Blog: अंतरिक्ष में कामयाबी के बढ़ते कदम, ISRO ने स्वदेशी तकनीक से बनाया क्रायोजेनिक इंजन
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने गगनयान अभियान की चरणबद्ध तैयारी में क्रायोजेनिक इंजन सीई-20 को स्वदेशी तकनीक से विकसित कर लिया है। गगनयान भारत का पहला ऐसा अंतरिक्ष अभियान होगा, जो मानव को लेकर अंतरिक्ष की उड़ान भरेगा। इस इंजन को मानव मिशन के योग्य बनाने की दृष्टि से चार इंजनों को अलग-अलग स्थितियों में ‘39 हाट फायरिंग’ जांच से गुजारा गया। यह इंजन एलवीएम-3 प्रक्षेपण वाहन के ऊपरी चरण को शक्ति प्रदान करेगा।
वैज्ञानिकों ने विपरीत हालातों में हासिल की है उपलब्धि
यही इंजन अंतरिक्ष उड़ानों से लेकर उपग्रहों और मिसाइल प्रक्षेपण में काम आता है। दरअसल, हमारे वैज्ञानिकों ने अनेक विपरीत परिस्थितियों और अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के बावजूद इस क्षेत्र में अद्वितीय उपलब्धियां हासिल की हैं। अन्यथा एक समय ऐसा भी था, जब अमेरिका के दबाव में रूस ने क्रायोजेनिक इंजन देने से मना कर दिया था। असल में यही इंजन किसी भी प्रक्षेपण यान की वह शक्ति है, जो भारी वजन वाले उपग्रहों और अन्य उपकरणों को अंतरिक्ष में पहुंचाती है।
रूस से इंजन खरीदने पर अमेरिका ने खड़ी कर दी बाधा
दरअसल, भारत ने शुरुआत में रूस से इंजन खरीदने का अनुबंध किया था। मगर 1990 के दशक के आरंभ में अमेरिका ने मिसाइल तकनीक नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) का हवाला देते हुए इसमें बाधा उत्पन्न कर दी थी। इसका असर यह हुआ कि रूस ने तकनीक तो नहीं दी, लेकिन शुल्क लेकर छह क्रायोजेनिक इंजन भारत को भेज दिए थे। कालांतर में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा की मदद से भारत को एमटीसीआर क्लब की सदस्यता भी मिल गई, लेकिन इसके पहले ही इसरो के वैज्ञानिकों ने कठोर परिश्रम और दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर स्वदेशी तकनीक से इंजन विकसित कर लिया।
उड़ान के पहले चरण का सफल प्रक्षेपण कर चुका है इसरो
मानव मिशन की इस उड़ान के पहले चरण का सफल प्रक्षेपण इसरो पहले ही कर चुका है। देश के महत्त्वाकांक्षी मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम गगनयान से जुड़े ‘पेलोड’ के साथ उड़ान भरने वाले परीक्षण यान के विफल होने की स्थिति में ‘क्रू माड्यूल’, यानी जिसमें अंतरिक्ष यात्री सवार होंगे, को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित करने के बाद सुरक्षित वापस लाने के लिए ‘क्रू एस्केप सिस्टम’ यानी चालक दल बचाव प्रणाली (सीईएस) का सफल परीक्षण कर इसरो विश्व कीर्तिमान स्थापित कर चुका है। इस बचाव प्रणाली की जरूरत इसलिए थी कि यान के विफल होने पर कई वैज्ञानिक प्राण गंवा चुके हैं। इस परीक्षण के अंतर्गत ‘क्रू माड्यूल’ राकेट से अलग हो गया और बंगाल की खाड़ी में गिर गया। क्रू माड्यूल वह स्थान है, जहां गगनयान मिशन के दौरान अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में पृथ्वी जैसे वातावरण में रखा जाएगा।
गगनयान के अगले वर्ष उड़ान भरने की संभावना है। इस परियोजना के तहत इसरो मानव चालक दल को चार सौ किमी ऊपर पृथ्वी की कक्षा में भेजेगा। इसलिए भारतीय मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम अत्यंत महत्त्वपूर्ण होगा। प्रधानमंत्री ने इसरो में वैज्ञानिकों के साथ बातचीत में उनके लिए लक्ष्य भी तय कर दिए हैं कि 2035 में भारत का अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित हो तथा 2040 में चंद्रमा पर भारतीय नागरिक के कदम पड़ जाएं।
