1998, 2019 और 2024 से कैसे अलग रहा इस बार राष्ट्रपति मुर्मू का अभिभाषण, कोविंद और केआर नारायणन से क्यों हो रही तुलना
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का भाषण काफी चर्चा में है। भाषण में उनके ज़रिए रखी गई बातें यह संकेत देती हैं कि एनडीए सरकार के आने वाले पांच साल भी पिछले दस साल की तरह ही होंगे। राष्ट्रपति ने एनडीए के सहयोगी दलों के ज़िक्र के बिना एक 'निर्णायक जनादेश' और 'स्पष्ट बहुमत' की बात पर ज़ोर दिया।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अभिभाषण में एक संदेश था जिसे 2019 के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के भाषण और 1998 की अटल बिहार वाजपेयी सरकार के दौरान राष्ट्रपति के आर नारायणन के भाषण की तुलना से समझा जा सकता है। इसे आप आगे पढ़ सकेंगे।
राष्ट्रपति ने क्या संदेश देने की कोशिश की?
राष्ट्रपति ने अपने अभिभाषण के ज़रिए कहा-- “2024 का यह चुनाव नीति, नीयत, समर्पण और निर्णयों में विश्वास का चुनाव है: यह मेरी सरकार के पिछले 10 वर्षों में किए गए सेवा और सुशासन के मिशन पर स्वीकृति की मुहर है।” राजनीतिक विश्लेषक उनके बयान के इस हिस्से का यह मतलब निकालते हैं कि यह सरकर गठबंधन में है इसलिए कमजोर सरकार के तौर पर इसे ना देखा जाए।
पिछले दो राष्ट्रपतियों के संबोधनों से तुलना?
साल 2019 में राष्ट्रपति कोविंद ने भी सांसदों को दिए अपने पहले संबोधन में भी स्पष्ट जनादेश का इस्तेमाल किया था और एनडीए या गठबंधन का उनके भाषण में कोई ज़िक्र नहीं था। तब बीजेपी भाजपा बहुमत के आंकड़े (272) से 31 सीटें ज़्यादा लेकर संसद में मौजूद थी। लेकिन इस बार बीजेपी 32 सीटों से पीछे रह गई है। बात करें अटल बिहारी वाजपेयी की 1998 में बनी एनडीए सरकार की तो तब भाजपा180 से कुछ ज़्यादा सीटों के साथ सत्ता में थी। तब राष्ट्रपति केआर नारायणन द्वारा दिए गए राष्ट्रपति के अभिभाषण का लहज़ा सुलह-समझौता वाला था।
विपक्ष पर हमला : तुलना
राष्ट्रपति कोविंद ने अपने अभिभाषण में विपक्ष पर सीधा हमला ना करते हुए सिर्फ़ इतना कहा था कि 2014 में लोगों ने तीन दशक के बाद पूर्ण बहुमत वाली सरकार चुनी थी, ताकि ‘देश को निराशा और अस्थिरता की भावना से बाहर निकाला जा सके।’इस बार राष्ट्रपति ने कांग्रेस का नाम लिए बिना आपातकाल का हवाला दिया और कहा कि लोकसभा चुनावों में अच्छे मतदान ने दिखाया है कि जम्मू-कश्मीर ने देश के ‘दुश्मनों’ को ‘देश के भीतर और बाहर’ करारा जवाब दिया है।
अगर यहां गौर करें राष्ट्रपति नारायणन के अभिभाषण पर तो इस संबंध में यह काफी समझौतापूर्ण था। उन्होंने कहा था, "हमारा लोकतंत्र बहुदलीय है, जिसमें सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच रचनात्मक संवाद, परामर्श और सहयोग राष्ट्रीय सहमति के व्यापक मंच को विकसित करने के लिए आवश्यक है।" सीधे तौर पर उन्होंने विपक्ष पर हमला नहीं किया था।