Lok Sabha Chunav: बीजेपी को क्यों हुआ यूपी, राजस्थान और हरियाणा में नुकसान? पार्टी में हो रही इन 3 पॉइंट्स पर सबसे ज्यादा चर्चा
Lok Sabha Chunav: भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में सीटों का भारी नुकसान हुआ है। शुरुआती आकलन के बाद पता चला है कि सीटों की संख्या में गिरावट के पीछे जाट, दलित और मुस्लिम वोट बैंक का एक साथ आ जाना और उम्मीदवारों के चयन समेत खराब चुनाव प्रबंधन भी इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं।
हालांकि, भारतीय जनता पार्टी ने अभी तक आधिकारिक तौर पर अपनी चुनावी प्रक्रिया में खामियों की समीक्षा नहीं की है। सूत्रों ने कहा कि पार्टी के आलाकमान को रिपोर्ट भेजने से पहले सभी स्तरों पर पार्टी के प्रदर्शन की समीक्षा की जाएगी। इतना ही नहीं, इस प्रक्रिया में कई महीने लगने की उम्मीद है। कई वरिष्ठ पार्टी नेताओं ने इंडियन एक्सप्रेस से बात की और शुरुआती जानकारी देते हुए बताया कि कहां पर गलती हुई है।
इन नेताओं ने कहा कि इन सभी चीजों के अलावा बेरोजगारी और महंगाई की वजह से भी पार्टी को इन तीन राज्यों में 45 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा। इस खराब प्रदर्शन के कारण बीजेपी बहुमत के आंकड़े से दूर रह गई। 543 लोकसभा सीटों में से बहुमत से करीब 32 सीटें पार्टी को कम मिलीं। भाजपा ने 2019 में यूपी में 62 सीटें जीतीं, लेकिन राज्य में 33 पर सिमट गई, राजस्थान में 25 से 14 सीटों पर आ गई और हरियाणा में इसकी संख्या 10 से घटकर पांच ही रह गई।
विपक्ष के संविधान वाले प्रचार से भी पार्टी को नुकसान
बीजेपी के नेताओं ने कहा कि विपक्ष ने इस बार यह प्रचार किया कि अगर भाजपा के नेतृत्व वाला एनडीए 400 से ज्यादा सीटें जीत जाता है तो संविधान खतरे में पड़ जाएगा। इससे भी पार्टी को काफी नुकसान हुआ है। उनमें से एक ने कहा कि केंद्रीय और राज्य स्तर के नेतृत्व को उम्मीद थी कि राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या का उत्साह और पीएम मोदी की लोकप्रियता पार्टी के सामने आने वाली हर कमी को दूर कर देगी। राजस्थान के एक भाजपा नेता ने कहा कि इसका नतीजा यह हुआ कि पार्टी ने उम्मीदवारों को चुनते समय जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं की बात नहीं मानी और उनकी बातों को अनसुना कर दिया। इन्हीं समस्याओं की वजह से चुनाव मैनेजमेंट पटरी से उतर गया।
जाट वोटों का नुकसान
भाजपा नेताओं ने कहा कि 2020-21 के किसान आंदोलन और पहलवानों के प्रदर्शन से निपटने के सरकार के तरीकों से जाटों में नाराजगी देखी ग नाराजगी देखी गई। पार्टी के एक नेता ने कहा कि दिलचस्प बात यह है कि हमारे शुरुआती आकलन में यह पता चला है कि उनके बीच कांग्रेस पार्टी के लिए कोई प्यार नहीं था, बस वे भाजपा के खिलाफ वोट करना चाहते थे और राजस्थान और हरियाणा में कांग्रेस ही एक ऑप्शन थी।
भाजपा नेताओं ने कहा कि राजस्थान में जाटों ने लंबे समय तक कांग्रेस का समर्थन किया। इसके बाद 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा उन्हें ओबीसी का दर्जा दिए जाने के बाद वे भाजपा के साथ आने लगे। पांच साल बाद भाजपा ने वसुंधरा राजे के नेतृत्व में पहली बार राज्य में अपने दम पर सरकार बनाई। हालांकि, जाट कुछ समय के लिए कांग्रेस के पास चले गए, लेकिन इस बेल्ट में समुदाय ने 2014 और 2019 में भाजपा का भारी समर्थन किया। जाटों और दलितों के साथ ने उस साल हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को इस क्षेत्र में जीत दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई। 2014 में भाजपा के पीएम चेहरा होने के बाद मोदी ने हरियाणा के रेवाड़ी में एक रैली थी। इसमें किसान बड़ी संख्या में शामिल हुए थे।
