कुछ इलाकों में आई शांति, कई जगहों पर अभी भी तनाव… जानें मणिपुर हिंसा के एक साल बाद कैसे हैं हालात
मणिपुर में पिछले साल कुकी और मैतेई समुदायों के बीच खूनी जातीय हिंसा देखी थी। वह अभी भी शांति की वापसी के लिए संघर्ष कर रहा है। जहां कुछ इलाकों में लोग अपनी जिंदगी को पटरी पर लाने की कोशिश कर रहे हैं, वहीं कई इलाकों में तनाव है। कुछ स्थानों पर किसानों ने फिर से खेती शुरू कर दी है, लेकिन आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति अभी भी प्रतिबंधित है।
बेहतर स्थिति की उम्मीद
इंडिया टुडे से बात करने वाले कुकी और मैतेई समुदायों के सदस्यों ने बेहतर स्थिति की उम्मीद की। उन्होंने कहा कि घाटी और पहाड़ियों में शांति वापस लाना राज्य और केंद्र सरकारों के हाथ में है। महीनों पहले की स्थिति के विपरीत इंफाल की सड़कों पर लोगों की अधिक आवाजाही देखी जा रही है। स्कूल, अस्पताल, दुकानें, घर और प्रतिष्ठान सामान्य स्थिति में लौट आए हैं। हालांकि शाम 5 बजे के बाद भी कर्फ्यू जारी रहता है।
कुछ इलाकों में हिंसा फिर से हुई हिंसा
इंडिया टुडे से बात करने वाले रंजीत कुमार ने स्थिति में सामान्य सुधार बताया। उन्होंने कहा, ''एक साल पहले गोलियां चलाई गईं और कर्फ्यू लगाया गया, लेकिन अब स्थिति में सुधार हुआ है। हालांकि जिरीबाम जैसे कुछ इलाकों में एक बार फिर हिंसक झड़पें शुरू हो गई हैं। चुनाव तक सब कुछ शांतिपूर्ण था, लेकिन चुनाव के बाद कुछ इलाकों में हिंसा फिर से सामने आ गई है।"
थौबल जिले में खेती के दौरान एक किसान राजराम ने यह भी कहा कि इंफाल घाटी और पहाड़ियों की सीमा से लगे इलाके अभी भी तनावपूर्ण हैं। उन्होंने कहा, "एक साल की हिंसा के बाद कुछ क्षेत्रों में वृक्षारोपण और खेती शुरू हो गई है। अगर मणिपुर में ठीक से बारिश हो तो हम ठीक से खेती कर पाएंगे। मुझे लगता है कि थौबल जिला शांत है, लेकिन बगल के क्षेत्रों में अभी भी शांति नहीं है। केंद्रीय बल कोशिश कर रहे हैं, लेकिन मुद्दे अभी भी बने हुए हैं। जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। केंद्र, राज्य और अन्य एजेंसियों को एकजुट होना चाहिए।"
एक मैतेई महिला आशा लता शांति की मांग कर रही महिलाओं के एक विरोध शिविर का नेतृत्व कर रही है। उन्होंने कहा, "एक साल हो गया है। मणिपुर में बहुत कुछ बदल गया है। क्या करें? युवा लोग बंकरों में हैं और महिलाएं यहां बैठी हैं।" वहीं कुकी समुदाय के एक पुलिस अधिकारी ने कहा, "सरकार की ओर से कोई प्रतिबंध नहीं है, लेकिन अगर कोई कुकी अधिकारी मैतेई पक्ष में जाता है, तो सवाल उठते हैं और समस्याएं पैदा होती हैं।"
कई ग्रामीण विस्थापित
इंडिया टुडे ने पलेल के पास जिन कुकी इलाकों का दौरा किया उनमें से एक गांव अभी भी वीरान है। एक निवासी ने कहा, इस क्षेत्र के लोग पहाड़ियों में सुरक्षित स्थानों पर चले गए हैं। हरेक घर से एक व्यक्ति गांव की सुरक्षा के लिए वहीं रुका हुआ है। उन्होंने कहा, "हिंसा के कारण, अधिकांश ग्रामीण यहां नहीं हैं। वे पहाड़ी इलाकों में सुरक्षित स्थानों पर चले गए हैं। यहां कोई स्कूल नहीं है। यहां कुछ भी काम नहीं कर रहा है। केंद्रीय बलों की बढ़ती उपस्थिति के कारण स्थिति ठीक हुई है।"
अपनी जान बचाने के लिए अपने परिवार के साथ मोरे से इंफाल भागे सोमेंद्र कहते हैं कि कुकी और मैतेई दशकों तक भाइयों की तरह एक साथ रहते थे, लेकिन अब वह भाईचारा बहाल होता नहीं दिख रहा है। इसके अलावा शांति बहाल करने के सरकारी प्रयास सफल नहीं दिख रहे हैं क्योंकि न तो राज्य सरकार और न ही केंद्र सरकार हिंसा को रोकने में सक्षम है।
मणिपुर में लोगों खासकर महिलाओं के लिए आजीविका कमाना बेहद मुश्किल हो गया है। स्थानीय संगठनों ने कुछ कुशल कारीगर महिलाओं को हथकरघा दान किया है। हालांकि दो दिन की कड़ी मेहनत के बाद भी वे बचत के नाम पर सिर्फ 150 रुपये ही कमा पाते हैं। इंफाल केस लीफ कैंप में अपने बेटे के साथ रहने वाली महिला देविका एक दर्जन मोमबत्तियां बनाकर और बेचकर 70 रुपये कमाती है। बुनियादी सुविधाओं के अभाव में राहत शिविरों की स्थिति दयनीय है। जून की चिलचिलाती गर्मी में भी उनके पास पानी की उचित आपूर्ति नहीं है। बार-बार बिजली कटौती से चिंता बढ़ रही है और कई शिविर भोजन आपूर्ति के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं।
कब हुई थी हिंसा?
3 मई, 2023 को इम्फाल घाटी में रहने वाले बहुसंख्यक मैतेई लोगों और आसपास की पहाड़ियों के कुकी-ज़ो आदिवासी समुदाय के बीच जातीय हिंसा भड़क उठी। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 221 लोग मारे गए हैं और 60,000 लोग विस्थापित हुए हैं। हिंसा का कारण मणिपुर हाई कोर्ट का आदेश था जिसमें राज्य सरकार को मैतेई समुदाय द्वारा अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग के संबंध में केंद्र सरकार को सिफारिश भेजने का निर्देश दिया गया था।