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राजपाट: राजनीति में हार-जीत और अपना-पराया, किसी को पाने का सुख तो किसी को खोने का दुख

जगनमोहन रेड्डी ने घोषित तौर पर भले केंद्र की पिछली राजग सरकार को बिना शर्त समर्थन दिया हो पर यह उनकी मजबूरी भी थी क्योंकि जांच एजंसियों की रफ्तार को ब्रेक लगवाना था।
Written by: जनसत्ता
नई दिल्ली | Updated: June 22, 2024 10:21 IST
राजपाट  राजनीति में हार जीत और अपना पराया  किसी को पाने का सुख तो किसी को खोने का दुख
बीजेपी नेता और पूर्व मंत्री स्मृति ईरानी तथा आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम वाई एस जगन मोहन रेड्डी।
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दुखदायी हार

स्मृति ईरानी के लिए 2024 की हार कुछ ज्यादा ही चुभने वाली है। यों स्मृति पहली बार नहीं हारी हैं। वे लोकसभा के चार चुनाव लड़ चुकी हैं। जीत सिर्फ 2019 में मिली थी। अमेठी में वे 2014 में भी राहुल गांधी से एक लाख से ज्यादा मतों के अंतर से हारी थीं। इससे पहले 2004 में भाजपा ने उन्हें दिल्ली की चांदनी चौक सीट पर कांगे्रस के कपिल सिब्बल के मुकाबले उतारा था। पहले ही चुनाव में उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था। चांदनी चौक में अपनी हार का ठीकरा स्मृति ने 2004 में गुजरात के तबके मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के सिर फोड़ा था। उनके इस्तीफे की मांग को लेकर आमरण अनशन तक की धमकी दी थी। स्मृति भाजपा की राष्ट्रीय सचिव और महिला मोर्चे की अध्यक्ष भी रही हैं। उन्हें 2011 में गुजरात से राज्यसभा में भेजा गया था। अमेठी में 2014 में हार जाने के बाद भी राज्यसभा सदस्य होने के नाते ही वे केंद्र में कैबिनेट मंत्री बन गई थीं। फिर 2017 में दोबारा राज्यसभा आईं। अमेठी में 2019 में राहुल गांधी को हराने के बाद वे सियासी योद्धा कहलाईं और मंत्री रहीं। इस बार अमेठी में एक तो हार एक लाख सढ़सठ हजार से हुई। अब आवास मंत्रालय ने सरकारी बंगला खाली करने का नोटिस भेज दिया है। नोटिस पाने वाली वे अकेली नहीं, चुनाव हारने वाले एक दर्जन से ज्यादा सभी मंत्री हैं। पर स्मृति के लिए तो 2024 का वर्ष कुछ ज्यादा ही दुखदायी लग रहा है।

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ये कैसी शिकायत?

जनता दल (एकी) के बिहार के सीतामढ़ी से निर्वाचित सांसद देवेश चंद्र ठाकुर को मुसलमानों और यादवों से शिकायत है कि उन्होंने चुनाव में उनका दूसरी जातियों की तरह समर्थन नहीं किया। लिहाजा वे भी आइंदा इनके व्यक्तिगत काम नहीं करेंगे। यह एलान उन्होंने चुनाव जीतने के बाद अपने क्षेत्र के मतदाताओं का आभार जताने के लिए आयोजित एक खुले मंच से किया। अब राजद के विधायक मुकेश यादव ने उन पर सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ने और संविधान के प्रति अनास्था जाहिर करने का आरोप जड़ दिया। कांगे्रस के चंद्रिका प्रसाद यादव ने कानूनी नोटिस भेजकर चेतावनी दी कि दस दिन के भीतर बिहार की जनता से माफी नहीं मांगी तो उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेंगे। ठाकुर के समर्थन में भाजपा के गिरिराज सिंह तो जरूर आए पर जद (एकी) के तमाम नेताओं ने चुप्पी साध ली है

