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BNS की लिंचिंग से जुड़ी एक धारा पर झारखंड हाई कोर्ट ने उठाए सवाल, जानें क्या कहता है प्रावधान

झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस आनंद सेन और जस्टिस सुभाष चंद की पीठ ने बताया कि लिंचिंग के प्रावधान बीएनएस धारा 103(2) को गलत तरीके से दोहराया गया है।
Written by: Abhishek Angad | Edited By: Nitesh Dubey
नई दिल्ली | Updated: July 01, 2024 17:27 IST
bns की लिंचिंग से जुड़ी एक धारा पर झारखंड हाई कोर्ट ने उठाए सवाल  जानें क्या कहता है प्रावधान
1 जुलाई से नए आपराधिक कानून लागू हो गए।
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देश में आज यानी 1 जुलाई से नए आपराधिक कानून लागू हो गए हैं। झारखंड हाई कोर्ट ने सोमवार को भारतीय न्याय संहिता (BNS) के यूनिवर्सल लेक्सिसनेक्सिस एडिशन में एक गलती पर स्वत: संज्ञान लिया। झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस आनंद सेन और जस्टिस सुभाष चंद की पीठ ने बताया कि एक एडिशन में लिंचिंग के प्रावधान बीएनएस धारा 103(2) को गलत तरीके से दोहराया गया था।

जानें क्या है प्रावधान

नए कानून की धारा 103 (2) में कहा गया है, "जब पांच या अधिक व्यक्तियों का ग्रुप एक साथ मिलकर नस्ल, जाति या समुदाय, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, व्यक्तिगत विश्वास या किसी अन्य, आधार पर हत्या करता है तो ऐसे ग्रुप के हरेक सदस्य को मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी और जुर्माने भी लगाया जाएगा।

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हालांकि लेक्सिसनेक्सिस एडिशन 'किसी अन्य सिमिलर ग्राउंड' के बजाय 'किसी अन्य ग्राउंड' शब्दों का उपयोग करता है। यह देखते हुए कि गलती के गंभीर परिणाम हो सकते हैं, तो पीठ ने प्रकाशक को राष्ट्रीय और क्षेत्रीय समाचार पत्रों में एक वेरिफिकेशन प्रकाशित करने का निर्देश दिया।

झारखंड हाई कोर्ट अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष रितु कुमार ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हमें इस मुद्दे पर विचार-विमर्श करने के लिए अदालत में बुलाया गया था। पीठ ने प्रकाशक को उस गलती पर नोटिस जारी किया है जहां एक शब्द गायब है। कार्रवाई के लिए प्रकाशकों को नोटिस भेजा जाएगा।'' झारखंड हाई कोर्ट के वकील मोहम्मद शबाद अंसारी (जिन्होंने पहले विभिन्न मामलों में लिंचिंग पीड़ितों का प्रतिनिधित्व किया था) ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि 'किसी भी अन्य आधार' शब्द का मतलब कुछ भी हो सकता है, यहां तक ​​कि संपत्ति विवाद भी हो सकता है।

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मोहम्मद शबाद अंसारी ने आगे बताया, "लिंचिंग में (2018 सुप्रीम कोर्ट) तहसीन पूनावाला के फैसले का असर होगा। उदाहरण के लिए बीएनएस के आईपीसी 153A (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) के संबंधित प्रावधानों को एफआईआर में जोड़ा जाएगा, मुआवजा दिया जाएगा, और (मामले को) फास्ट-ट्रैक अदालतों में चलाना होगा।"

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अमित शाह ने कानूनों को समझाया

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि अंग्रेजों के जमाने के कानूनों को 75 साल बात खत्म किया गया है। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर आम लोगों को यह समझायाा है कि आखिर ये कानून क्यों बदले गए और ये कानून क्यों देश की न्याय व्यवस्था का भारतीय करण है।

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