इस यान में तीन भारतीय अंतरिक्ष यात्री तीन दिन अंतरिक्ष की सैर करेंगे। ‘रोबोट-मानव’ भी साथ ले जाया जा सकता है। मिशन के लिए दस हजार करोड़ रुपए मंजूर किए जा चुके हैं।
हालांकि अब तक भारतीय या भारतीय मूल के तीन वैज्ञानिक अंतरिक्ष की यात्रा कर चुके हैं। राकेश शर्मा अंतरिक्ष में जाने वाले पहले भारतीय हैं। शर्मा रूस के अंतरिक्ष यान सोयुज टी-11 से अंतरिक्ष में गए थे। इनके अलावा भारतीय मूल की कल्पना चावला और सुनीता विलियम्स भी अमेरिकी कार्यक्रम के तहत अंतरिक्ष में जा चुकी हैं। हालांकि पहले भारत ने 2022 तक अंतरिक्ष में मानव भेजने की घोषणा की थी, लेकिन इस पर समय रहते क्रियान्वयन नहीं हो पाया। अंतरिक्ष में मानवरहित और मानवचालित दोनों तरह के यान भेजे जाएंगे। पहले चरण में योजना की सफलता को परखने के लिए अलग-अलग समय में दो मानवरहित यान अंतरिक्ष की उड़ान भरेंगे। इनकी कामयाबी के बाद मानवयुक्त यान अपनी मंजिल का सफर तय करेगा।
मानवयुक्त गगनयान की कामयाबी के बाद भारत अमेरिका, रूस और चीन की श्रेणी में आ जाएगा। रूस ने 12 अप्रैल, 1961 को रूसी अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन को अंतरिक्ष में भेजा था। गागरिन दुनिया के पहले अंतरिक्ष यात्री थे। अमेरिका ने 5 मई, 1961 को एलन शेपर्ड को अंतरिक्ष में भेजा था। ये अमेरिका से भेजे गए पहले अंतरिक्ष यात्री थे। चीन ने 15 अक्तूबर, 2013 को यांग लिवेई को अंतरिक्ष में भेजने में कामयाबी हासिल की थी। भारत ने अब अंतरिक्ष में बड़ी छलांग लगाने की पहल कर दी है।
दरसअल, अंतरिक्ष में मौजूद ग्रहों पर यान भेजने की प्रक्रिया बेहद जटिल और शंकाओं से भरी होती है। अगर अवरोह का कोण जरा भी डिग जाए या फिर गति का संतुलन थोड़ा-सा भी लड़खड़ा जाए तो अंतरिक्ष यान या तो ध्वस्त हो जाता या कहीं भटक जाता है। इसे न तो खोजा जा सकता है और न ही नियंत्रित करके दुबारा लक्ष्य पर लाया जा सकता है। चंद्रयान-2 ऐसी ही विपरीत स्थितियों का सामना करते हुए लड़खड़ा कर उलट गया था। इसीलिए भारत पहले दो गगनयान अभियान मानवरहित भेजेगा।
भारत ने गगनयान को अंतरिक्ष में भेजने की दृष्टि से श्रीहरिकोटा में जीएसएलवी मार्क-3 को स्थापित करने की तैयारी शुरू कर दी है। इसी मुहिम के तहत इसरो ने परीक्षण के तौर पर ‘क्रू एस्केप माड्यूल’ का पहला पड़ाव पार कर लिया है। इसे धरती से 2.7 किमी की ऊंचाई पर भेजने के बाद राकेट से अलग किया और फिर पैराशूट की मदद से बंगाल की खाड़ी में उतार कर जमीन के निकट लाने में सफलता प्राप्त की।
‘क्रू माड्यूल’ तीन लोगों को अंतरिक्ष में ले जाने की क्षमता रखता है। इसमें सवार यात्रियों को एक सप्ताह तक भोजन-पानी और हवा उपलब्ध करा कर जीवित रखा जा सकता है। अब गगनयान मिशन पर जाने वाले वैज्ञानिकों के नामों की घोषणा भी कर दी गई है। प्रधानमंत्री ने इनके नामों की घोषणा की। इस अभियान को स्वदेशी प्रोद्यौगिकी से तैयार किया जा रहा है। औद्योगिक घरानों की मदद से इसरो फ्लाइट्स से जुड़े हार्डवेयर और अन्य उपकरण जुटाएगा। राष्ट्रीय अंतरिक्ष और विज्ञान एजंसियां तथा विश्वविद्यालय भी इस अभियान में मदद करेंगे। इनके शिक्षाविद और प्रयोगशालाओं की भी अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षण देने में मदद ली जाएगी।
इसी क्रम में ‘क्रू माड्यूल’ को जिस पैराशूट से सुरक्षित उतारा गया है, उसे डीआरडीओ की आगरा स्थित प्रयोगशाला एडीआरडीई में बनाया गया है। बहरहाल, अंतरिक्ष में भारतीय मानव मिशन के सफल होने के बाद ही चंद्रमा और मंगल पर मानव भेजने का रास्ता खुलेगा। इन पर बस्तियां बसाए जाने की संभावनाएं भी बढ़ जाएंगी। आने वाले वर्षों में अंतरिक्ष पर्यटन के भी बढ़ने की उम्मीद है। इसरो की यह सफलता अंतरिक्ष पर्यटन की पृष्ठभूमि का एक हिस्सा है।