लेकिन इस बार भाजपा के खिलाफ समुदाय की भावनाओं की वजह से पार्टी को कई जाट-बहुल सीटों पर हार का सामना करना पड़ा। इसके उलट यूपी में भाजपा की साथी आरएलडी ने बागपत और बिजनौर दोनों सीटों पर जीत हासिल की। वहीं, मुजफ्फरनगर में पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान सपा के उम्मीदवार से हार गए। हरियाणा में भाजपा अंबाला, सिरसा, हिसार, सोनीपत और रोहतक जैसी जाट-बहुल सीटों पर हार गई।
रिजर्व सीटों पर भी बीजेपी को नुकसान
पार्टी को देशभर में एससी के लिए रिजर्व सीटों पर भी तगड़ा झटका लगा है। 84 एससी सीटो में से इसकी संख्या महज 30 ही रह गई। पिछली बार इसकी संख्या 46 थी। वहीं, कांग्रेस पार्टी जो पिछली बार केवल 6 सीटें ही जीती थी, इस बार 20 सीटें जीतने में कामयाब रही। एसटी कैटेरगरी के लिए रिजर्व सीटों में से बीजेपी की संख्या घटकर केवल 25 ही रह गई। वहीं, कांग्रेस की संख्या चार से बढ़कर 12 हो गई।
भाजपा नेताओं ने माना कि संविधान को खतरे पर विपक्ष का अभियान पार्टी के खिलाफ काम कर गया। पार्टी के लिए रणनीति बनाने में शामिल एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा कि कांग्रेस और विपक्ष के कदम ने हमें बुरी तरह से नुकसान पहुंचाया। उन्होंने इसका इस्तेमाल आरक्षण को लेकर भी किया।
भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के मुताबिक, कार्यकर्ताओं में ज्यादा खुशी भी खराब प्रदर्शन की एक वजह थी। उनमें से एक ने कहा कि राज्यों में कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी थी। इसकी वजह से पार्टी के गढ़ माने जाने वाली लोकसभा सीटों पर वोटिंग पर्सेंटेंज कम रहा। इनमें 18 फीसदी वोटों की गिरावट आई। राजस्थान को पिछले लोकसभा चुनाव और हालिया विधानसभा चुनावों में भाजपा को काफी सीटें थी। यहां पर जयपुर के सिवाय पार्टी के वोट शेयर में सभी 14 सीटों पर गिरावट आई।
भाजपा नेताओं ने कहा कि चुनाव प्रचार के दौरान मैनेजमेंट ने भी पार्टी की जमीन खिसकने में काफी योगदान दिया है। राजस्थान में प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी चित्तौड़गढ़ में अपने चुनाव अभियान में बिजी थे। हरियाणा में भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नायब सिंह सैनी सीएम बन गए और राज्य प्रभारी बिप्लब कुमार देब त्रिपुरा पश्चिम में अपने चुनाव में बिजी थे और बाद में उन्हें ओडिशा में भेजा गया।
यूपी में पार्टी के एक वर्ग ने राज्य प्रशासन से सहयोग की कमी को भी दोषी ठहराया। वहीं, एक दूसरे नेता ने कहा कि उम्मीदवारों का चयन भी सही नहीं था। हरियाणा में अन्य दलों के नेताओं को शामिल करने और उन्हें मैदान में उतारने के फैसले ने कैडर को नाराज कर दिया। सिरसा में भाजपा ने मौजूदा सांसद सुनीता दुग्गल की जगह अशोक तंवर को मैदान में उतारा, जो आम आदमी पार्टी से आए थे। वहीं, रणजीत सिंह चौटाला जो मार्च में पार्टी में शामिल हुए थे, उन्हें हिसार से मैदान में उतारा गया। दोनों हार गए।