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क्या है रेलवे का इंटरलॉकिंग सिस्टम जिसमें गड़बड़ी से हुआ कोरोमंडल एक्सप्रेस का एक्सीडेंट? समझिये पूरी कहानी

कोरोमंडल एक्सप्रेस (Coromandel Express Accident) के लिए इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
Written by: अभिषेक जी दस्तीदार
June 06, 2023 11:55 IST
क्या है रेलवे का इंटरलॉकिंग सिस्टम जिसमें गड़बड़ी से हुआ कोरोमंडल एक्सप्रेस का एक्सीडेंट  समझिये पूरी कहानी
कोरोमंडल हादसे के पीछे इंटरलॉकिंग सिस्टम में गड़बड़ी को जिम्मेदार बताया जा रहा है।
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ओडिशा के बालासोर में कोरोमंडल एक्सप्रेस (Coromandel Express Accident) हादसे की वजह इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम में गड़बड़ी बताई जा रही है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव (Ashwini Vaishnaw) ने कहा है कि रेलवे सुरक्षा आयुक्त ने मामले की जांच की है। हादसे के लिए जिम्मेदार लोगों की पहचान की जा रही है। उधर, मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई है और CBI की टीम घटनास्थल पर भी पहुंच गई है। इस ट्रेन एक्सीडेंट में 275 यात्रियों की मौत हो गई थी और करीब 900 यात्री घायल हैं।

क्या है इंटरलॉकिंग सिस्टम?

इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम (Electronic Interlocking System) एक ऐसी तकनीक है जिसके जरिए रेलवे की सिग्नलिंग को कंट्रोल किया जाता है। यह ऐसी सुरक्षा प्रणाली है जो सुनिश्चित करती है कि ट्रेनों की आवाजाही बिना किसी अवरोध के होती रहे और कोई एक्सीडेंट ना हो। इंटरलॉकिंग सिस्टम के मुख्य तौर पर तीन कंपोनेंट होते हैं। पहला- पॉइंट्स, दूसरा- ट्रैक ऑक्यूपेंसी सेंसिंग डिवाइसेज और तीसरा- सिग्नल। इंटरलॉकिंग सिस्टम इन तीन कंपोनेंट्स के बीच तालमेल बिठाकर ट्रेनों के मूवमेंट को कंट्रोल रखता है।

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पॉइट्स: ट्रेनों को ट्रैक बदलने या डाइवर्ट करने में मदद करता है।

ट्रैक ऑक्यूपेंसी सेंसिंग डिवाइसेज: एक इलेक्ट्रिकल सर्किट है जो यह बताता है कि किसी ट्रैक पर कोई ट्रेन है या नहीं है।

सिग्नल: यानी ग्रीन, रेड या येलो कलर की लाइटें, जो रेलवे ट्रैक या पटरियों के बीच लगी होती हैं और सिग्नल बताने का काम करती है।

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कैसे काम करता है इंटरलॉकिंग सिस्टम?

इन तीनों कंपोनेंट्स में प्वाइंट्स सबसे महत्वपूर्ण है। इसे स्विच रेल (Switch Rails) भी कहते हैं। यह ट्रेन को गाइड करता है कि किस ट्रैक पर जाना है। यह मुख्य तौर पर ट्रेन डायवर्जन के तौर पर काम करता है और जिस जगह से ट्रेनों का डाइवर्जन होना है, वहां पटरियों के बीच लगा होता है। एक बार तय हो गया कि किसी ट्रेन को डाइवर्ट होना है तो यह पॉइंट किसी खास पोजीशन में लॉक हो जाता है। इसका मतलब यह है कि उस ट्रेन के लिए एक डायरेक्शन अथवा ट्रैक तय हो गया है और जब तक ट्रेन निकल नहीं जाएगी तब तक उस पॉइंट से कोई छेड़छाड़ नहीं किया जा सकता है।

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इस सिस्टम का डिजिटल इंटरफेस कंप्यूटर स्क्रीन से जुड़ा होता है, जो ट्रेनों की लाइव (रियल टाइम) आवाजाही, सिग्नल और पॉइंट्स की स्थिति को दिखाता है। इसी प्रणाली पर देशभर में ट्रेनें संचालित होती हैं। इस कंप्यूटर इंटरफेस को डाटा लॉगर कहा जाता है।

इंटरलॉकिंग सिस्टम से पहले कैसे होता था काम?

