद होने लगे और पांच साल तक प्रदेश में सत्ता में रही जय राम ठाकुर सरकार से पुरानी पेंशन की बहाली का मामला उठाते रहे। आंदोलन हुए और देखा देखी लाखों कर्मचारी इसके लिए एक मंच पर आ गए।
बड़े आंदोलनों को देखते हुए तथा प्रदेश के एक बड़े वर्ग का इसमें साथ होते हुए कांग्रेस की भी आंखें खुली। प्रदेश में पस्त पड़ी कांग्रेस को बैठे बिठाए मुद्दा मिल गया और उसने जय राम ठाकुर की सरकार से बुरी तरह नाराज कर्मचारियों के इस ओपीएस के मुद्दे को हाथों हाथ लपक लिया। बीच में चुनाव आ गए तो यह चुनावी मुद्दा ही नहीं बना, बल्कि कांग्रेस ने जो चुनाव जीतने के लिए प्रदेश के लोगों को दस गारंटी दीं उसमें सबसे पहली गारंटी पुरानी पेंशन योजना को बहाल करने की थी। इसका कांग्रेस को लाभ भी हुआ, प्रदेश की 68 विधानसभा सीटों में से 40 उसके पाले में आ गर्इं। भाजपा को केवल 25 सीटों पर सिमटना पड़ा और माना यही गया कि इसमें ओपीएस बहाल करने का वादा ही काम कर गया।
अब प्रदेश में सुखविंदर सिंह सरकार को बने हुए साढ़े चार महीने हो गए और सरकार पहले ही दिन से ओपीएस बहाली की बात कर रही है। हालांकि इसे लेकर कई तरह के खतरे हैं क्योंकि हर साल करोड़ों रुपए का बोझ सरकार पर पड़ेगा। पहले ही प्रदेश 75 हजार करोड़ के कर्जे में दबा है। माली हालत ठीक नहीं है मगर वादा लिखित में सार्वजनिक मंचों से कर रखा है।
मंत्रिमंडल ने भी हरी झंडी दे दी है मगर वितीय उलझनों के कारण सरकार ने पहले तीन महीने तो इसकी अधिसूचना जारी नहीं कर पाई। अब 17 अप्रैल को सरकार ने इसकी अधिसूचना जारी करके प्रदेश के एक लाख 36 हजार कर्मचारियों को पुरानी पेंशन बहाल करने की दिशा में दिशा निर्देश जारी कर दिए हैं। इसके तहत अब अप्रैल महीने से प्रदेश के कर्मचारियों को जो केंद्र सरकार के पेंशन निधि प्राधिकरण में 10 फीसद व सरकार को 14 फीसद जमा करवाना होता है, वह जमा नहीं करवाना पड़ेगा।
इस बारे में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू का कहना है कि उनकी सरकार ने अपनी पहली गारंटी और कर्मचारियों के साथ किया गया वादा पूरा कर दिया है। मुख्यमंत्री का कहना है कि राष्ट्रीय पेंशन योजना के तहत जो प्रदेश के कर्मचारियों को आठ हजार करोड़ रुपए पेंशन निधि प्राधिकरण में जमा हैं, उसे वापस लेने के लिए केंद्र को पत्र लिखा है।
हालांकि केंद्रीय वित मंत्री निर्मला सीतारमण साफ कर चुकी हैं कि यह पैसा जिस योजना व जिस अनुबंध के तहत प्राधिकरण में जमा होता है, उसे वापस नहीं किया जा सकता है। इसके बावजूद भी प्रदेश के सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार ने अप्रैल 2023 से प्रदेश के एक लाख 36 हजार कर्मचारियों के पुरानी पेंशन बहाल कर दी है। अब दिक्कत उन 4000 हजार कर्मचारियों की है जो इस राष्ट्रीय पेंशन योजना के तहत सेवानिवृत हो चुके हैं व उन्हें उसके तहत ही पेंशन मिल रही है।
इधर, ओपीएस की बहाली के बाद एनपीएस कर्मचारी महासंघ ने धर्मशाला में धन्यवाद रैली करने का एलान कर दिया है।महासंघ के प्रदेशाध्यक्ष प्रदीप ठाकुर व महासचिव भरत शर्मा ने कहा कि इस रैली में एक लाख कर्मचारी भाग लेंगे। मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री व अन्य सभी कैबिनेट मंत्रियों को सम्मानित किया जाएगा।
हिमाचल में ओपीएस बहाल हो गया मगर अब इसके साइड इपेंक्ट देखने को मिलेंगे। देश के कई अन्य राज्यों के कर्मचारी भी इसकी मांग करने लग गए हैं। देश के अर्थशास्त्री पहले ही यह चेतावनी दे चुके हैं यदि देखा देखी यह सब राज्यों में होने लगा तो यह प्रदेशों व देश के अर्थ व्यवस्था के लिए अत्याधिक घातक होगा। इसके लिए कोई तीसरा रास्ता निकालना होगा ताकि कर्मचारी भी खुश रहें और सरकार पर भी ज्यादा आर्थिक बोझ न पड़े।