राजपाट: राजनेताओं का राजधर्म और चुनाव से पहले राजनीतिक दलों की बयानबाजी
देश में लोकसभा चुनाव का दौर शुरू हो चुका है। पहले चरण की नामांकन प्रक्रिया भी पूरी हो चुकी है। अब सभी दलों के नेता अपना-अपना चुनावी अभियान और प्रचार कार्य शुरू करने में जुट गये हैं। इस बार कई दलों के संबंध चुनाव से पहले बने और कई के बिगड़े भी। विपक्षी दलों ने मोदी सरकार का मुकाबला करने के लिए साझा गठबंधन भी किया।
नवीन की ना
राजग के कुनबे के विस्तार की बीजेपी की योजना पंजाब और ओडिशा में परवान नहीं चढ़ पाई। पंजाब में तो वजह भाजपा का खुद को शिरोमणि अकाली दल के बराबर की पार्टी मानने का दबाव मानी जा रही है। जबकि ओडिशा में भी गतिरोध तो सीटों के बंटवारे पर सहमति न बन पाने के कारण ही हुआ पर बीजेपी ने परोक्ष रूप से दलील यह दी है कि अगर बीजेपी और बीजद मिलकर चुनाव लड़ते तो रसातल में जा चुकी कांग्रेस को प्रमुख विपक्षी पार्टी का दर्जा मिल जाता। जबकि अभी बीजू जद सूबे की सत्तारूढ़ पार्टी है तो बीजेपी प्रमुख विपक्षी पार्टी। लोकसभा में तो पार्टी को पिछले चुनाव में अच्छी सफलता मिली थी। ओडिशा में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव भी हैं।
नवीन पटनायक पिछले 24 साल से लगातार मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने अगर इस बार फिर सूबे में सरकार बनाई तो सर्वाधिक लंबे समय तक किसी सूबे का मुख्यमंत्री रहने का सिक्किम के पवन चामलिंग का रिकार्ड वे तोड़ देंगे। बीजेपी का कहना है कि बीजू जद राजग में बेशक न हों पर वह इंडिया गठबंधन से भी दूरी बनाए है। उलटे दस साल में केंद्र में हर मौके पर उसने भाजपा का साथ दिया है। नवीन पटनायक के समर्थक मान रहे हैं कि राज्य में महिलाओं का नवीन बाबू के प्रति खास समर्थन है। हकीकत तो यह है कि गठबंधन के पक्ष में न तो ओडिशा भाजपा के नेता ही थे और न बीजू जद के नेता।
गठबंधन से खफा
बीजेपी ने कर्नाटक में जद (सेकु) के साथ लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन किया है। सूबे की 28 में से 25 सीटों पर बीजेपी लड़ेगी, जबकि तीन सीटों पर जद (सेकु)। जद (सेकु) ने 2019 के चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था। पर बीजेपी की आंधी में इस गठबंधन का कोई लाभ नहीं हो पाया था। कांग्रेस और जद (सेकु) को एक-एक सीट पर ही सफलता मिल पाई थी। बीजेपी ने 25 सीटें जीती थी। तब सूबे में बीजेपी की सरकार थी। इस समय कांग्रेस की सरकार है। कांग्रेस को इसी आधार पर इस बार कर्नाटक से बेहतर नतीजों की उम्मीद है। उधर जद (सेकु) और भाजपा के कार्यकर्ता ही नहीं कई नेता भी गठबंधन से असंतुष्ट हैं। टुमकुर, हासन और मांडया में असंतोष सड़कों पर आ चुका है। भाजपा के भीतर भी लड़ाई है। चिक्काबलापुर सीट पर के सुधाकर की उम्मीदवारी को विधायक विश्वनाथ स्वीकार नहीं कर रहे।
मुश्किल दौर में सवाल पर सवाल
मुश्किल दौर में सवाल के जवाब में सवाल निकलते हैं। कांग्रेस पार्टी इन दिनों जांच एजंसियों के घेरे में है। इस घेरे के बाद भी सवालों के घेरे से जूझना लाजिम है। आयकर विभाग ने एक बार फिर से कांग्रेस पार्टी को नोटिस भेजा है। कांग्रेस देश की पुरानी पार्टी है और लंबे समय तक सत्ता में रही है। पार्टी के नेता यहां तक दावा कर चुके हैं कि उनके पास यात्रा और प्रचार तक के लिए पैसा नहीं है। नए नोटिस के बाद कांग्रेस के नेताओं की चिंता बढ़ गई है। इस पर जब कांग्रेस पार्टी से सवाल पूछा गया था तो वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने सवाल पूछने वालों को ही घेर लिया। कहा कि आपको पता है कि 1800 करोड़ रुपए कितना होता है? 2019 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी का पूरा प्रचार ही आठ सौ करोड़ में निपट गया था।
