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पहले कैबिनेट और अब स्पीकर तय करने में दिखाई ताकत, गठबंधन सरकार में आक्रामक ही रहेगा मोदी-शाह का अंदाज?

NDA Government: बीजेपी को पूर्ण बहुमत न मिलने और एनडीए गठबंधन की सरकार चलाने को लेकर यह लगातार कहा जा रहा है कि पीएम नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पहले ही तरह आक्रामक नहीं होगी, लेकिन एनडीए सरकार ने अब तक के घटनाक्रमों में इसे गलत साबित करने की कोशिश की है।
Written by: Krishna Bajpai
नई दिल्ली | June 26, 2024 14:39 IST
पहले कैबिनेट और अब स्पीकर तय करने में दिखाई ताकत  गठबंधन सरकार में आक्रामक ही रहेगा मोदी शाह का अंदाज
पीएम मोदी को मिली है पुराने अंदाज में गठबंध सरकार चलाने की चुनौती (सोर्स - PTI/File)
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Lok Sabha Speaker के चुनाव में आज एनडीए की ओर से प्रत्याशी बनाए गए कोटा से बीजेपी सांसद ओम बिरला की सदन के अंदर ध्वनिमत के जरिए जीत हुई, और विपक्षी दलों के प्रत्याशी के. सुरेश की हार हुई। स्पीकर को लेकर पिछले कुछ दिनों से काफी बवाल जारी था और विपक्षी दल लगातार मांग कर रहे थे कि यूपीए शासन के दौरान डिप्टी स्पीकर का पद विपक्ष को दिया जाता था और वहीं परंपरा नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार को निभानी चाहिए। विपक्षी दलों द्वारा इसके जरिए पीएम मोदी और बीजेपी को चुनौती भी दी गई लेकिन आज वह चुनौती हवा हो गई।

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दरअसल, कांग्रेस नेता और सदन में नेता विपक्ष राहुल गांधी ने कहा था कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से स्पीकर के नाम पर सहमति के लिए कहा था, जिस पर खड़गे जी ने डिप्टी स्पीकर अपना बनाने की मांग की। राहुल का कहना था कि राजनाथ सिंह ने खड़गे को दोबारा फोन का आश्वासन दिया लेकिन फोन नहीं किया जो कि अपमान है। दूसरी ओर केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल से लेकर जेडीयू नेता और केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह (ललन सिंह) ने भी विपक्ष पर शर्ते थोपने का आरोप लगाया है।

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BJP और NDA ने दिखाया आक्रामक रवैया

विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच काफी तनातनी दिखी। दूसरी ओर राजनीतिक विश्लेषकों द्वारा लगातार यह कहा गया कि बीजेपी के पास पूर्ण बहुमत नहीं है। ऐसे में पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपयी की सरकार के समय जिस प्रकार स्पीकर का पद गैर बीजेपी एनडीए घटक दल के पास था, वैसे ही इस बार यह पद बीजेपी को टीडीपी या जेडीयू को देना होगा। विपक्षी दलों द्वारा एक नेरेटिव यह भी चलाया गया कि अगर टीडीपी और जेडीयू बीजेपी से स्पीकर का पद नहीं मांगती हैं, तो बीजेपी अंदरखाने उनके सांसदों को भी तोड़ सकती है।

ऐसे में जब-जब बीजेपी या एनडीए के किसी भी नेता से बातचीत हुई तो उनका स्पष्ट कहना रहा था कि बीजेपी जिसका भी नाम स्पीकर के लिए तय करेगी, एनडीए के सभी घटक दल उसका समर्थन करेंगे। आज जब स्पीकर पद को लेकर चुनाव की प्रक्रिया हुई तो एनडीए की बात सही साबित हुई। जेडीयू नेता ललन सिंह से लेकर जयंत चौधरी और अनुप्रिया पटेल से लेकर टीडीपी, शिवसेना, एनसीपी सभी घटक दलों के नेताओं ने ओम बिरला के पक्ष में प्रस्ताव का समर्थन किया।

दबाव बनाने की कोशिश?

विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन ने कांग्रेस सांसद के.सुरेश को स्पीकर प्रत्याशी बनाया, यह जानते हुए भी कि उनके पास संख्या बल नहीं है। स्पीकर ने अपनी ताकत दिखाने के लिए और एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए के सुरेश को मैदान में उतारा था। विपक्षी दलों के इंडिया गठबंधन के नेताओं ने डिवीजन और वोटिंग की मांग की थी, लेकिन प्रोटेम स्पीकर ने इसे नहीं माना। विपक्ष की यह मांग दिखाती है कि इंडिया गठबंधन को पता था कि वह हार जाने वाला है, लेकिन फिर भी वह अपना संख्या बल दिखाकर सत्ता पक्ष पर एक मानसिक दबाव बनाना चाहता था।

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2014 में 2019 का ही मिजाज दिखाने की कोशिश

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में 44 सीटें जीतने वाली कांग्रेस को नेता विपक्ष का पद नहीं मिला था। 2019 में भी कुछ ऐसा ही हुआ था। 2014 के पहले तो ऐसा देखा गया था कि यूपीए सरकार के दौरान दोनों ही कार्यकालों में विपक्षी दलों के डिप्टी स्पीकर बने थे लेकिन 2014 के बाद यह डिप्टी स्पीकर का पद, बीजेपी ने अपने एनडीए के सहयोगी दल AIADMK के नेता एम थंबी दुराई को दिया था। 2019 में स्थापित हुई 17वीं लोकसभा के पूरे 5 साल में डिप्टी स्पीकर का पद रिक्त रहा था।

ऐसे में डिप्टी स्पीकर को लेकर अड़े विपक्षी दलों की बातों को नजरंदाज कर, स्पीकर का निर्णय चुनाव के जरिए करवाकर एनडीए ने यह स्पष्ट कर दिया है, कि वह डिप्टी स्पीकर का पद भी विपक्ष को नहीं देंगे। इसे पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की आक्रामक नीति का हिस्सा माना जा रहा है, क्योंकि एनडीए सरकार इस कदम से यह स्पष्ट करना चाहती है कि जैसे 2014 और 2019 के शासन काल में विपक्ष को डिप्टी स्पीकर का पद नहीं दिया गया था, तो उसी आक्रामक रवैये के तहत इस बार भी पीएम मोदी के शासन काल में यह पद विपक्ष को नहीं दिया जाएगा, भले ही बीजेपी का अकेले सदन में बहुमत हो या न हो।

कैबिनेट में भी दिखाया था आक्रामक अंदाज

स्पीकर को लेकर मचे सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच संग्राम से पहले एक नेरेटिव यह भी था कि इस बार एनडीए सरकार की मोदी कैबिनेट में बीजेपी को रेल, वित्त, रक्षा, विदेश जैसे विभाग, एनडीए के घटक दलों को देने पड़ेंगे। एनडीए के घटक दलों का इस बार मोदी कैबिनेट में दबदबा भी ज्यादा होगा, लेकिन जब 9 जून को शपथग्रहण हुआ तो ये सारे कयास हवा हो गए थे। बीजेपी ने गठबंधन सरकार में भी बड़े घटक दलों को एक कैबिनेट और एक राज्यमंत्री का पद ही दिया है। इतना ही नहीं, कई घटक दलों के प्रमुखों को तो इस सरकार में कैबिनेट रैंक तक नहीं मिली है, जिसमें शिवसेना से लेकर रालोद जैसे दल शामिल हैं।

इसी तरह अगर कैबिनेट मंत्रियों के पोर्टफोलियो पर नजर डालें तो उसमें भी बीजेपी ने अपनी हनक दिखाई है। सीसीएस के रक्षा, विदेश, वित्त और गृहमंत्रालय बीजेपी ने अपने ही मंत्रियों को दिए हैं। इसके अलावा रेल से लेकर सड़क परिवहन और अन्य महत्वपूर्ण मंत्रालय बीजेपी ने अपने ही कोटे से मंत्री बने नेताओं को दिए हैं।

कैबिनेट से लेकर मंत्रियों के पोर्टफोलियो और अब स्पीकर पद को लेकर बीजेपी की आक्रामकता यह संकेत दे रही है कि भले ही विपक्षी दलों की संख्या इस चुनाव में मजबूत हुई है, लेकिन फिर मोदी सरकार के काम करने की ताकत में कोई कमी नहीं आई है। इसे बीजेपी एक तरह से अपने लिए नौतिक जीत दिखाकर विपक्षी दलों पर हावी होने का परसेप्शन बनाने की कोशिश कर रही है। यह देखना अहम होगा कि मोदी-शाह की जोड़ी इसमें कितना सफल हो पाती है।

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