कोई प्रियंका का सगा, कोई राहुल को बहुत मानता... हिमाचल की कांग्रेस सरकार में बीजेपी को दिखा गजब 'याराना'
भाजपा ने शुरू से हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू पर 'मित्रों की सरकार' चलाने का आरोप लगाया है। ऐसा इसलिए क्योंकि उन्होंने राज्य में कैबिनेट रैंक वाले पदों पर अपने सहयोगियों को प्राथमिकता दी है। शुक्रवार को सुक्खू के चीफ मीडिया सलाहकार नरेश चौहान ने पूछा कि मुख्यमंत्री द्वारा संकट के समय उनके साथ खड़े रहने वाले 'दोस्तों' की मदद करने में क्या गलत है।
नरेश चौहान ने कहा, ''भाजपा बार-बार 'मित्रों की सरकार' की बात कर रही है। क्या दुश्मनों को सरकार में जगह देनी चाहिए?” उन्होंने यह बात हमीरपुर में पत्रकारों से बातचीत के दौरान कही।
क्या है बीजेपी का दावा?
भाजपा के 'मित्रों की सरकार' तंज को कई लोगों पर टारगेट माना जाता है, जिनमें चार ऐसे लोग शामिल हैं जो निर्वाचित प्रतिनिधि नहीं हैं, लेकिन सुक्खू सरकार में कैबिनेट रैंक रखते हैं। पूर्व सीएम और विपक्ष के नेता जयराम ठाकुर ने कहा, "राज्य पर लगभग 80,000 करोड़ रुपये का कर्ज है। ऐसे में क्या यह अच्छा है कि एक सीएम अपने दोस्तों के बीच कैबिनेट रैंक बांटकर सरकारी खजाने पर वित्तीय बोझ बढ़ाए? उदाहरण के लिए राज्य में खनन नीति में संशोधन किया गया ताकि सुक्खू के सहयोगियों को फायदा हो। 2023 की बाढ़ के बाद सरकार ने कई स्टोन क्रशरों के खिलाफ कार्रवाई की, लेकिन कांग्रेस नेताओं के स्वामित्व वाले क्रशरों को छोड़ दिया गया। हमने छह मुख्य संसदीय सचिवों (CPS) की नियुक्तियों के खिलाफ भी याचिका दायर की है। 'मित्रों की सरकार' कथन स्वयं कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं द्वारा गढ़ा गया था, क्योंकि सीएम के 'मित्रों' को प्राथमिकता देने के लिए उन्हें दरकिनार कर दिया गया था।"
बीजेपी के निशाने पर नरेश चौहान, आईटी और इनोवेशन के लिए सीएम के चीफ एडवाइजर गोकुल बुटेल, सीएम के राजनीतिक सलाहकार सुनील कुमार बिट्टू और हिमाचल प्रदेश राज्य वन विभाग विकास के उपाध्यक्ष केहर सिंह खासी शामिल हैं। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने कहा कि चौहान सुक्खू के पुराने सहयोगी हैं, जबकि बुटेल कांग्रेस से जुड़े रहे हैं और उन्हें राहुल गांधी के करीबी के रूप में देखा जाता है। जबकि केहर सिंह खासी को एआईसीसी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा का करीबी माना जाता है।
कैबिनेट रैंक के समकक्ष प्रतिष्ठित पदों के लिए चुने गए सुक्खू के करीबी माने जाने वाले चार अन्य विधायकों में नगरोटा के विधायक आर एस बाली (हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम के अध्यक्ष), रामपुर के विधायक नंद लाल (7वें राज्य वित्त आयोग के अध्यक्ष), फतेहपुर विधायक भवानी सिंह पठानिया, राज्य योजना आयोग के उपाध्यक्ष और शाहपुर विधायक केवल सिंह पठानिया शामिल हैं।
इसके अलावा सुक्खू के दो अन्य सहयोगी हैं, जिनके पास कैबिनेट रैंक नहीं है, लेकिन कुछ सुविधाएं हैं। इनमे राम सुभग सिंह (सीएम के प्रधान सलाहकार) और अनिल कपिल (सलाहकार इन्फ्रास्ट्रक्चर) शमिल हैं।
कैबिनेट रैंक के साथ कौन सी सुविधाएं मिलती हैं?
