'लिख के ले लो गुजरात में हराएंगे…', राहुल गांधी के दावे में कितना दम?
लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन के मजबूत प्रदर्शन ने पूरे विपक्ष को हौसले से भर दिया है। सांसद और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी तो इतने उत्साहित हैं कि अब वे गुजरात फतेह करने के सपने देख रहे हैं। लोकसभा के पटल से बोल चुके हैं- लिख के ले लो गुजरात में हराएंगे। अब विश्वास अच्छी बात है, पार्टी कार्यकर्ताओं को फिर खड़ा करने के लिए भी जरूरी है, लेकिन राहुल का यह बयान वास्तविकता के कितने नजदीक है? क्या सच में कांग्रेस गुजरात में जीत सकती है, क्या सच में बीजेपी अपने सबसे मजबूत गढ़ में हार सकती है? अब इन सवालों के जवाब जानते हैं, अलग-अलग बिंदुओं का विश्लेषण करते हैं-
गुजरात के तीन चुनाव के नतीजे
अब राहुल गांधी के बयान का सबसे सटीक विश्लेषण तो चुनावी नतीजे ही कर सकते हैं। अगर तीन विधानसभा चुनाव के नतीजे उठाकर देखें तो स्थिति साफ हो जाती है। एक चुनाव में करीबी टक्कर, एक चुनाव में बीजेपी को स्पष्ट बहुमत तो पिछले विधानसभा चुनाव में मोदी की आंधी। 2022 की बात करें तो बीजेपी ने 182 सीटों में से 156 सीटें जीती थीं, उसका वोट शेयर 53.3 प्रतिशत रहा। दूसरी तरफ राज्य में सरकार बनाने के सपने देख रही कांग्रेस का हाल काफी खराब रहा, वो सिर्फ 17 सीटें जीत पाई और उसका वोट शेयर 27.7 फीसदी पर सिमट गया। यहां भी कांग्रेस को बीजेपी से ज्यादा नुकसान आम आदमी पार्टी ने पहुंचाया जिसने सीटें जरूर 5 जीतीं, लेकिन उसका वोट शेयर 13.1 पहुंच गया। इंडिया गठबंधन की सदस्य समाजवादी पार्टी ने भी उस चुनाव में 1 सीट जीती थी और उसका वोट प्रतिशत 0.3% रहा।
अब राहुल गांधी के बयान पर गौर किया जाए तो उन्होंने यह नहीं बोला कि कांग्रेस, बीजेपी को हराएगी, उन्होंने तो कहा कि इंडिया गठबंधन हराने का काम करेगा। ऐसे में गुजरात में इंडिया गठबंधन का कैसा स्वरूप होगा, यह एक अहम सवाल है। अगर माना जाए कि दिल्ली की तरह गुजरात में भी आम आदमी पार्टी, कांग्रेस से हाथ मिलाएगी तो उस स्थिति में क्या तस्वीर बन सकती है, यह समझने की कोशिश करते हैं। 2022 के चुनाव को अगर पैरामीटर माना जाए तो AAP और कांग्रेस का वोट शेयर मिलाने के बाद कुल आंकड़ा 40.8 प्रतिशत बैठता है। बड़ी बात यह है कि दोनों पार्टियों का मिलाने के बाद जितना वोट शेयर बैठ रहा है, उससे भी 13 फीसदी ज्यादा बीजेपी ने हासिल किया। ऐसे में पिछले चुनाव के नतीजे तो बताते हैं कि इंडिया गठबंधन के लिए वो शेयर के इस गैप को पाटना ही एक बड़ी चुनौती रहने वाला है।