गैरों पे करम…
आंध्र प्रदेश में बीजेपी ने चंद्रबाबू नायडू की तेलगुदेशम और पवन कल्याण की पार्टी जन सेना से गठबंधन किया है। आंध्र में लोकसभा के साथ ही विधानसभा का चुनाव भी होगा। बीजेपी यहां दूसरे दलों से आए नेताओं को टिकट के मामले में वरीयता दे रही है। मंगलवार को विजयवाड़ा में हुई भाजपा के पदाधिकारियों और कोर कमेटी की बैठक से भाजपा के ज्यादातर प्रमुख नेता नदारद रहे। जबकि इस बैठक में प्रदेश अध्यक्ष पुरंदेश्वरी देवी के अलावा राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह और राष्ट्रीय सह संगठन महासचिव शिवप्रकाश भी मौजूद थे। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सोमू वीर राजू, राज्यसभा सांसद जीवीएल नरसिम्हा राव, पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष विष्णु वर्धन रेड्डी व वाई सत्यकुमार आदि नेता पूर्व सूचना के बावजूद इस बैठक में नहीं पहुंचे। हरेक के पास न पहुंच पाने का बहाना पहले से तैयार था। पर न पहुंचने की असल वजह पार्टी के वफादार कार्यकर्ताओं और नेताओं की जगह दूसरे दलों से आए नेताओं को टिकट दिया जाना बताई गई। मसलन नरसिम्हा राव विशाखापत्तनम से टिकट न मिलने से नाराज बताए जा रहे हैं। विष्णु वर्धन रेड्डी को उम्मीद थी कि पार्टी अगर हिंदुपुर से लोकसभा टिकट नहीं देगी तो कदीरी से विधानसभा टिकट तो जरूर देगी पर उन्हें भी निराशा हाथ लगी है। तिरुपति से पार्टी ने वीवीपी राव को उसी दिन लोकसभा टिकट दे दिया जिस दिन वे भाजपा में शामिल हुए। जमीनी कार्यकर्ताओं की नाराजगी की अनदेखी करना महंगा पड़ सकता है।
कागजी नाराजगी
वरुण गांधी को लेकर लगाए जा रहे तमाम कयास गलत साबित हो गए। खुद वरुण को भी आशंका तो जरूर होगी कि पीलीभीत से इस बार बीजेपी उन्हें टिकट नहीं देगी, तो उन्होंने अपने नाम से नामांकन पत्र क्यों लिए थे? अटकलों और कयासों को तो उन्होंने खुद ही हवा दी। उनके बारे में प्रचार किया जा रहा था कि वे पीलीभीत से ही लड़ेंगे। सपा से टिकट न मिला तो निर्दलीय ही लड़ेंगे। वरुण का टिकट तो पार्टी ने काट दिया पर उनकी मां मेनका गांधी को फिर सुल्तानपुर से ही उम्मीदवार बना दिया। कयास लग रहे थे कि बीजेपी मेनका को सुल्तानपुर की जगह पीलीभीत से उम्मीदवार बना सकती है। पीलीभीत से छह बार लोकसभा चुनाव जीती हैं मेनका। भाजपा ने शाहजहांपुर से नाता रखने वाले और उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री जितिन प्रसाद को वरुण की जगह पीलीभीत में उतार दिया है। उनके नामांकन के दौरान गैर हाजिर रहकर वरुण ने अपनी नाराजगी का संकेत तो दिया पर पार्टी से बगावत का साहस नहीं जुटा पाए। अब चर्चा है कि वे सुल्तानपुर में मां का चुनाव प्रचार करेंगे। कभी वरुण पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव थे पर आज आलम है कि सूबे के 40 स्टार प्रचारकों की सूची में भी उनका नाम नहीं है।
(संकलन : मृणाल वल्लरी)