आवास के अलावा कैबिनेट रैंक एक व्यक्ति को राज्य सचिवालय में कर्मचारियों, सुरक्षा गार्ड, सरकारी वाहन, टेलीफोन और यात्रा भत्ते और लगभग 2 लाख रुपये प्रति माह के वेतन के साथ एक पूर्ण कार्यालय का अधिकार देता है। वे मुफ्त हवाई यात्रा के भी हकदार हैं और लॉगबुक में गंतव्य का उल्लेख किए बिना राज्य में कहीं भी जा सकते हैं। इसके अलावा वे सार्वजनिक शिकायतों का समाधान कर सकते हैं और राज्य सरकार के विभागों के सचिवों को आदेश जारी कर सकते हैं।
वे छह मुख्य संसदीय सचिव कौन हैं जिन पर भाजपा का निशाना है?
छह मुख्य संसदीय सचिव जो बीजेपी के निशाने पर हैं, उनमे परियोजनाओं और बिजली, पर्यटन, वन, परिवहन के सीपीएस सुरिंदर सिंह ठाकुर, मोहन लाल ब्राक्टा (कानून, संसदीय कार्य, बागवानी के लिए नियुक्त) राम कुमार (टाउन एंड कंट्री प्लानिंग, उद्योग, राजस्व), आशीष बुटेल (शहरी विकास, प्रारंभिक शिक्षा, उच्च शिक्षा) किशोरी लाल (पशुपालन, ग्रामीण विकास, पंचायती राज) और संजय अवस्थी (सूचना एवं जनसंपर्क, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, लोक निर्माण) शामिल हैं।
हालांकि सीपीएस को कैबिनेट रैंक नहीं दिया गया है, लेकिन वे सरकारी आवास और वाहन के हकदार हैं और उन्हें लोगों की शिकायतों को दूर करने और राज्य सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों को आदेश जारी करने की शक्ति दी गई है। भाजपा ने अपने कार्यकाल के दौरान कोई भी सीपीएस नियुक्त नहीं किया था।
सीपीएस पोस्ट विवादास्पद क्यों है?
2016 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने पड़ोसी राज्य पंजाब में भाजपा-शिरोमणि अकाली दल (SAD) सरकार द्वारा 18 सीपीएस की नियुक्ति को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि वे कनिष्ठ मंत्रियों के रूप में कार्य कर रहे हैं। इस प्रकार यह शक्ति को सीमित करने वाले नियम का उल्लंघन है।
इससे पहले 2005 में हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने पूर्व कांग्रेस सीएम वीरभद्र सिंह के कार्यकाल के दौरान राज्य में 12 सीपीएस की नियुक्तियों को रद्द कर दिया था। उच्च न्यायालय के फैसले के बाद तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने हिमाचल प्रदेश संसदीय सचिव (नियुक्ति, वेतन, भत्ते, शक्ति, विशेषाधिकार और सुविधाएं) अधिनियम, 2006 नामक एक कानून बनाया।
'मित्रों की सरकार' को लेकर सुक्खू पर हमले क्यों बढ़े हैं?
ऐसा लगता है कि फरवरी में राज्यसभा चुनाव में क्रॉस-वोटिंग के कारण पैदा हुए संकट के बाद सुक्खू सरकार निशाने पर आ गई है। इससे कांग्रेस उम्मीदवार अभिषेक मनु सिंघवी को हार का सामना करना पड़ा था। पार्टी व्हिप का उल्लंघन करने और क्रॉस वोटिंग करने वाले छह कांग्रेस विधायकों को बाद में अयोग्य घोषित कर दिया गया। हालांकि रिक्त हुई छह विधानसभा सीटों के लिए 1 जून को हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने चार और भाजपा ने दो सीटें जीतीं थी।
हाल ही में, सुक्खू ने धमकी दी थी कि भाजपा के 9 विधायक विधानसभा की सदस्यता खो सकते हैं क्योंकि उन्होंने 28 फरवरी को बजट सत्र के दौरान सदन के नियमों का उल्लंघन किया और हंगामा किया। यहां उन्होंने कथित तौर पर कागजात छीन लिए और फाड़ दिए।