वैसे सिर्फ एक विधानसभा चुनाव से गुजरात की सियासी तस्वीर समझी नहीं जा सकती। ऐसे में 2017 के चुनाव पर चलते हैं जो सही मायनों में गेमचेंजर साबित हुआ था। उस चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को 100 से कम सीटों पर रोक दिया था। यह अपने आप में अप्रत्याशित था क्योंकि मोदी के गढ़ में इतनी तगड़ी चुनौती उन्हें कई सालों बाद मिली थी। उस चुनाव में बीजेपी ने 99 सीटें जीती थीं और उसका वोट शेयर 50 फीसदी बैठा था। कांग्रेस की बात करें तो उसने अपनी टैली सुधारते हुए 77 सीटें हासिल कीं और वोट प्रतिशत 42.2% तक गया। वही तब आम आदमी पार्टी ने एक्सपेरिमेंट के तौर पर 29 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन उसे एक भी सीट पर जीत नहीं मिली और उसका वोट शेयर तो सिर्फ 0.1% रहा।
अब उस चुनाव में खास बात यह थी कि कांग्रेस का वोट शेयर 40 फीसदी से ज्यादा रहा, लेकिन तब भी क्योंकि बीजेपी ने 50 फीसदी वोट प्रतिशत रखा, उसने कम अंतर से ही सही जीत दर्ज की। अगर आप-कांग्रेस साथ भी आ जाते तो कोई अंतर नहीं पड़ने वाला था, कुल आंकड़ा 40.1 फीसदी बैठता जो फिर 9 प्रतिशत से ज्यादा का अंतर है। ऐसे में वोट शेयर के आधार पर अगर समीक्षा की जाएगी बीजेपी के सामने ऐसा कोई गठबंधन नहीं चलने वाला है। चलिए एक चुनाव और पीछे चलते हैं, 2012 में भी बीजेपी ने ही अपनी सरकार बनाई थी। मोदी की अगुवाई में उसने 115 सीटें जीतीं और उसका वोट शेयर 47.9 प्रतिशत रहा। दूसरी तरफ कांग्रेस ने पूरी ताकत लगाई, लेकिन फिर भी वो सिर्फ 61 सीटें जीत पाई, उसका वोट प्रतिशत 38.9% रहा।
अब यह चुनावी नतीजे इसलिए बताए क्योंकि यह वो तथ्य हैं जो बताते हैं कि गुजरात में बीजेपी कितनी ज्यादा मजबूत है। पूरी ताकत लगाने के बाद भी कांग्रेस सबसे ज्यादा 77 सीटें जीतने में कामयाब हो पाई है। ऐसे में राहुल का बयान अपनी जगह है, लेकिन जमीनी हकीकत के लिहाज से यह राह काफी मुश्किल साबित होने वाली है। इस समय कांग्रेस को थोड़ी बहुत जो उम्मीद जगी है उसका कारण वो इकलौती बनासकांठा सीट है जो उसने आगामी लोकसभा चुनाव में जीती है। यह जीत ज्यादा बड़ी इसलिए है क्योंकि 10 साल बाद लोकसभा चुनाव में गुजरात के अंदर कांग्रेस का खाता खुला है।
गुजरात में आम आदमी पार्टी कितनी मजबूत
वैसे राहुल ने क्योंकि खुद बोला है कि इंडिया गठबंधन गुजरात में चुनाव लड़ेगा, ऐसे में आम आदमी पार्टी की मजबूती का विश्लेषण करना जरूरी है। आम आदमी पार्टी को लेकर कहा जाता है कि आने वाले समय में वो गुजरात में कांग्रेस का विकल्प बन सकती है। इसके पीछे भी राय से ज्यादा वो आंकड़े हैं जो बताते हैं कि आम आदमी पार्टी ने असल में बीजेपी से ज्यादा देश की सबसे पुरानी पार्टी को नुकसान पहंचाने का काम किया है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी का वोट शेयर 13 फीसदी के करीब रहा, जो उससे पिछली बार सिर्फ 0.1 था। वही कांग्रेस का वोट शेयर 27% पर आ गया जो 2017 में 40 प्रतिशत था। यानी कि 13 फीसदी जो कांग्रेस ने गवाएं, वो सीधे-सीधे आम आदमी पार्टी ने हासिल कर लिए।