Punjab Politics: सुखबीर बादल पर क्यों हमलावर हैं अकाली दल के बागी? वफादार ही बढ़ा रहे पार्टी की मुसीबत
Punjab Politics: शिरोमणि अकाली दल के पंजाब में लगातार दो कार्यकाल के बाद 2017 में सत्ता से बाहर हो गई थी। पार्टी के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल पार्टी में असंतोष का सामना कर रहे हैं। इस दौरान अकाली दल के नेताओं के एक वर्ग ने समय-समय पर सुखबीर के नेतृत्व के साथ-साथ पार्टी पर बादल परिवार के नियंत्रण पर भी सवाल उठाए हैं। लोकसभा चुनावों में शिअद की हार के तीन सप्ताह बाद पार्टी में पनप रहा असंतोष मंगलवार को भड़क गया।
अकाली दल के बागी गुट ने सुखबीर के खिलाफ खुलेआम बगावत का झंडा बुलंद कर दिया तथा उनके इस्तीफे की मांग के लिए प्रस्ताव पारित किया। पंजाब में हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में मुकाबले में अकाली दल अपने पूर्व सहयोगी से अलग होकर चुनाव लड़ रहा था। बीजेपी को एक बार फिर करारी हार का मिली है। अकाली दल 13 में से सिर्फ एक सीट जीत पाई, जबकि कांग्रेस को सात और सत्तारूढ़ को सात सीटें मिलीं। आम आदमी पार्टी ने तीन सीटें जीतीं, तथा शेष दो सीटें निर्दलीय उम्मीदवार रहे।
पूर्व करीबी नेताओं ने सुखबीर के नेतृत्व पर उठाए सवाल
अकाली दल केवल एक सीट जीत पाया, जो कि भटिंडा की थी। यहां से सुखबीर की पत्नी हरसिमरत कौर लगातार चौथी बार निर्वाचित हुईं। पार्टी के लिए सबसे बड़ी बात यह रही कि उसके दस उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। इसको लेकर पार्टी के पूर्व सांसद प्रेम सिंह चंदूमाजरा, सिकंदर सिंह मलूका, पूर्व एसजीपीसी अध्यक्ष जागीर कौर सहित अन्य प्रमुख अकाली नेताओं ने सुखबीर के अध्यक्ष रहते हुए शिअद के मूल समर्थकों के खिसकने पर चिंता व्यक्त करते हुए यहां एक बैठक की।
इस बैठक दौरान एक प्रस्ताव पारित कर मांग की गई कि सुखबीर को “बलिदान की भावना” दिखानी चाहिए और लोगों की भावनाओं को देखते हुए पद छोड़ देना चाहिए। अकाली नेता सुखदेव सिंह ढींडसा और दिवंगत रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा उन पार्टी नेताओं में से थे, जो 2017 के पंजाब विधानसभा चुनावों में पार्टी की हार के बाद सुखबीर के खिलाफ खुलकर सामने आए थे, जब कांग्रेस ने जीत हासिल की और सत्ता में वापस आई। अकाली दल का उस वक्त बीजेपी से गठबंधन था और 117 में से सिर्फ 15 सीटें जीतीं थीं, जबकि कांग्रेस ने 77 सीटें जीतीं, जबकि नई पार्टी आप 20 सीटों के साथ मुख्य विपक्ष के रूप में उभरी।
पहले मनाने में सफल रहे थे सुखबीर
कहा जा रहा है कि पार्टी के खिलाफ बेअदबी की घटनाओं और दोषियों को सजा दिलाने में सरकार की “अक्षमता” को लेकर नाराजगी है। ढींडसा और ब्रह्मपुरा ने अकाली दल से अलग होकर अपना गुट बनाया और फिर उसे SAD (संयुक्त) में मिला लिया। हालांकि सुखबीर पार्टी पर अपनी पकड़ बनाए रखने में कामयाब रहे और बाद में ब्रह्मपुरा और ढींडसा को वापस अपने पाले में लाने में भी सफल रहे। 2022 के पंजाब चुनावों से पहले ब्रह्मपुरा शिअद में लौट आए जबकि हालिया लोकसभा चुनावों से पहले ढींडसा भी शिअद में शामिल हो गए।
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की पूर्व अध्यक्ष और तीन बार की विधायक जागीर कौर को भी नवंबर 2022 में पार्टी विरोधी गतिविधियों के लिए निष्कासन के बाद हाल ही में पार्टी में लौटने के लिए राजी किया गया। पिछली बार की अपेक्षा वर्तमान विद्रोह ज़्यादा संगठित और बड़े पैमाने पर दिख रहा है, जिसमें प्रेम सिंह चंदूमाजरा, सिकंदर सिंह मलूका और गुरप्रताप सिंह वडाला समेत कई अकाली नेता ढींडसा और जागीर कौर के साथ मिलकर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व में बदलाव की मांग कर रहे हैं।
कई दिग्गजों ने जताया है विरोध
विद्रोहियों में कई अकाली दिग्गजों के परिवारों के नेता भी शामिल हैं, जिनका निधन हो चुका है। इनमें मास्टर तारा सिंह, गुरचरण सिंह तोहरा, जगदेव सिंह तलवंडी और सुरजीत सिंह बरनाला। उन्होंने उन सिखों से फिर से जुड़ने के लिए “अकाली दल बचाओ मुहिम” की घोषणा की, जिनके बारे में उनका मानना है कि उन्होंने सुखबीर के नेतृत्व में पार्टी का समर्थन करना बंद कर दिया है।
आनंदपुर साहिब से लोकसभा चुनाव हारने वाले चंदूमाजरा अकाली दल के इस बयान से नाराज हैं कि चुनाव में हार के बाद हुई कोर कमेटी की बैठक में सुखबीर के नेतृत्व में पूर्ण विश्वास जताने वाला प्रस्ताव पारित किया गया था। बात दूसरे नेता मलूका की करें तो उन्होंने नवंबर 2022 में जागीर कौर को शिअद की अनुशासन समिति के प्रमुख पद से निष्कासित करने के आदेश पर हस्ताक्षर किए थे। उनको हाल ही में उनके पद से हटा दिया गया। उनकी बहू परमपाल कौर सिद्धू ने लोकसभा चुनाव में बठिंडा से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था। मलूका ने चुनाव से खुद को दूर रखा, लेकिन उन्होंने चुनाव से पहले एक वीडियो संदेश जारी कर प्रधानमंत्री की मोदी की तारीफ की थी।
बीजेपी पर बादल परिवार का हमला
बादल परिवार के कई कट्टर वफादारों की बात करें तो इसमें पूर्व विधायक भी शामिल हैं। राज्यसभा सांसद बलविंदर सिंह भूंदर, पार्टी प्रवक्ता दलजीत सिंह चीमा और वरिष्ठ पार्टी नेता महेशिंदर सिंह ग्रेवाल उन अकाली नेताओं भी सुखबीर का समर्थन कर रहे हैं। बादल परिवार पार्टी में इस संकट के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहरा रहा है। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के पूर्व अध्यक्ष और पार्टी कोर कमेटी के सदस्य परमजीत सिंह सरना ने इस विद्रोह को "ऑपरेशन लोटस" करार दिया है। हरसिमरत ने विद्रोहियों को बीजेपी की कथित "कठपुतली" बताया है।