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हालात ठीक नहीं फिर भी इजरायल क्यों जा रहे जींद के युवा, बताई यह वजह

पिछले साल अगस्त में हरियाणा सरकार ने कहा था कि 22 जिलों में 5.4 लाख से ज़्यादा बेरोज़गार युवाओं ने विभिन्न रोज़गार कार्यालयों में पंजीकरण कराया है। 52,089 पंजीकरण के साथ जींद पहले स्थान पर रहा। पढ़ें ऐश्वर्या राज की रिपोर्ट।
Written by: न्यूज डेस्क | Edited By: संजय दुबे
नई दिल्ली | Updated: May 25, 2024 11:55 IST
हालात ठीक नहीं फिर भी इजरायल क्यों जा रहे जींद के युवा  बताई यह वजह
प्रशिक्षित राजमिस्त्री अमरदीप नौकरी नहीं होने की वजह से ट्रैक्टर ट्रॉली चलाते हैं। (एक्सप्रेस फोटो)
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इस साल जनवरी में इजरायल में निर्माण कार्यों के लिए मजदूरों की भर्ती के लिए हरियाणा सरकार के विज्ञापन के बाद जींद से सैकड़ों लोग रोहतक में एक शिविर में कतार में खड़े हो गए थे। फरवरी में सरकार ने जिले से 26 युवाओं का चयन किया, जिसमें राज्य में सबसे अधिक रजिस्टर्ड बेरोजगार लोग थे, जिन्हें इजरायल ले जाया गया। इन लोगों को लगभग 1 लाख रुपये प्रति माह कमाने की उम्मीद थी। कुल मिलाकर सभी जिलों से 219 युवाओं का चयन किया गया, और इनमें से 23 ने पहले ही इजरायल में काम करना शुरू कर दिया था, जिसमें जींद के भी दो लोग शामिल हैं।

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ग्रुप वीडियो काल में वहां रह रहे युवाओं ने कई बातें बताई थीं

गाजा पर इजरायल के युद्ध और पश्चिम एशिया में तनाव के बावजूद चुने गए 24 लोगों के साथ एक ग्रुप वीडियो कॉल के दौरान सबने करीब-करीब यही बात कही: “हम यहां नहीं रह सकते, यहां कोई नौकरी नहीं है।” पिछले महीने जब बढ़ते तनाव के कारण इजरायल के लिए उड़ानें प्रभावित हुई थीं, तो वीडियो कॉल में शामिल लोगों ने कई तरह की आशंकाएं साझा की थीं। उनमें से एक ने पूछा, "वे उड़ान संचालन कब फिर से शुरू करेंगे?", दूसरे ने पूछा, "वे उड़ानों का मार्ग क्यों नहीं बदल सकते?"

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ठेके पर भी काम नहीं होने की बात कहते हुए जताई चिंता

जींद के मोहनपुर गांव के निवासी और राजमिस्त्री साजन कुमार (38) ने कहा, "स्थायी नौकरी तो भूल ही जाइए, हमें यहां ठेके पर निर्माण कार्य भी नहीं मिल रहा है। अगर हम भाग्यशाली रहे, तो हममें से कुछ को 15 दिन का काम मिल सकता है, लेकिन इससे परिवार के लिए कुछ भी नहीं होगा।" उन्हें और उनके 4 भाइयों को पिछले 3 महीनों से काम नहीं मिला था।

उनके इलाके में एक मजदूर को प्रतिदिन 500 रुपये और एक सुपरवाइजर को 800 रुपये मिलते हैं, यानी 20 दिन के काम के लिए उन्हें क्रमशः 10,000 रुपये और 16,000 रुपये मिलते हैं। कुमार कहते हैं कि उनके 18 सदस्यों वाले परिवार के खर्चे तो बढ़ गए हैं, लेकिन मजदूरी नहीं बढ़ी है।

उन्होंने कहा, "हमें मुफ्त राशन मिलता है, लेकिन यह 10 दिनों में खत्म हो जाता है… मैं परिवार का सबसे बुजुर्ग सदस्य हूं और मेरे पास घर छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।" उन्होंने इजरायल जाने के लिए 68,000 रुपये का टिकट खरीदा है, जो उन्होंने गांव के एक साहूकार से उधार लिया था। उनकी पत्नी सुनीता (34), उनके भाई और उनकी पत्नियों ने नरेगा के लिए पंजीकरण कराया है, लेकिन उन्हें 10 दिनों से भी कम काम मिला है।

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जबकि हरियाणा में इस योजना के तहत सबसे ज़्यादा मज़दूरी 374 रुपये प्रतिदिन है, लाभार्थियों का दावा है कि पर्याप्त कार्य दिवसों की कमी का मतलब है कि कुल कमाई बहुत ज़्यादा नहीं है। कुमार कहते हैं, "मैंने 2014 और 2019 में मोदी को वोट दिया था, लेकिन अब मेरा वही सोच नहीं है। उन्होंने पिछले कुछ सालों में हमारे लिए कुछ नहीं किया है… कांग्रेस भी इससे बेहतर नहीं है। उन्होंने सालों तक हरियाणा पर शासन किया है, लेकिन हमें क्या मिला?"

पिछले साल अगस्त में हरियाणा सरकार ने कहा था कि 22 जिलों में 5.4 लाख से ज़्यादा बेरोज़गार युवाओं ने विभिन्न रोज़गार कार्यालयों में पंजीकरण कराया है। 52,089 पंजीकरण के साथ जींद पहले स्थान पर रहा। जींद के जीवनपुर निवासी 26 वर्षीय अमरदीप प्रशिक्षित राजमिस्त्री हैं, लेकिन नौकरी न मिलने पर उन्होंने ट्रैक्टर ट्रॉली चलाना शुरू कर दिया है, जिसके लिए उन्हें प्रतिदिन 4,000 रुपये मिलते हैं, जिसमें से आधा ईंधन पर खर्च हो जाता है। लेकिन यह नौकरी साल में केवल 15 दिन ही मिलती है।


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