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या आम आदमी पार्टी अब अकेले चुनाव लड़ जमीन पर अपनी ताकत को और ज्यादा बढ़ाना चाहेगी या फिर वो गठबंधन कर सिर्फ बीजेपी को हराने पर फोकस करेगी। वैसे गुजरात में आम आदमी पार्टी मजबूत तो हुई है, इस बात में कोई दो राय नहीं। अगर पिछले विधानसभा चुनाव को ही डीकोड कर लें तो आम आदमी पार्टी कहने को पांच सीटें ही जीती, लेकिन 35 सीटों पर वो दूसरे नंबर पर रही, यानी कि उसका मुकाबला सीधे-सीधे बीजेपी से रहा। उन सभी सीटों पर आप ने कांग्रेस को तीसरे पायदान पर धकेल दिया। ऐसे में अगर गुजरात में भी इंडिया गठबंधन रहता है तो बीजेपी को आम आदमी पार्टी से कड़ी टक्कर मिल सकती है।
गुजरात में क्यों कमजोर होती गई कांग्रेस?
लेकिन आम आदमी पार्टी गुजरात में जितना मजबूत होगी, कांग्रेस उतनी ज्यादा ही कमजोर होती चली जाएगी। असल में राहुल गांधी ने कहां जरूर है कि इंडिया गठबंधन गुजरात में लड़ेगा, लेकिन विधानसभा चुनाव में तो उसका असल मुकाबला आम आदमी पार्टी से रहा क्योंकि उसके ज्यादातर वोट केजरीवाल की पार्टी ने ही काटे। ऐसे में आप जितनी मजबूत होगी, कांग्रेस का भविष्य गुजरात में उतना ही गर्द में जाता रहेगा। अब गुजरात में कांग्रेस के पतन के अपने कारण हैं। कई बड़े चेहरों का साथ छोड़ने से लेकर बीजेपी के पास नरेंद्र मोदी जैसा आक्रमक नेता आने तक, कई फैक्टरों ने गुजरात में कांग्रेस को बुरी तरह पछाड़ दिया है। कई सालों से क्योंकि लगातार गुजरात में कांग्रेस हार रही है, उसका संगठन भी काफी कमजोर हो चुका है, कई इलाकों में तो वो एक तरह से नदारद चल रहा है। एक आंकड़ा बताता है कि गुजरात कांग्रेस को 2002 के बाद से 200 से ज्यादा नेताओं ने छोड़ दिया है। इसमें कई बड़े, कई छोटे तो कई जमीनी कार्यकर्ता तक शामिल हैं। हैरानी की बात यह उनमें कई बड़े नेता आज बीजेपी की पिच से मजबूती से बैटिंग कर रहे हैं और कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचा रहे हैं।
समझने वाली बात यह भी गुजरात एक ऐसा राज्य है जहां पर कांग्रेस के कार्यकर्ता खासा निराशा में डूब चुके हैं। जो पार्टी कभी गुजरात में सबसे बड़ी जीत दर्ज करने का गुमान दिखाती थी, मार्च 1995 के बाद से वो सत्ता में ही वापस नहीं लौट पाई है। कुछ समय के लिए उसने राष्ट्रीय जनता पार्टी का समर्थन कर बाहर से सरकार चलाने की कोशिश जरूर की, लेकिन 1997 से वो कसर भी पूरी तरह खत्म हो गई और गुजरात में बीजेपी का उदय हुआ। 2017 के विधानसभा चुनाव को अगर एक अपवाद माना जाए, कांग्रेस चुनाव दर चुनाव गुजरात में बस कमजोर होती गई है। पिछले विधानसभा चुनाव में तो उसका वोट शेयर क्योंकि 27 फीसदी के करीब रह गया, इसे सही मायनों में बड़े झटके के रूप में देखा गया। इससे पहले वाले चुनावों तक में कम सीटों के बावजूद भी कांग्रेस का अपना वोट शेयर ज्यादा नहीं गिर रहा था, लेकिन वो कसर भी 2022 के चुनाव ने पूरी कर डाली।
बीजेपी की क्यों हो रही लगातार जीत?