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गठबंधन में बिखरे विचार

गठबंधन की सरकार के दौर में कसमे-वादों का दौर बहुत देर तक नहीं चल सकता है। बिहार के उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी पहले ही नीतीश कुमार बनाम अपनी पगड़ी को लेकर कसम को विराम देने के लिए हास्य के पात्र बने थे। अब ‘आदरणीय नीतीश कुमार की सरकार’ में आरक्षण सीमा को बढ़ाने के लिए अदालत जाने के लिए उनका बयान आते ही भाजपा से जुड़ा एक खेमा उनसे खासा नाराज हो गया है। इस खेमे को यह ‘जातिवाद’ लगता है। लेकिन गठबंधन से जुड़ा बड़ा खेमा अब उनके बयान के समर्थन में जयकारे लगा रहा है। गठबंधन सरकार में सबसे मुश्किल अपनी पार्टी के लोगों को किसी मुद्दे पर एक राय में बांधना होता है, जिससे फिलहाल बिहार भाजपा गुजर रही है।

बागियों का दर्द

याद कीजिए उत्तर प्रदेश के पिछले राज्यसभा चुनाव को। जब समाजवादी पार्टी के सात विधायकों ने भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में क्रास वोटिंग करके सपा के उम्मीदवार को हरवा दिया था। इनमें पार्टी के मुख्य सचेतक मनोज पांडे भी थे। सपा के सहयोगी अपना दल (कमेरावादी) की विधायक पल्लवी पटेल ने बगावत का बिगुल सबसे पहले फूंका था। पल्लवी केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की छोटी बहन हैं। पर राजनीतिक रूप से दोनों परस्पर विरोधी ठहरी। कौशांबी जिले की सिराथू सीट पर 2022 में पल्लवी ने उपमुख्यमंत्री केशव मौर्य को हराया था। पल्लवी ने चुनाव सपा के निशान साइकिल पर ही लड़ा था। तकनीकी रूप से वे भी सदन में सपा की ही विधायक हैं। बागी विधायकों ने विधानसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दिए बिना लोकसभा चुनाव में भी भाजपा का साथ दिया था। ये हैं-राकेश प्रताप सिंह, मनोज पांडे, अभय सिंह, राकेश पांडे, विनोद चतुर्वेदी, पूजा पाल और आशुतोष मौर्या। इनके इलाकों में भाजपा के लोकसभा उम्मीदवार हार गए। भाजपा के लिए ये बोझ बन गए हैं। उधर अखिलेश यादव ने संकेत दिया है कि पार्टी विधानसभा अध्यक्ष को पत्र भेजकर इन सबकी सदस्यता समाप्त कराएगी। अखिलेश सरकार में मंत्री रहे नारद राय भी गच्चा खा गए। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले सपा छोड़ वे भाजपा में शामिल हुए थे पर भाजपा उम्मीदवार को लोकसभा चुनाव नहीं जितवा पाए। अब ये बेचारे घर के रहे न घाट के।

लौट कर आए मुद्दे पर

आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वाइएसआर कांग्रेस ने केंद्र की पिछली राजग सरकार को खुला समर्थन दिया था। हालांकि यह पार्टी राजग का हिस्सा नहीं थी। लोकसभा से ज्यादा जरूरी जगनमोहन का समर्थन भाजपा के लिए राज्यसभा में था। संसद के उच्च सदन में इस पार्टी के 11 सदस्य हैं। लेकिन, भाजपा ने जब चंद्रबाबू नायडू से हाथ मिलाया तो जगनमोहन को करारा झटका लगा। रेड्डी ने नायडू को गिरफ्तार कराकर जेल भेजा था। लेकिन राजग में वापसी के बाद नायडू खुद तो आंध्र की सत्ता पर अच्छे बहुमत से काबिज हुए ही हैं, केंद्र की सरकार भी अब उनके समर्थन के सहारे है। जगनमोहन रेड्डी ने घोषित तौर पर भले केंद्र की पिछली राजग सरकार को बिना शर्त समर्थन दिया हो पर यह उनकी मजबूरी भी थी क्योंकि जांच एजंसियों की रफ्तार को ब्रेक लगवाना था। बहरहाल जगनमोहन ने पिछले हफ्ते अपने सांसदों की बैठक में भाजपा को चेतावनी के अंदाज में कह दिया कि तेलगुदेशम के पास अगर 16 सांसद हैं तो वाइएसआर कांग्रेस के पास अभी भी 15 सांसद हैं। राज्यसभा में 11 और चार लोकसभा में। फिर साफ कह दिया कि केंद्र सरकार को अब उनका समर्थन मुद्दों पर आधारित होगा, आंख मूंदकर नहीं।

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