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8 बार के सांसद सुरेश के बजाए 7 टर्म वाले भर्तृहरि महताब को ही क्यों मिला प्रोटेम स्पीकर बनने का मौका? जानें ये बड़ी वजह

Lok Sabha Protem Speaker: स्पीकर का पद उस सदस्य को ही दिया जाता है, जिसने संसद में सबसे लंबे समय तक लगातार सेवा की है।
Written by: न्यूज डेस्क
नई दिल्ली | Updated: June 22, 2024 13:45 IST
भर्तृहरि महताब और के सुरेश। (इमेज-जनसत्ता)
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Lok Sabha Protem Speaker: भारतीय जनता पार्टी के सांसद भर्तृहरि महताब को लोकसभा का अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त किए जाने पर लगातार सियासी विवाद बना हुआ है। कांग्रेस पार्टी का आरोप है कि बीजेपी संसदीय परंपरा को खत्म कर रही है। कांग्रेस पार्टी का कहना है कि आठ बार के सांसद कोडिकुनिल सुरेश को स्पीकर बनाया जाना चाहिए था, लेकिन उनकी जगह भतृहरि महताब को यह जिम्मेदारी देना सरासर गलत है।

बीजेपी नेता और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने गुरुवार को भर्तृहरि महताब को लोकसभा का अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त किए जाने की सूचना दी थी। इस पर कांग्रेस नेता केसी वेणगोपाल ने कहा कि बीजेपी ने संसदीय मानदंडो को नष्ट करने की कोशिश की है और भतृहरि महताब को कोडिकुनिल सुरेश की जगह लोकसभा का अस्थायी अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। सुरेश बतौर अपने 8वें कार्यकाल में एंट्री करने वाले हैं।

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बीजेपी एमपी भर्तृहरि महताब को कैसे मौका मिला?

बता दें कि प्रोटेम स्पीकर सदन का एक अस्थायी पीठासीन अधिकारी होता है। इसकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है। अब अगर इसके काम की बात करें तो यह लोकसभा के चुने हुए सांसदों को शपथ दिलाता है और सदन के अध्यक्ष के चुनाव की अध्यक्षता भी करता है। यहां पर स्पीकर की नियुक्ति की प्रक्रिया बिल्कुल ब्रिटेन की संसद के जैसी ही होती है। इसमें कहा गया है कि स्पीकर का पद उस सदस्य को ही दिया जाता है, जिसने संसद में सबसे लंबे समय तक लगातार सेवा की है। यह उस समय तक सदन की अध्यक्षता करता है जब तक नए स्पीकर का चुनाव नहीं हो जाता है।

सुरेश ने लगातार कार्यकाल पूरे नहीं किए

अगर हम इसको इस लहजे से देखें तो कहीं ना कहीं प्रोटेम स्पीकर के लिए के. सुरेश का पलड़ा भर्तृहरि से भारी ही नजर आता है। ऐसा इसलिए क्योंकि वह 8 बार के सांसद हैं। वहीं, भर्तृहरि महताब केवल 7 बार ही संसद के लिए चुने गए हैं। इस मामले में एक सबसे बड़ा पेंच भी फंस रहा है। भर्तृहरि महताब ने लोकसभा के सदस्य के रूप में अपने 7 कार्यकाल पूरे कर लिए हैं। वहीं, सुरेश 8 बार के सांसद तो रहें हैं लेकिन 1998 से लेकर 2004 तक उन्हें करारी शिकस्त का सामना भी करना पड़ा है। साफतौर पर कहें तो लोकसभा सदस्य के रूप में यह लगातार उनका चौथा कार्यकाल है। इसी वजह से वह प्रोटेम स्पीकर की योग्यता को पूरा नहीं करते हैं।

पिछली लोकसभा में वीरेंद्र कुमार को बनाया प्रोटेम स्पीकर

ऐसा नहीं है कि यह कोई पहली बार हुआ है। इससे पहले भी पिछली लोकसभा के गठन के समय भी ऐसा ही हुआ था। 17वीं लोकसभा में वीरेंद्र कुमार को राष्ट्रपति ने तरजीह दी थी और प्रोटेम स्पीकर नियुक्त किया था। वह उस समय संसद के सबसे लंबे समय तक लगातार चुने गए सदस्य थे। उस वक्त मेनका गांधी वरिष्ठता के क्रम में सबसे आगे थी, लेकिन उनका कार्यकाल लगातार नहीं था। इसी वजह से उनको प्रोटेम स्पीकर नहीं बनाया गया था।

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