अब कांग्रेस का पतन तो समझ आ रहा है,लेकिन बीजेपी को मिल रही लगातार जीत भी मायने रखती है। सभी के मन में सवाल है कि राहुल उस बीजेपी को कैसे हर पाएंगे जो पिछले तीन दशक से गुजरात पर राज कर रही है। जो लोग गुजरात को समझते हैं, उन्हें इस बात का भी अहसास है कि यहां की सवा छह करोड़ की आबादी में पौने दो करोड़ तो पांच शहरों में रहते हैं। यह पांच शहर अहमदाबाद, बड़ौदा, राजकोट, सूरत और भावनगर हैं। इन पांच शहरों में बीजेपी अप्रत्याशित रूप से मजबूत है, उसका मुकाबला किसी से नहीं दिखता है। इन सभी सीटों पर पटेल, बनिया, जैन और ब्राह्मणों का जोर है जिनका एकमुश्त वोट भी बीजेपी के खाते में ही जा रहा है।
अगर थोड़ा फ्लैशबैक में चला जाए तो कांग्रेस ने भी क्षत्रिय, हरिजन, आदिवासी और मुसलमान के वोटबैंक को साधकर खाम राजनीति की शुरुआत की थी। कांग्रेस ने उसके दम पर 146 सीटें भी जीतीं। लेकिन बीजेपी ने भी उसका काउंटर निकाला और पटेल, बनिया, जैन और ब्राह्मणों का भरपूर वोट हासिल करना शुरू कर दिया। अब गुजरात की खासियत यह है कि यहां का शहरी समीकरण ग्रामीण समीकरण को भी प्रभावित करता है। इसी वजह से ग्रामीण इलाकों में भी बीजेपी का ही दबदबा दिखता है। इसके ऊपर हिंदुत्व की राजनीति ने तो पार्टी को अलग ही बल देने का काम किया है। तमाम एक्सपर्ट मानते हैं कि 2002 के बाद से जो हिंदुत्व की एक लहर गुजरात में चली है, उसका असर आज भी कई सीटों पर देखने को मिलता है। यहां भी बीजेपी को वोट सिर्फ सिर्फ मोदी के नाम पर मिल जाता है। 2017 के चुनाव में अगर पीएम मोदी जोर ना लगाते, अगर वे समय रहते गुजराती अस्मिता का राग ना छेड़ते, पार्टी अपने सबसे मजबूत गढ़ में हार जाती। ऐसे में मोदी फैक्टर गुजरात में हावी रहता है।
अब राहुल गांधी के सामने कई सवाल हैं, अगर उनका जवाब खोज निकाला, तभी गुजरात का रास्ता कांग्रेस के लिए खुल सकता है। पहला सवाल- मोदी के मुकाबले गुजरात में किस चेहरे पर दांव चलेगी कांग्रेस? दूसरा सवाल- बीजेपी की हिंदुत्व की राजनीति का कांग्रेस के पास क्या तोड़ है? तीसरा सवाल- लगातार पार्टी छोड़ रहे नेताओं के बीच कार्यकर्ताओं को कैसे एकजुट रखेगी पार्टी? कांग्रेस क्या आम आदमी पार्टी को खतरा मानती है या फिर साथ आकर सत्ता का सुख भोगने का साधन? जब तक इन सवालों के जवाब राहुल गांधी नहीं खोल लेते, उनका यह कहना कि 'लिख के ले लो गुजरात में हराएंगे…' सिर्फ बेइमानी नजर आता है।