पद ग्रहण से पहले नेताओं को क्यों दिलवाई जाती है शपथ? जानें क्या हैं नियम
भाजपा के वरिष्ठ नेता नरेंद्र मोदी आज शाम 7:15 बजे तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे। पीएम मोदी के साथ एनडीए गठबंधन के कई सांसद मंत्री पद की शपथ लेंगे। कई लोगों के मन में सवाल उठ रहा है कि आखिर नेताओं को प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्री पद की शपथ क्यों दिलवाई जाती है? इसके अलावा शपथ तोड़ने या उल्लंघन करने पर क्या होता है? इसको लेकर कई प्रकार के नियम है।
पीएम या मंत्री क्यों लेते हैं शपथ?
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार लोकसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा ने बताया कि सांसद, विधायक, प्रधानमंत्री और मंत्रियों को पद ग्रहण करने से पहले संविधान के प्रति श्रद्धा रखने की शपथ लेनी पड़ती है। जब तक सांसद या विधायक शपथ नहीं लेते हैं तब तक वह किसी भी सरकारी कार्य में हिस्सा नहीं ले सकते हैं। इसके अलावा उन्हें सदन में बोलने भी नहीं दिया जाता है, ना ही वह आधिकारिक तौर पर सांसद माने जाएंगे। उन्हें जनता से निर्वाचित होने का सर्टिफिकेट मिल जाता है लेकिन वह सदन में कोई मुद्दा नहीं उठा सकेंगे। न ही कोई वेतन या सुविधा मिलेगी।
कोई नेता शपथ लेने के बाद ही सरकारी कामकाज या सदन की कार्रवाई में हिस्सा ले सकता है। बता दें कि राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और विधायक सरकारी सेवा के लिए पद की गरिमा बनाए रखने ईमानदारी और निष्पक्षता से काम करने की शपथ लेते हैं। वह अंग्रेजी, हिंदी या किसी भी भारतीय भाषा में शपथ ले सकते हैं। नेताओं की शपथ में देश के संप्रभुता और अखंडता को बनाए रखने का प्राण होता है।
अनुच्छेद 75 के अनुसार प्रधानमंत्री लेते हैं शपथ
शपथ लेने वाले नेता गोपनीयता की भी शपथ लेते हैं और उसको निभाने का वचन देते हैं। प्रधानमंत्री को अनुच्छेद 75 के अनुसार राष्ट्रपति के सामने शपथ ग्रहण करना होता है। शपथ पत्र को प्रधानमंत्री पढ़ते हैं और उसे स्वीकार करते हैं। इसके बाद एक प्रमाण पत्र भी जारी किया जाता है, जिसमें प्रधानमंत्री की शपथ लेने की तारीख और तिथि लिखी हुई होती है। प्रधानमंत्री उस पर हस्ताक्षर भी करते हैं।
सांसदों को भी लेनी होती है शपथ
अनुच्छेद 99 के अनुसार संसद के सभी सदस्यों को शपथ लेनी पड़ती है। 1873 में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने इंडियन कोर्ट एक्ट लागू किया था। इसमें धार्मिक पुस्तकों पर हाथ रखकर शपथ दिलाई जाती थी।