क्या थे संविधान के वो 3 संशोधन जिन्हें PM मोदी ने बताया 'मिनी संविधान'? इंदिरा गांधी से क्या है कनेक्शन
पीएम मोदी ने राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर बोलते हुए संविधान का ज़िक्र किया और कांग्रेस को एक बार फिर आपातकाल का जिक्र कर आड़े हाथ लिया। पीएम ने कहा,"इसस बार अगर संविधान की रक्षा का चुनाव था, तो संविधान की रक्षा के लिए देशवासियों ने हमें योग्य पाया है। संविधान की रक्षा के लिए देशवासियों को हम पर भरोसा हैं और संविधान की रक्षा के लिए देशवासियों ने हमें जनादेश दिया है।"
पीएम मोदी ने इस दौरान आपातकाल के दौर का प्रमुखता से ज़िक्र किया और कहा हमें 1977 के चुनाव को याद रखना चाहिए, जब लोकतंत्र और संविधान को बचाया गया था।
पीएम मोदी ने किसे बताया 'मिनी कॉन्स्टीट्यूशन'
राज्यसभा में पीएम मोदी ने अपने संबोधन के दौरान 1977 के लोकसभा चुनाव के समय को याद किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि तब मतदाताओं ने भारत के संविधान की रक्षा और लोकतंत्र को फिर से स्थापित करने के लिए मतदान किया था। पीएम ने कहा कि आज संविधान को बचाने की इस लड़ाई में भारत के लोगों की पहली पसंद मौजूदा सरकार है।
पीएम मोदी ने आपातकाल के दौरान देश पर हुए अत्याचारों का भी जिक्र किया। उन्होंने 38वें, 39वें और 42वें संविधान संशोधन के साथ-साथ एक दर्जन अन्य अनुच्छेदों का भी जिक्र किया, जिन्हें आपातकाल के दौरान संशोधित किया गया था। पीएम ने कहा कि उस समय संविधान की भावना के साथ छेड़छाड़ की गई थी।
क्या थे संशोधन?
38वां संशोधन : इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगने के बाद सबसे पहले संविधान में 38वां संशोधन किया था। जिसे 22 जुलाई 1975 को अमल में लाया गया था। यह संशोधन न्यायपालिका से आपातकाल की न्यायिक समीक्षा का अधिकार छीनने के लिए लाया गया था।
39वां संशोधन : संविधान में 39वां संशोधन किया गया था। जिसे तत्कालीन इंदिरा सरकार को लगे एक बड़े झटके बाद लाया गया। दरअसल इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राज नारायण बनाम इंदिरा गांधी (12 जून 1975 को दिए गए) मामले में चुनावी कदाचार के आधार पर इंदिरा गांधी के चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया था। इसके अलावा वह छह साल तक चुनाव नहीं लड़ सकती थीं। हालांकि गांधी ने इस आदेश को चुनौती दी। इसके बाद 10 अगस्त 1975 को संसद में 39वां संशोधन पारित हो गया था।
संशोधन की एक धारा साफ तौर पर यह कह रही थी कि प्रधानमंत्री और लोक सभा अध्यक्ष के चुनाव से संबंधित विवाद का निर्णय केवल संसद की ओर से गठित कमेटी ही कर सकती है।
42वां संशोधन : 42वें संशोधन के आने से भी मूल संविधान में कई बदलाव हुए थे। इसका प्रमुख बिन्दु यह था कि किसी संसद के फैसले को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है और सांसदों विधायकों की सदस्यता को भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है। इस संशोधन के तहत संसद का कार्यकाल भी पांच से छह साल का कर दिया गया था। हालांकि जनता पार्टी की सरकार ने 44वें संशोधन के जरिए इसे हटा दिया था।