दवा-दस्तकारी के लिए भांग की खेती वैध बनाने की मांग
विधानसभा के बजट सत्र में कुछ विधायकों ने इस मांग को रखा कि कुछ अन्य राज्यों की तरह हिमाचल में भी सरकार की देख रेख में भांग की खेती की जाए और उसके उत्पादों को दवाइयों व दस्तकारी के लिए प्रयोग में लाया जाए।
विधानसभा में जब यह मामला उठा तो देखा देखी सत्ता व विपक्ष के विधायक भी इस पक्ष में आ गए क्योंकि समय समय पर प्रदेश भांग व अफीम की खेती को कानूनी तौर पर वैध करने की मांग उठती रहती है। प्रदेश में इस समय बड़े स्तर पर भांग की अवैध खेती हो रही है। सरकारी जंगलों में भी खूब भांग उगाई जाती है और इससे चरस निकाल कर लाखों करोड़ों की चांदी तस्कर काट रहे हैं।
पुलिस हर जगह नाके लगाकर इन तस्करों को पकड़ने की कोशिश करती है, कुछ पकड़े भी जाते हैं, हजारों विचाराधीन मामले अदालतों में हैं तो हजारों लोग जेलों में सजा काट रहे हैं। रातों रात अमीर बनने के चक्कर में युवा भी इसमें फंस रहे हैं, बाहरी राज्यों से भी लोग प्रदेश में भांग का नशा करने और इसे अपने साथ ले जाने के लिए आते हैं। इनमें से कुछ प्रतिशत पुलिस के हाथ में भी लग जाते हैं जिन पुलिस एनडीपीएस एक्ट के तहत मामले दर्ज करके अदालत में ले जाती है।
अदालतें चरस तस्करी को लेकर बेहद सख्त हैं और इसमें बड़ी सजा व जुर्माने का प्रावधान कानून में किया गया है। ऐसे में जब भांग की खेती को वैध बनाकर किए जाने की चर्चा चली है तो इसकी खूब सुर्खियां बन रही हैं। भांग के पौधे से यूं तो बहुत कुछ ऐसा बनता है जो प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों की दिनचर्या से जुड़ा है। इसके पौधे के रेशे से तरह तरह के उत्पाद बनाए जाते हैं जिनकी बाजार में बड़ी मांग है। खासकर पैरों में डालने वाली पुहलें जो कभी बाराणसी में पुरोहितों की पसंद बनी थीं जिन्हें घर के अंदर या पूजा के वक्त डालने के लिए प्रयोग किया जाता है, सदियों से भांग के रेशे से ही बनती आ रही हैं।
यह पुहलें यानी पैर में डालने वाली धागे से बनी चप्पलें दूसरे रेशों से भी बनाई जाने लगी हैं, मगर पारंपरिक तौर पर ये भांग के रेशे से ही बनती रही हैं। यही नहीं भांग के पौधों पर उगने वाले दाने जिन्हें भंगोलू कहा जाता है, का खान पान में प्रयोग होता है। सर्दियों में इसे भोजन में प्रयोग किया जाता है जो सर्दी से बचाता है। इससे व्यंजन भी बनते हैं।
अब जबकि बड़े पैमाने पर इसी भांग जो कभी पहाड़ों में लोगों की दिनचर्या से जुड़ा उत्पाद होता था का दुरुपयोग होने लगा है, नशे का बड़ा व्यापार बन गया है तो इसके उत्पादन पर प्रतिबंध लगा, अवैध कारोबार पर पुलिस मामले दर्ज करती है, हर साल इसे उखाड़ा जाने लगा है। भांग की खेती पर पुलिस की कड़ी नजर रहती है और हर साल पुलिस व नारकोटिक्स विभाग प्रदेश में भांग की खेती को नष्ट करते हैं।
समिति बनाकर संभावनाएं पता लगाई जाएंगी
हिमाचल प्रदेश विधानसभा में जब चर्चा हुई तो यह मामला फिर से सुर्खियों में है। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने इसे लेकर एक कमेटी का गठन करके संभावनाओं का पता लगाने की बात कही है तो पूर्व मुख्यमंत्री व नेता प्रतिपक्ष जय राम ठाकुर का कहना है कि इसमें खतरे भी हैं और संभावनाएं भी हैं। जो भी करना होगा बेहद सतर्क रहकर ही करना होगा क्योंकि भांग का उत्पादन दोधारी तलवार है जो कुछ भी अच्छा बुरा कर सकती है। उनका कहना है कि प्रदेश की आर्थिकी को मजबूत करने के लिए खतरनाक कदमों से परहेज करने की जरूरत है।
कुछ साल पहले अफीम की खेती को लेकर भी इसी तरह की चर्चाएं चली थीं क्योंकि मंडी जिले की चौहार घाटी में उच्च गुणवत्ता की अफीम पैदा होने लगी थी। कई साल लगाकर पुलिस व कस्टम विभाग ने इसे नष्ट किया तो लोगों ने मांग उठा दी कि कुछ अन्य राज्यों की तरह इसे वैध करके उगाने की इजाजत दी जाए ताकि अफीम जो कई तरह की दवाइयों में प्रयोग होता है का उत्पादन यहां हो सके व लोगों की आर्थिकी मजबूत हो सके। यह मामला भी बाद में धीरे धीरे खत्म हो गया था। देखना यह होगा कि अब जबकि सतारूढ़ कांग्रेस के कई विधायक व मंत्री भांग की खेती करने के पक्षधर हैं तो इसे लेकर प्रदेश सरकार क्या कदम उठाती है क्योंकि इसके लिए केंद्र सरकार व संसद की अनुमति भी जरूरी है।