पहले जब टेक्नोलॉजी नहीं थी, तब इंटरलॉकिंग सिस्टम मैनुअली ऑपरेट किया जाता था। पॉइंट्स मैन फिजिकली पॉइंट को चेंज करता था। इसके बाद फिजिकली ट्रेनों को ग्रीन सिग्नल दिया जाता था। वर्तमान में देश भर के 7000 रेलवे स्टेशनों में से 100 रेलवे स्टेशन ही ऐसे हैं जहां मैनुअली इंटरलॉकिंग सिस्टम ऑपरेट किया जाता है। बाकी सारे इंटरलॉकिंग सिस्टम इलेक्ट्रॉनिकली ऑपरेट किये जाते हैं।

कोरोमंडल एक्सप्रेस के केस में क्या हुआ?

अब कोरोमंडल एक्सप्रेस की बात करें तो इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम में अपलाइन (जिस ट्रैक पर कोरोमंडल खड़ी थी) उसे खाली दिखाया जाना चाहिए था। और यदि पॉइंट अपलाइन की तरफ लॉक है तो सिग्नल हरा होना चाहिए था। लेकिन पॉइंट लूप लाइन (जिस पर मालगाड़ी खड़ी) की तरफ चेंज हो गया।

कितना सुरक्षित है इंटरलॉकिंग सिस्टम?

यदि इंटरलॉकिंग सिस्टम के तीनों कंपोनेंट- सिग्नल, पॉइंट्स और ट्रैक ऑक्यूपेंसी सेंसर कायदे से काम नहीं करेंगे तो कंप्यूटर में सही फीड नहीं जाएगा और सिस्टम काम करना बंद कर देगा। इसका मतलब यह है कि ट्रेन डायवर्जन के लिए पॉइंट लॉक नहीं है या ट्रेन को जिस दिशा में जाना है, उसकी तरफ नहीं है या सेंसिंग डिवाइस डिटेक्ट करती है कि ट्रैक क्लियर नहीं है तो सिग्नल अपने आप रेड हो जाएगा और आने वाली ट्रेन को सिग्नल मिल जाएगा कि कुछ गड़बड़ है। इसे 'फेल सिस्टम' कहा जाता है।

कौन ऑपरेट करता है इंटरलॉकिंग सिस्टम?

इंटरलॉकिंग सिस्टम को सामान्य: रेलवे के के सिग्नलिंग और टेलीकम्युनिकेशन डिपार्टमेंट के कर्मचारी ऑपरेट करते हैं, जिन्हें सिग्नल ऑपरेटर या सिग्नलर कहा जाता है। यही कर्मचारी सिग्नल को सेट करने, ट्रैक सर्किट को मॉनिटर करने और ट्रेनों की सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार हैं।

क्या इंटरलॉकिंग सिस्टम से हो सकती है छेड़छाड़?

रेलवे बोर्ड की मेंबर (ऑपरेशंस एंड बिजनेस डेवलपमेंट) जया वर्मा सिन्हा कहती हैं कि कोई भी मशीन 99.9% बार ढंग से काम करें तब भी फेल होने का खतरा रहता है। वह कहती हैं कि ऐसा संभव है कि खुदाई के दौरान कोई केबल कट गई हो या शॉर्ट सर्किट हो गया हो और इससे गड़बड़ी हुई हो। सामान्यत: इस तरह की घटनाएं नहीं होती हैं, लेकिन इस तरह की गड़बड़ियों के चलते प्वाइंट एक परसेंट गड़बड़ी की आशंका बनी रहती है।

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