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'वह पांच वक्त का नमाजी…', ओडिशा हाईकोर्ट ने मौत की सजा को उम्रकैद में बदला

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि किसी भी क्राइम के लिए उसको इतनी बड़ी सजा नहीं दी जा सकती है।
Written by: न्यूज डेस्क
नई दिल्ली | June 28, 2024 16:32 IST
 वह पांच वक्त का नमाजी…   ओडिशा हाईकोर्ट ने मौत की सजा को उम्रकैद में बदला
ओडिशा हाईकोर्ट। (इमेज-पीटीआई)
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ओडिशा हाईकोर्ट ने रेप और हत्या के एक दोषी की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है। वहीं, उसके साथ एक दूसरे आरोपी को भी बरी कर दिया गया है। उसे भी ट्रायल कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी। रेप और हत्या के दोनो दोषियों ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। इनमें से एक दोषी आसिफ अली के बारे में जस्टिस एसके साहू और आरके पटनायक की पीठ ने पाया कि जेल में वह पिछले 10 सालों से जेल में बंद है और उसका व्यवहार काफी अच्छा रहा है।

वर्डिक्टम की रिपोर्ट के मुताबिक, आसिफ अली ने खुद को ईश्वर को समर्पित कर दिया है। वह रोजाना इबादत करता है। वहीं, जेल में बंद दूसरे कैदियों के साथ में भी उसका बर्ताव काफी अच्छा है। कोर्ट ने कहा कि कोई भी ऐसी घटना सामने नहीं आई है जिससे इस बात का पता चल सके कि उसमें थोड़ा सा भी सुधार नहीं हुआ है।

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मौत की सजा को उम्रकैद में बदला

कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि किसी भी क्राइम के लिए उसको इतनी बड़ी सजा नहीं दी जा सकती है। इतना ही नहीं कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर किसी मासूम को क्राइम से भी ज्यादा बड़ी सजा दी जाती है तो यह वैसे ही हो जाता है जैसे किसी मासूम को कोई सजा दे दी गई हो। कोर्ट ने यह भी कहा कि 10 साल में जेल में रहने के दौरान आसिफ ने ऐसा कोई भी काम नहीं किया है जिससे किसी भी स्टाफ को परेशानी का सामना करना पड़ा हो। इसलिए उसकी दोषी की मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया जाता है। कोर्ट ने दूसरे आरोपी को सबूत की कमी की वजह से छोड़ दिया।

क्या था पूरा मामला

दरअसल यह पूरा मामला साल 2014 का है। आसिफ अली और आबिद अली पर एक 6 साल की बच्ची से रेप और हत्या का आरोप था। इन पर आरोप था कि जब बच्ची चॉकलेट लेकर वापस आ रही थी तो उसे जबरदस्ती पकड़ा गया और रेप किया गया। गंभीर चोट आने के कारण उसकी मौत हो गई। इस मामले में पीड़ित की चाची ने आसिफ और अकील के साथ 2 अन्य के खिलाफ FIR दर्ज कराई थी, जिसमें पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की थी। ट्रायल कोर्ट ने आईपीसी की धारा 302, 376-डी, 376-ए और पोक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत दोषी पाया और उन्हें फांसी की सजा सुनाई। इस सजा के खिलाफ अकील और आसिफ ने हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी। हाईकोर्ट ने पाया कि अकील के खिलाफ ठोस सबूत नहीं है।

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